जयपुर का इतिहास: Jaipur History In Hindi

जयपुर का इतिहास काफी प्राचीन है, जयपुर की स्थापना महाराज जय सिंह द्वारा की गई थी, वर्तमान मे जयपुर राजस्थान की राजधानी है साथ ही यह पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। जयपुर को भारत का पैरिस, दूसरा वृंदावन और गुलाबी नगरी के नाम से भी जाना जाता है। जयपुर शहर को यूनेस्को की वर्ल्ड हैरिटेज सिटी मे शामिल किया गया है। आज हम इस पोस्ट में आपको राजस्थान की राजस्थान जयपुर का इतिहास बताएंगे। जयपुर का इतिहास यह भी पढे : अलवर का इतिहास

जयपुर का इतिहास, Jaipur History in Hindi
जयपुर का इतिहास, Jaipur History in Hindi

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जयपुर का इतिहास: Jaipur History In Hindi

जयपुर शहर का पूर्व नाम जयनगर था। ‘भारत का पेरिस’, ‘दूसरा दिन में शब्द न होने के कारण प्रिंस ने पहली बार शहर को देखकर पिंक ‘वृन्दावन’ व ‘गुलाबीनगर’ के नाम से प्रसिद्ध जयपुर नगर का सिटी शब्द का उपयोग किया। विशप वेबर ने इस नगर के बारे में कहा था कि निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 18 नवम्बर सन 12.22 को नगर का परकोटा मास्को के केमलिन नगर के समान है। 6 जुलाई, 2019 को ‘जयपुर शहर परकोटे’ को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है, जो शहर की इस विश्व विरासत सूची में शामिल होने वाली तीसरी विरासत है। इससे पूर्व जंतर-मंतर एवं आमेर दुर्ग को इस सूची में शामिल किया जा चुका है | जयपुर का इतिहास

प्रख्यात बाणतो वास्तुशिल्पी विद्याधर भट्टाचार्य के निर्देशन में नौ वर्गों एवं 901 को विद्वान पर करवाया गया। ये भी चौकड़ियाँ थीं- चौकड़ी सरहद , चौकड़ी रामचन्द्रजी चौकड़ी गंगापोल, चौकड़ी तोपखान हिजूरी चौकड़ी घाट दरवाजा, चौकड़ी विश्वेश्वरी, चौकड़ो मोदीखाना चौकड़ी तोपखाना देश एवं चौकी क्षेत्रफल : 11143 वर्ग कि.मी. पुरानी बस्ती। जयपुर नरेश सवाई रामसिंह द्वितीय (1835-80) ने जयपुर की सभी इमारतों पर सन् 1876 में इंग्लैण्ड के प्रिंस अलबर्ट एडवर्ड (बाद में सम्राट एडम) के जयपुर आगमन पर गुलाबी रंग करवाया। तभी से जयपुर “गुलाबी नगर  कहलाने लगा। जयपुर की दीवारों पर लगा गेरुआ रंग कानोता के पास ईंट के भट्टों से लाया गया। गेरू रंग के लिए इंग्लिश डिक्शनरी मे शब्द ना होने के कारण प्रिंस ने पहली बार शहर को देखकर पिंक सिटी शब्द का उपयोग किया। बिशप हैबर ने इस नगर के बारे में कहा था की नगर का परकोटा मास्को के क्रे मलिन नगर के समान है। 6 जुलाई, 2019 को’जयपुर शहर परकोटे’ को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची मे शामिल किया गया है। जो शहर की इस विश्व विरासत सूची में शामिल होने वाली तीसरी विरासत है। इससे पूर्व जंतर- मंत्र, आमेर दुर्ग को इस सूची में शामिल किया जा चुका है। जयपुर का इतिहास

जयपुर का इतिहास: संक्षिप्त विवरण

देश भारत
राज्य राजस्थान
निर्माण समय18 नवम्बर 1727
निर्माण कर्तों सवाई जय सिंह
प्राचीन नाम जयपुरी , जयपूरिया
उपनाम गुलाबी नगर तथा भारत का पेरिस
गुलाबी रंग राम सिंह ||
जनसंख्या 3,812,262
जयपुर का इतिहास

