मोहनजोदड़ो का इतिहास-Mohenjo Daro

परिचय:- मोहनजोदड़ो का इतिहास

मोहनजोदड़ो, विश्व की सबसे पुरानी और विकसित सभ्यताओं में से एक, सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख केंद्र था। यह स्थान न केवल अपनी उन्नत नगर योजना और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां से मिले अवशेष हमें उस समय की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन के बारे में गहरी जानकारी प्रदान करते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम मोहनजोदड़ो से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

मोहनजोदड़ो का इतिहास,Mohenjo Daro
मोहनजोदड़ो का इतिहास

शाब्दिक अर्थ

“मोहनजोदड़ो” शब्द का शाब्दिक अर्थ है “मृतकों का टीला” या “मुर्दों का टीला”। यह नाम स्थानीय सिंधी भाषा से लिया गया है, जहां “मोहन” का अर्थ “मुर्दा” और “जोदड़ो” का अर्थ “टीला” होता है। यह नाम शायद इस क्षेत्र में मिले बड़े टीले और दफन अवशेषों के कारण पड़ा होगा। हालांकि, प्राचीन काल में इस शहर का वास्तविक नाम क्या था, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। कुछ विद्वान इसे “कुकुटारमा” या “मेलुहा” से जोड़ते हैं, लेकिन इस बारे में निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।

नदी और स्थिति

मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के किनारे स्थित है, जो वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पड़ता है। यह स्थल लरकाना जिले के करीब स्थित है और सिंधु नदी की उपजाऊ घाटी में बसा हुआ था। सिंधु नदी ने इस सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि इसके माध्यम से कृषि, व्यापार और परिवहन की सुविधाएं उपलब्ध थीं। नदी के पास स्थित होने के कारण यहां की भूमि अत्यंत उपजाऊ थी, जिससे कृषि का व्यापक विकास संभव हुआ।

खोज और खोजकर्ता

मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी राखालदास बनर्जी द्वारा की गई थी। वह एक बंगाली पुरातत्वविद् थे जिन्होंने हड़प्पा सभ्यता के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। राखालदास बनर्जी ने इस स्थल की खोज के दौरान यहां से अनेक महत्वपूर्ण अवशेष और संरचनाएं खोजी, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह स्थान एक अत्यंत विकसित और उन्नत सभ्यता का केंद्र था।

इसके बाद, पुरातत्वविद् जॉन मार्शल, अर्नेस्ट मैके, और केएन दीक्षित सहित कई अन्य विशेषज्ञों ने यहां विस्तृत उत्खनन कार्य किया और मोहनजोदड़ो की विस्तृत जानकारी एकत्रित की। इन उत्खननों से प्राप्त जानकारियों ने विश्व को सिंधु घाटी सभ्यता की उन्नति और विकास के बारे में अवगत कराया।

उपनाम

मोहनजोदड़ो को कई उपनामों से जाना जाता है जो इसके महत्व और विशेषताओं को दर्शाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख उपनाम इस प्रकार हैं:

  1. “सिंधु घाटी की मणि”: इसकी उन्नत नगर योजना और समृद्ध संस्कृति के कारण इसे यह उपनाम दिया गया है।
  2. “प्राचीन विश्व का आश्चर्य”: इसकी अद्वितीय वास्तुकला और तकनीकी कुशलता को देखते हुए इसे यह नाम मिला है।
  3. “मृतकों का टीला”: यह इसका शाब्दिक अर्थ है, जो यहां मिले दफन अवशेषों को दर्शाता है।

ये उपनाम मोहनजोदड़ो के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करते हैं।

प्राप्त अवशेष

मोहनजोदड़ो से अनेक महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं जो इस सभ्यता की उन्नति और विकास के साक्ष्य हैं। इनमें से कुछ प्रमुख अवशेष इस प्रकार हैं:

