भारतीय संविधान की प्रस्तावना और भारतीय संविधान की उद्देशिका एक ही है, भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करती हैं, यह प्रस्तावना ऑस्ट्रेलिया संविधान से ली गई है। सामान्य भाषा में भारतीय संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका संविधान का एक सार मानी जाती है। प्रस्तावना की प्रथम पंक्ति हम भारत के लोग से स्पष्ट होता है कि संविधान का स्रोत भारत की जनता है यह संविधान की अंतिम शक्ति भी भारत की जनता में ही निहित है। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973 में उच्चतम न्यायालय ने कहा की प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है तथा प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है लेकिन इसे संविधान का मूल धंसा प्रभावित नहीं होना चाहिए।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण
प्रभुत्व- संपन्न, समाजवादी,
पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक
गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की
स्वतंत्रता
प्रतिष्ठा और अवसर की समता,
प्राप्त करने के लिए,
तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और
राष्ट्र की एकता और अखंडता
सुनिश्चित करने वाली
बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में
आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई (मिती मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत 2006 विक्रमी) को एतद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका की प्रकृति
- गैर-बाध्यकारी प्रकृति:- उच्चतम न्यायालय ने यह सपस्थ किया की प्रस्तावना या उद्देशिका संविधान का अभिन्न अंग है किन्तु यह प्रत्यक्ष रूप से लागू नहीं होता, किसी अनुच्छेद की जटिलता को समझने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।
- गैर – न्यायकारी:- भारतीय संविधान की प्रस्तावना से संबंधित उच्चतम न्यायालय में किसी भी प्रकार का वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता और न ही प्रस्तावना को लागू किया जा सकता।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना राज्य के तीनों अंगों को किसी भी प्रकार की शक्ति प्रदान नहीं करती है अर्थात उन्हें शक्ति संविधान के द्वारा प्रदत अनुच्छेदों से प्राप्त होती है।
प्रस्तावना के शब्दों का विश्लेषण तथा विशेषता
1. “हम, भारत के लोग”:
“हम भारत के लोग” स्पष्ट करता है कि भारतीय संविधान की संप्रभुता भारतीय जनता में निहित है। इसका अर्थ है कि संविधान भारत के लोगों द्वारा, उनके लिए और उनकी स्वीकृति से बनाया गया है। इसमें लोकतंत्र की भावना निहित है।
2. “संप्रभु”:
इसका अर्थ है कि भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है, जो किसी अन्य विदेशी सत्ता या शक्ति के अधीन नहीं है। भारत अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम है और अपने आंतरिक और बाहरी मामलों में पूर्ण स्वतंत्रता रखता है।
3. “समाजवादी”:
समाजवादी शब्द से यह अर्थ है कि राज्य का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक समानता स्थापित करना है। समाजवादी व्यवस्था में संसाधनों का समान वितरण और हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने पर जोर दिया जाता है।
4. “धर्मनिरपेक्ष”:
यह शब्द यह सुनिश्चित करता है कि राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों के प्रति राज्य एक समान रहेगा। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता है, और राज्य सभी धर्मों का समान सम्मान करेगा और किसी एक धर्म को बढ़ावा नहीं देगा।
5. “लोकतांत्रिक”:
भारत का संविधान लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाता है, जहां जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन करते हैं। इसमें हर नागरिक को मतदान का अधिकार है, और सरकार की नीति-निर्धारण में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। जनता प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से अपना शासन चलाती है।
6. “गणराज्य”:
गणराज्य का अर्थ है कि भारत का प्रमुख (राष्ट्रपति) वंशानुगत नहीं है, बल्कि जनता द्वारा चुना जाता है। इसमें सर्वोच्च पद पर नियुक्ति जनता की इच्छा के अनुसार होती है, न कि किसी वंश के आधार पर।
7. “न्याय”:
संविधान की प्रस्तावना में तीन प्रकार के न्याय की बात करती है:
- सामाजिक न्याय: समाज में हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिले।
- आर्थिक न्याय: आर्थिक संसाधनों का समान वितरण हो और गरीबी, बेरोजगारी, और शोषण का उन्मूलन हो।
- राजनीतिक न्याय: सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों, जिससे वे देश की शासन प्रक्रिया में भाग ले सकें।
8. “स्वतंत्रता” (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की):
भारतीय संविधान की प्रस्तावना नागरिकों को उन सभी क्षेत्रों में स्वतंत्रता प्रदान करती है जिनसे उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है। इसमें विचारों की स्वतंत्रता, अपनी बात रखने की स्वतंत्रता, धर्म मानने या न मानने की स्वतंत्रता शामिल है।