जयपुर प्रमुख मंदिर

गलताजी मंदिर

“जयपुर के बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध प्राचीन पवित्र कुण्ड  | यहाँ गालव ऋषि का आश्रम था। वर्तमान में बंदरों को अधिकता के कारण यह monkey valley के नाम से प्रसिद्ध है। गलता  को ‘उत्तर तोतअदृ  माना जाता है। संत कृष्णदास पयहारी ने यहा  रामानन्दी सम्प्रदाय की पीठ को स्थापना की। मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा को गलत  स्नान का विशेष सहा है। पर्वतको सम ऊंचाई पर सूर्य मंदिर (दोवान कृपाराम द्वारा निर्मित है। लवाजी स्थित एक भवन में 18वीं सदी के मनभावन भित्ति चित्र (fresco paintings) बने हुए हैं, जो रागमाला पर आधारित हैं। ये प्लास्टर पर की गई चित्रकारी को मोम आदि से सुरक्षित किया गया है। गलताजी में कृष्णदास पयहारी जी की गुफा एवं अखण्ड श्रेणी का अस्तित्व वर्तमान समय में भी है। कृष् सात मंदिरों युक्त इस तीर्थ स्थान को तीन प्रमुख विशेषताएं है अखंड जल, अखंड पूणी एवं अखंड जोति (450 वर्ष पूर्व स्वामी जी द्वारा स्थापित)। यहाँ कुल सात मंदिर है- 1. गालव ऋषि का मंदिर, 2. सीताराम का मंदिर, रघुनाथजी का मंदिर, 4. रामकुमार जी का मंदिर 5. नृत्य गोपाल जी का मंदिर 6. रामगोपाल जी का मंदिर एवं 2. विजमंदिर इसके अलावा यहाँ प्राचीन सूर्य मंदिर भी विद्यमान है। गलताजी में शेष मत पाले बाबा अलखनाथ का पुराना मत भ के हनुमानजी, पापड़ वाले हनुमानजी परकोटे पाले हनुमानजी कुण्ड के हनुमानजी कोयार के हनुमानजी, पंचमुखी हनुमानजी आदि हनुमान मंदिर विघमान है | जयपुर का इतिहास

 देवयानी, जयपुर

हनुमानजी आदि हनुमान मंदिर भी विद्यमान है। यह सांभर के निकट देवयानी ग्राम में स्थित एक पौराणिक तीर्थ है। यहाँ प्रसिद्ध देवयानी कुण्ड है, जिसमें वैशाख पूर्णिमा को विशाल स्नान पर्व का आयोजन होता है।

शीतला  माता का मंदिर, चाकसू,

चाकसू (प्राचीन नाम चम्पावती या ताम्बावती) में शील की गरी नामक पहाड़ी पर चेचक से रक्षा करने वाली अधिष्ठात्री देवी शीतला माता का मंदिर है। यह मंदिर जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह जी द्वितीय ने बनवाया था। शीतला माता पुजारी कुम्हार होता है। शीतला माता खंडित अवस्था में पूजी जाने वाली एकमात्र देवी है। ‘गधा’ इस देवी का वाहन माना जाता है। शीतलाष्टमी (चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी) को यहाँ विशाल मेला लगता है। सप्तमी को वास्योड़ा मनाते हैं बासी भोजन तैयार करते हैं एवं अष्टमी को बासी भोजन से ही माता का भोग लगाते हैं एवं समस्त परिवारजन बासी भोजन हो खाते हैं। इस दिन (अष्टमी को गर्म भोजन तैयार नहीं किया जाता। जयपुर का इतिहास

गणेश मंदिर गोविन्द देव जी मंदिर

जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर मोती डूंगरी की तलहटी में गणेश जी का मंदिर स्थित है, जो महाराज माधोसिंह प्रथम के काल में बनाया गया। प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी पर मंदिर में विशाल मेला लगता है। जयपुर का इतिहास