1. महान स्नानागार

यह मोहनजोदड़ो का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण संरचना है। महान स्नानागार एक विशाल जलकुंड है, जिसका उपयोग संभवतः धार्मिक या सामाजिक समारोहों के लिए किया जाता था। इसकी संरचना अत्यंत उन्नत और जलरोधी थी, जिसमें पानी के निकास और प्रवेश के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी।

2. विशाल अन्नागार

यहां से मिले अन्नागारों से पता चलता है कि मोहनजोदड़ो में कृषि उत्पादों के भंडारण के लिए विशेष व्यवस्था थी। यह सामाजिक संगठन और खाद्य सुरक्षा के उच्च स्तर को दर्शाता है।

3. नृत्य करती लड़की की मूर्ति

कांस्य से बनी यह छोटी मूर्ति विश्व प्रसिद्ध है और मोहनजोदड़ो की कला और शिल्प कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मूर्ति एक युवा लड़की को नृत्य की मुद्रा में दर्शाती है, जो उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की झलक प्रस्तुत करती है।

4. पुरुष योगी की मूर्ति

यह पत्थर से बनी मूर्ति एक ध्यानस्थ पुरुष को दर्शाती है, जिसे कुछ विद्वान “पशुपति” शिव का प्रारंभिक रूप मानते हैं। यह धार्मिक मान्यताओं और पूजा पद्धतियों के विकास को दर्शाता है।

5. मिट्टी के बर्तन और खिलौने

यहां से मिले विभिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तन, खिलौने, और अन्य घरेलू वस्तुएं उस समय के दैनिक जीवन और शिल्प कौशल की जानकारी प्रदान करते हैं।

6. लिपि और मुद्राएं

मोहनजोदड़ो से मिली अनेक मुद्राओं पर अंकित लिपि अभी तक पूर्ण रूप से पढ़ी नहीं जा सकी है। इन मुद्राओं पर विभिन्न पशुओं और प्रतीकों के चित्रण मिलते हैं, जो व्यापार और प्रशासनिक कार्यों में उपयोग होते थे।

सामाजिक जीवन

मोहनजोदड़ो का सामाजिक जीवन अत्यंत संगठित और संरचित था। यहां के लोग विभिन्न सामाजिक और आर्थिक वर्गों में विभाजित थे, जिनमें शासक, व्यापारी, कारीगर, किसान आदि शामिल थे। सामाजिक संरचना में समानता और न्याय पर विशेष जोर दिया गया था, जो यहां की उन्नत नगर योजना और सार्वजनिक सुविधाओं से स्पष्ट होता है।

धार्मिक जीवन: यहां के लोग विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते थे, जिनमें प्रकृति के तत्वों और पशुओं की विशेष महत्व था। महान स्नानागार जैसे संरचनाओं से पता चलता है कि जल को पवित्र माना जाता था और स्नान का धार्मिक महत्व था।

शिक्षा और कला: मोहनजोदड़ो के लोग कला और शिल्प में निपुण थे। यहां से मिली मूर्तियां, बर्तन, और अन्य कलाकृतियां उस समय की उच्च सांस्कृतिक स्तर को दर्शाती हैं। शिक्षा का भी महत्व था, हालांकि इसकी विस्तृत जानकारी अभी तक उपलब्ध नहीं है।

आवास और नगर योजना: यहां की नगर योजना अत्यंत उन्नत थी, जिसमें सीधी सड़कों, पक्के मकानों, और व्यवस्थित जल निकासी प्रणाली की व्यवस्था थी। मकान ईंटों से बने होते थे और उनमें आंगन, स्नानघर, और कुएं जैसी सुविधाएं उपलब्ध थीं।

आर्थिक जीवन

मोहनजोदड़ो का आर्थिक जीवन अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण था। यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन, शिल्प और व्यापार पर आधारित थी।

कृषि: सिंधु नदी के किनारे स्थित होने के कारण यहां की भूमि अत्यंत उपजाऊ थी। मुख्य फसलें गेहूं, जौ, दालें और कपास थीं। सिंचाई के लिए नहरों और कुओं का उपयोग किया जाता था।