9. “समानता” (स्थिति और अवसरों की):
संविधान समानता का अधिकार सुनिश्चित करता है, जिससे सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समान माना जाता है। इसमें किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकने की बात की गई है और यह सुनिश्चित किया गया है कि सभी को समान अवसर मिलें।
10. “बंधुत्व”:
बंधुत्व का अर्थ है कि देश के सभी नागरिकों के बीच आपसी भाईचारे और सद्भाव का भाव हो। यह व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने का प्रयास करता है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) का उद्देश्य
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) का उद्देश्य संविधान के मूल सिद्धांतों और आदर्शों को स्पष्ट करना है।
- संविधान की मूल भावना का परिचय: प्रस्तावना संविधान का आधारभूत ढांचा प्रस्तुत करती है तथा संविधान की मूल भावना को संक्षेप में प्रस्तुत करती है।
- संप्रभुता और स्वतंत्रता की पुष्टि: यह भारतीय नागरिकों की स्वतंत्रता की पुस्ति करती है।
- सामाजिक, आर्थिकऔर राजनीतिक न्याय का संवर्धन: प्रस्तावना का उद्देश्य भारतीय समाज में न्याय की स्थापना करना है। इसमे तीन प्रकार के न्याय का उल्लेख है।
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण: प्रस्तावना जो विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, और उपासना की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है। इसका उद्देश्य यह है कि नागरिकों को बिना किसी डर या बाधा के अपने विचार और विश्वास व्यक्त करने की स्वतंत्रता हो।
- बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देना: भारतीय संविधान की प्रस्तावना का उद्देश्य भारत के हर कोने में प्रत्येक व्यक्ति में बंधुता को बढ़ावा देना है।
- राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखना
नोट:- 26 जनवरी 1950 को प्रस्तावना में पंथ- निरपेक्ष एवं समाजवादी शब्द शामिल नहीं थे।
प्रस्तावना से संबंधित कथन
- ठाकुरदास भार्गव:- प्रस्तावना संविधान की आत्मा ही नहीं आभूषण है
- नानी पालकी वाला:– प्रस्तावना संविधान का परिचय पत्र है
- K.M. मुंशी:- प्रस्तावना संविधान की राजनीतिक कुंडली है
- मोहम्मद हिदायतुल्लाह:- प्रस्तावना संविधान की मूल आत्मा है
- अर्नेस्ट बार्कर:- प्रस्तावना संविधान की कुंजी है।
- संविधान के भाग 3 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान की आत्मा कहा है।
- भाग 4 को ग्रीनवील ऑस्टिन ने संविधान की आत्मा कहा है।
- अनुच्छेद 32 को अंबेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है।
संविधान की प्रस्तावना के अंगीकृत होने की दिनांक
दिनांक | 29 नवंबर 1949 |
हिन्दू तिथि | मिती मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत 2006 विक्रमी |
अंगीकृत | स्वीकार करना |
अधिनियमित | लागू करना |
आत्मार्पित | स्वंय को समर्पण |
संविधान की प्रस्तावना से संबंधित बाद और संशोधन
बेरुबारी वाद: 1960
उच्चतम न्यायालय ने कहा की प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है और ना ही प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है लेकिन संविधान के किसी भी अनुच्छेद की भाषा संदिग्ध लगे तो प्रस्तावना से सहायता ली जा सकती है।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है, प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है लेकिन संविधान का मूल ढांचा प्रभावित नहीं हो
42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया गया एवं तीन शाब्दिक शब्द जोड़े गए 1. समाजवाद 2. पंथनिरपेक्ष और 3. अखंडता
LIC ऑफ़ इंडिया बनाम भारत संघ 1995
प्रस्तावना में उल्लेखित प्रावधानों से विधायिका को कोई भी शक्ति प्राप्त नहीं होती।
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संविधान की उद्देशिका का अर्थ
भारतीय संविधान की उद्देशिका संविधान के उद्देश्यों और मूल सिद्धांतों का संक्षिप्त परिचय देती है। यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है। उद्देशिका नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व की गारंटी देती है। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने का मार्गदर्शन करती है।
संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका क्या है
भारतीय संविधान की उद्देशिका संविधान का प्रारंभिक हिस्सा है, जो इसके उद्देश्यों और आदर्शों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। इसमें भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया है। उद्देशिका नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की गारंटी देती है। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त करती है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना किसने लिखी?
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) को संविधान सभा द्वारा सामूहिक रूप से तैयार किया गया था, लेकिन इसका मसौदा डॉ. भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने तैयार किया।
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