बिरला मंदिर [लक्षमी नारायण मंदिर ]

इसका निर्माण प्रसिद्ध उद्योगपति गंगाप्रसाद बिड़ला के हिन्दुस्तान चैरिटेबल ट्रस्ट ने करवाया है। मंदिर का एक और आकर्षण है- बी.एम. बिड़ला संग्रहालय इसमें भारत के औद्योगिक विकास तथा राजस्थानी वेशभूषा के क्रमबद्ध विकास की सजीव झांकी देखने को मिलती है। जयपुर का इतिहास

श्री गोविन्द देव जी मंदिर

गौड़ीय सम्प्रदाय के इस मंदिर का निर्माण सन् 1735 में जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया तथा यहाँ वृंदावन से लाई गोविंद देवजी को प्रतिमा प्रतिस्थापित की गई। यह मंदिर सिटी पैलेस के पीछे बने जयनिवास बगीचे के मध्य स्थित है। इस मंदिर में बना हुआ बिना खम्भों का सत्संग भवन दुनिया का सबसे बड़ा बिना खम्भों का सत्संग भवन होने का रिकॉर्ड बना चुका है। गौडीय सम्प्रदाय के स्वरूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में सखी ललिता व विशाखा की भी मूर्तियां स्थापित है। जयपुर का इतिहास

जगत शिरोमणि मंदिर आमेर

 इस मंदिर का निर्माण राजा मानसिंह प्रथम को रानी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह [ जो वि. संवत् 1656 या सन् 1599 ई.पुस्तकों में 1594 में) में असमय मृत्यु को प्राप्त हुए थे] की याद में करवाया था। यह आमेर राज्य का सबसे अधिक एवं भव्य प्रासाद है। कहा जाता है कि इस मंदिर के गर्भगृह में वही मूर्ति है, जिसकी मीरा आराधना किया करती थी। कृष्ण की इस काली मूर्ति को मानसिंह जी चित्तौड़ विजय के पश्चात् यहाँ लाए थे। इसे स्थानीय लोग लालजी का मंदिर भी कहते हैं। इस मंदिर के गर्भगृह के सामने एवं ऊँची पीठिका पर स्तम्भ युक्त चतुष्कोण मण्डप गृह (जिसे गरुड़ छतरी भी कहते हैं) बना हुआ है, जिसके मध्य में गरुड़ पीठिका है। जयपुर का इतिहास

ऑबिकेश्वर महादेव मंदिर

यह प्राचीन व भव्य मंदिर आमेर में पन्ना मीणा कुण्ड के पास स्थित है जो 10वीं सदी में निर्मित है। प्रारंभ में इसका पु कच्छवाहा शासक काकिल देव ने करवाया था। यह मंदिर जमीन की सतह से लगभग 15 फीट गहराई में स्थित है। यहाँ स्थित शिवलिंग ‘स्वयंभू’ माने जाते हैं। जयपुर का इतिहास

बिहारी जी का मंदिर

अधिश्वर मंदिर से थोड़ा आगे पन्ना मीणा कुण्ड के पास ही खेड़ी द्वार के पहले बिहारीजी का मंदिर स्थित है। राजा जयसिंह के राजकवि बिहारी यहाँ बैठकर काव्य रचना करते थे। जयपुर का इतिहास

संघी झूँथाराम का जैन मंदिर [ वर्तमान शिव मंदिर ]

आमेर जगत शिरोमणि मंदिर मार्ग पर सुदृढ़ परकोटा युक्त यह विशाल मंदिर जैन तीर्थंकर विमलनाथ स्वामी को समर्पित था। इसका निर्माण मिर्झा राजा जयसिंह के दोषान (प्रधानमंत्री) सोहनदास खण्डेलवाल ने 1657 ई. में करवाया था। इस पर उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार उस समय अर नगर का नाम ‘अम्बावती नगर’ था। मुख्य वेदी पर जैन प्रतिमाएँ स्थापित नहीं हो सकी थी। बाद में सवाई रामसिंह द्वितीय के काल में इन पर 12 शिवलिंग प्रतिष्ठित कराये गये, अतः यह द्वादश ज्योतिलिंगेश्वर महादेव मंदिर कहलाता है।