पशुपालन: गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि पशुओं का पालन किया जाता था, जो दूध, मांस और ऊन के लिए उपयोगी थे।

शिल्प और उद्योग: यहां के लोग विभिन्न शिल्पों में निपुण थे, जैसे कि मिट्टी के बर्तन बनाना, वस्त्र निर्माण, धातु कार्य, आभूषण बनाना आदि। कांस्य और तांबे के उपयोग से बनी वस्तुएं उस समय की तकनीकी प्रगति को दर्शाती हैं।

व्यापार: मोहनजोदड़ो एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, जहां से वस्तुओं का आयात और निर्यात किया जाता था। व्यापारिक संबंध मेसोपोटामिया और फारस की सभ्यताओं से भी थे। यहां से मिली मुद्राएं और सीलें व्यापारिक गतिविधियों के प्रमाण हैं।

राजनीतिक जीवन

मोहनजोदड़ो का राजनीतिक जीवन अत्यंत संगठित और केंद्रीकृत था। यहां की शासन व्यवस्था के बारे में पूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन उत्खननों से मिले साक्ष्य बताते हैं कि एक मजबूत और व्यवस्थित प्रशासनिक तंत्र मौजूद था।

शासन व्यवस्था: संभवतः यहां पर एक केंद्रीयकृत शासन था, जिसमें शासक वर्ग द्वारा नगर का प्रबंधन किया जाता था। यह शासक वर्ग नगर योजना, सार्वजनिक सुविधाओं, और कानून व्यवस्था का संचालन करता था।

कानून और न्याय: यहां की व्यवस्थित सड़कों, भवनों, और सार्वजनिक संरचनाओं से पता चलता है कि एक सख्त कानून और न्याय व्यवस्था थी। सामाजिक न्याय और समानता पर विशेष ध्यान दिया जाता था।

सेना और रक्षा: मोहनजोदड़ो में सैन्य संरचनाओं के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं, जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां की सभ्यता शांतिप्रिय थी और रक्षा के लिए विशेष सेना का गठन नहीं किया गया था। हालांकि, यह भी संभव है कि प्राकृतिक बाधाओं और किलेबंदी के माध्यम से सुरक्षा सुनिश्चित की जाती थी।

निष्कर्ष

मोहनजोदड़ो एक अद्भुत और रहस्यमय सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है, जिसने अपने समय में उन्नति और विकास के नए आयाम स्थापित किए। यहां की उन्नत नगर योजना, समृद्ध संस्कृति, और संगठित सामाजिक जीवन आधुनिक समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। हालांकि, इस सभ्यता का पतन कैसे हुआ, यह अभी तक पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह निश्चित है कि मोहनजोदड़ो ने विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है।

इस प्राचीन शहर की खोज और अध्ययन ने हमें मानव सभ्यता के विकास की गहरी समझ प्रदान की है और यह साबित किया है कि प्राचीन काल में भी लोग अत्यंत उन्नत और संगठित जीवन व्यतीत करते थे। मोहनजोदड़ो आज भी इतिहासकारों, पुरातत्वविदों, और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करने का अवसर प्रदान करता है।

धन्यवाद!

मोहनजोदड़ो किस नदी के किनारे स्थित है?

मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के किनारे वर्तमान पाकिस्तान में स्थित है।

मोहनजोदड़ो कहां स्थित है?

मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के किनारे पाकिस्तान के लरकाना जिले में स्थित है।

मोहनजोदड़ो किस भाषा का शब्द है?

मोहनजोदड़ो सिंधी भाषा का शब्द है।

मोहनजोदड़ो का उत्खनन किसने किया था?

सर्वप्रथम उत्खनन राखलदास बनर्जी द्वारा तथा उसके उपरांत पुरातत्वविद् जॉन मार्शल, अर्नेस्ट मैके, और केएन दीक्षित सहित कई अन्य विशेषज्ञों ने यहां विस्तृत उत्खनन कार्य किया।

मोहनजोदड़ो की खोज किसने की?

मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी राखालदास बनर्जी द्वारा की गई थी।

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