कुंजबिहारी का मंदिर

कनक घाटी (जयपुर) में समाधि बाढ़ी (गोविंद देवजी के महन्तों का पारिवारिक समाधि स्थल ) के सामने आमेर रोड पर स्थित मंदिर | जयपुर का इतिहास

राधा- मधव मंदिर

आमेर रोड पर कलक थाती में स्थित इस विशाल मंदिर में राधा-माधव जी के विग्रह देवों के गोस्वामी जी के पूर्वजों द्वारा वृंदावन से यहाँ लाये गये थे। ये विग्रह कवि जयदेव के सेव्य माने जाते हैं। ऊँची जगती पर निर्मित इस विशाल भव्य मंदिर पर मुगल व राजपूत शैली का सम्मिश्रण दिग्दर्शित होता है।

आमेर को शिलामाता का मंदिर (अन्नपूर्णा देवी)

आमेर के राजप्रसाद के जलेब चौक के दक्षिण-पश्चिम कोने में शिलादेवी का दुग्ध धवल मंदिर है। शिलामाता कच्छवाहा राज परिवार की आराध्य देवी है। शिलामाता की यह मूर्ति पाल शैली में काले संगमरमर में निर्मित है। इस मूर्ति को जयपुर के महाराजा मानसिंह प्रथम 1604 ई. से बंगाल में लाये थे। वर्तमान में बने मंदिर का निर्माण सवाई मानसिंह (1922-1949) ने करवाया था। यह मूर्ति बंगाल में राजा केदार कायथ के राज्य में पूजान्तगंत थी। मूर्तिकी यह प्रसिद्धि क यह मूर्ति पूजित होती है उसे कोई जीत नहीं सकता। महाराजा मानसिंह राजा केदार से ही यह मूर्ति लाए थे। यहाँ राजपरिवार की और से सर्वप्रथम पूजा करने के बाद ही जनसामान्य के लिए मंदिर के द्वार खुलते हैं। नवरात्रों में यहाँ रूठ और अष्टमी के मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर में महियमर्दिनी दुर्गा की श्याम पाषाण निर्मित शूल से दैत्य पर प्रहार करती हुई प्रतिमा है। इन्हें देवी काली का तांत्रिक रूप भी कहते हैं। इस मंदिर में शिलादेवी के संग हिंगलाज माता का मंदिर भी है।

चूलगिरी के जैन मंदिर

जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग-11 पर जयपुर शहर के बाहर ऊँची पहाड़ी पर ये जैन मंदिर है। इसका निर्माण जैन आचार्य देशभूषण जी महाराज की प्रेरणा से कराया गया। यहाँ मंदिर के मूल नायक पार्श्वनाथ भगवान है। जयपुर का इतिहास

पदमप्रभु मंदिर

जयपुर नगर से 35 किमी. दूर ग्राम पद्मपुरा (शिवदासपुरा) में यह विशाल दिगम्बर जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र है। यहाँ चमत्कारी ढंग से भगवान पदम् प्रभु की प्रतिमा भूमि से प्रकट हुई थी।

 मंदिर श्रीमाताजी मलियन यह मंदिर आमेर में स्थित है। जयपुर का इतिहास

 नकटी माता का मंदिर

•जयपुर के निकट अजमेर रोड पर जय भवानीपुरा में ‘नकटी माता’ का प्रतिहारकालीन मंदिर है।

खलाणी माता का मंदिर

जयपुर के निकट शिपायास ग्राम के पास भाषगढ़ बंच्या ग्राम में खलकाणी माता का प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ पिछले 500 वर्षों से अक्टूबर माह में प्रतिवर्ष ‘गदर्भ मेला’ (ग व खच्चरों का मेला आयोजित होता है। प्राचीन समय में यह मंदिर कल्याणी माता के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध था | जयपुर का इतिहास

 जमुवाय माता का मंदिर

जयुपर के निकट जमुवारामगढ़ में रामगढ़ बाँध से आंधी जाने वाले रास्ते पर स्थित इस मंदिर का निर्माण कछवाहा वंश के संस्थापक दुलहराय ने करवाया था। जमुवाय माता आमेर के कछवाहों की कुल देवी है। इन्हीं देवी के आशीर्वाद से दुलहराय नेमांच के मीणा शासकों को परास्त कर इस क्षेत्र पर अपना शासन स्थापित किया था तथा जमवारामगढ़ को अपनी पहलीराजधानी बनाया था। उससे पहले यह स्थान बुडवाय माता का मंदिर नाम से जाना जाता था | जयपुर का इतिहास

वमदेव मंदिर

जयपुर जिले को शाहपुरा तहसील के मनोहरपुर कस्बे के मध्य स्थित राज्य का भगवान वामन का एकमात्र वामनदेव मंदिर वास्तुकला का नायाब नमूना है।

अकबरी मॅजिद

 यह जामा मस्जिद राजा भारमल ने आमेर में सन् 1569 में बनवाई।

कल्की मंदिर

जयपुर में कलयुग के अवतार कल्की भगवान का ऐतिहासिक विष्णु मंदिर है। यह मंदिर संसार का पहला कल्की मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने करवाया। जयसिंह के दरबारी कवि कलानिधि देवर्षि श्री कृष्ण भट्ट ने भी ईश्वर विलास महाकाव्यम में कल्की अवतार का उल्लेख किया है। जयपुर का इतिहास

बृहस्पति मंदिर

राजस्थान का प्रथम बृहस्पति मंदिर जहाँ बृहस्पति भगवान की सवा पांच फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है। बृहस्पति का रंग पीला माने जाने के कारण इस मूर्ति का निर्माण जैसलमेर के पीले पत्थरों से कराया गया है। देश का प्रथम बृहस्पति मंदिर उज्जैन में है। आमेर में स्थापित इस मंदिर की प्रतिष्ठा राजा पृथ्वीराज की रानी बालाबाई के गुरु कृष्णदास पयहारी ने नृसिंह की शालिग्राम रूप की मूर्ति को एक कक्ष में प्रतिष्ठित कर की थी। जयपुर का इतिहास

नृसिंह मंदिर

आमेर में स्थापित इस मंदिर की प्रतिष्ठा राजा पृथ्वीराज की रानी बालाबाई के गुरु कृष्णदास पयहारी ने नृसिंह की शालिग्राम रूप की मूर्ति को एक कक्ष में प्रतिष्ठित कर की थी। का मंदिर जोबनेर कस्बे में ज्वाला माता का प्राचीन शक्तिपीठ है। ज्याला माता खंगारोतों की कुल देवी है।

ज्वाला माता का मंदिर

जोबनेर कस्बे में ज्वाला माता का प्राचीन शक्तिपीठ है। ज्वाला माता खंगारोतों की कुल देवी है।

सूर्य मंदिर

आमेर स्थित इस मंदिर का निर्माण इस पर उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार वि.सं. 1011 माघ शुक्ला एकादशी (954 ई.) को किया गया था। जयपर का इतिहास

जयपुर के प्रमुक पर्यटन स्थल

जयपुर का हवामहल

हवामहल ( पैलेस ऑफ विम्ट्स) को जयपुर महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने लाल व गुलाबी बलुई पत्थर से करवाया था। वास्तुविद् लालचन्द उस्ताद ने केवल स गुलाबी नगरी के प्रतीक के रूप में विख्यात हुए हवामहल का निर्माण के खेतड़ी महल की बनावट से प्रभावित हो सन् 1799 की दीवार के सहारे इस मंजिले पिरामिड आकार की खिड़कियों व ताखों से युक्त भवन का निर्माण किया। इसको पहली से पाँचवीं मंजिलों के नाम क्रमशः शरद मंदिर, रतन मंदिर, विचित्र मंदिर, प्रकाश मंदिर और हवामंदिर है। सबसे निचली मंजिल पर स्थित प्रताप मंदिर’ महाराजा प्रतापसिंह का निजी कथा यहाँ बैठकर वे श्री कृष्ण की आराधना करते थे। वह हवामहल के पर स्थित है। देशी निर्माण पद्धति से निर्मित हवामहल में प्रकाश व वायु संचार की अत्यंत आकर्षक एवं समुचित व्यवस्था है। यह महल राजपूत वास्तुकला एवं मुगल वास्तुकला का सुंदर समन्वय है। इस महल के पिछले हिस्से में राज्य सरकार द्वारा 1983 ई. से हवामहल म्यूजियम का संचालन किया जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि हवामहल का सामने वाला भाग भगवान कृष्ण के मुकुट के आकार में बनाया गया है। जयपुर का इतिहास

हवामहल में ऊपर की मंजिलों में जाने के लिए सीढ़ियाँ नहीं है बल्कि ढलान वाले रास्ते बने हुए हैं। उन्हीं के रास्ते ऊपर जाना होता है। यह कृष्ण के मुकुट के आकार का है। यह दूर से मुधमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देता है। इसमें जाने के लिए सामने से कोई रास्ता नहीं है बल्कि इसमें सिटी पैलेस की तरफ से प्रवेश द्वार बनाया गया है। इसके निर्माण का प्रमुख उद्देश्य रॉयल फैमिली की रानियों एवं कोर्ट को जौहरी बाजार एवं बड़ी चौपड़ के व्यस्त बाजार की रौनक के दिग्दर्शन कराना था हवामहल का प्रवेश द्वार पश्चिम की तरफ (सिटी पैलेस की ओर) है, जिसे ‘आनंद पोल कहते हैं। प्रवेश करने के बाद भीतरी चौक में सफेद पाषाण पर चन्द्रमौलि अंकित होने के कारण उसे चन्द्रपोल द्वार के नाम से पुकारा जाता है। निचली मंजिल पर ही महाराजा सवाई प्रतापसिंह का निजी कक्ष है, जिसे प्रताप मंदिर कहते हैं। इनको पाँचों व सबसे ऊपरी मंजिल ‘हवा मंदिर’ अर्द्धचन्द्राकार स्वरूप में बनी हुई है। जयपुर का इतिहास

हवामहल के लिए एडविन अर्नोल्ड ने कहा है कि” अल्लादीन का जादू चिराग भी इससे अधिक मोहक निवास स्थान की सृष्टि नहीं कर सकता और न ही पेरी बेनान का रजतमुक्ता महल इससे अधिक सुरम्य रहा होगा।” हवामहल को 1968 ई. में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। जयपुर का इतिहास

जलमहल

जयपुर- आमेर मार्ग पर मानसागर झील में स्थित जल महल के निर्माण का श्रेय सवाई जयसिंह द्वितीय को दिया जाता है। सवाई जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति हेतु गर्भावती नदी पर बाँध बनवा कर मानसागर तालाब बनवाया। कहा जाता है कि सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ में आमंत्रित ब्राह्मणों के भोजन व विश्राम की व्यवस्था इसी जलमहल में कराई थी। सवाई प्रतापसिंह ने इन महलों को आधुनिक रूप दिया। यह महल झील के बीचों-बीच स्थित है। अतः इसे ‘ आई बॉल’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंदर पाँच मंजिलें हैं जिनमें से चार पानी के अंदर हैं। राजस्थान सरकार ने इसे संरक्षित पुरातात्विक क्षेत्र घोषित कर दिया है।

 सिटी पैलेस (चन्द्रमहल)

यह जयपुर राजपरिवार का निवास स्थान था। दीवाने आम में महाराजा का निजी पुस्तकालय (पोथीखाना) एवं शस्त्रागार ( सिलहखाना) है। इसका मुख्य प्रवेश द्वार गैंडा की ड्योढ़ी कहलाता है, जिसे आज वीरेन्द्र पोल भी कहते हैं। पूर्व के मुख्य द्वार को सिरह ड्योढ़ी कहते हैं। सिटी पैलेस में निम्न महल कोर्टयार्ड व इमारते हैं

1. चन्द्रमहलः राजपरिवार का निवास 2. मुबारक महलः अतिथि गृह 3. प्रीतम निवास चौक 4. दीवान-ए-आम (सभा निवास) 5. दीवान-ए-खास 6. बग्घी खानाः विभिन्न प्रकार के वाहनों का म्यूजियम 7. महारानी पैलेस रानियों का मह 8. गोविन्द देवजी मंदिर १. जलेब चौक जयपुर का इतिहास

सिटी पैलेस को प्रमुख बिल्डिंग’चंद महल’ है। ये सात मंजिला पिरामिडनुमा भव्य इमारत है, जो राजपूत शैली में बनी हुई है। चन्द्र महल का निर्माण सन् 1229-32 के बीच सवाई जयसिंह द्वारा विद्या) के निर्देशन में करवाया गया था। इस महल के दीवाने खास में चांदी के दो बड़े कलश ‘गंगाजल’ आकर्षण का केन्द्र । इन्हें सन् 1902 में सम्राट सप्तम के राज्याभिषेक समारोह में भाग लेने जाते समय महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय पवित्र गंगाजल से भरकर ले गए थे। ये दुनिया में चाँदी के सबसे बड़े बर्तनों के रूप में गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हैं। सिटी पैलेस का वास्तुकार याकूब था। जयपुर का इतिहास

सिटी पैलेस के तीन रास्ते हैं-1. पुराना रास्ता जन्तर-मंतर की तरफ से वीरेन्द्र पोल होकर राजमहल प्रांगण तक है। 2. नया रास्ता जलेबी चौक से अयोध्या पोल होकर है13. तीसरा त्रिपोलिया द्वार से होकर है, जिसमें केवल राज परिवार के सदस्य हो आ-जा सकते हैं। चन्द्रमहल की सबसे निचली मॉजल (भूतल) पर चन्द्र मंदिर बना हुआ है। इसके बरामदे की दीवारों पर जयपुर महाराजाओं के आदमकद आकर्षक चित्र बने हुए हैं। इसी के पास प्रीतम निवास व धिधि पोल है, जो सवाई प्रताप सिंह जी ने बनवाये थे। जयपुर का इतिहास

चन्द्रमहल की सबसे निचली मंजिल को म्यूजियम के रूप में खुला रखा गया है। इसकी दूसरी मंजिल पर ‘सुख निवास’ महल है। ठोसरी मंजिल पर प्रीतम निवास महल, चौथी मंजिल ‘शोभा निवास’ है, जिसमें बैठकर ही यहाँ के महाराजा दीपावली पूजन करते थे। पांचवीं मंजिल पर ‘छवि निवास’ छठी पर श्री निवास एवं सातवीं मंजिल पर ‘मुकुट मंदिर है, जहाँ से समस्त जयपुर का विहंगम दृश्यावलोकन होता है। चन्द्रमहल को महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय द्वारा 1959 में संग्रहालय का रूप दिया गया, जिसे वर्तमान में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। जयपुर का इतिहास

सर्वतोभद्र महल

सिटी पैलेस परिसर में स्थित इस महल को दीवाने खास भी कहा जाता है। इसे सामान्य जन सरबता कहते थे। इसी के पास ताल कटोरा झील के किनारे बादल महल स्थित है, जो जयपुर बसने से पूर्व से स्थित शिकार की ओदी को महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा विस्तृत व पुननिर्मित कर बनवाया गया था। सर्वोतोभद्र महल में यहाँ के महाराजा शरद पूर्णिमा को दरबार लगाते थे। देवषि कृष्ण भट्ट ने अपने महाकाव्य ‘ईश्वर विलास’ में लिखा है कि सवाई जयसिंह ने इसी महल में ईश्वरीसिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। महाराजा प्रतापसिंह के समय खाने के चित्रकार एवं पोथीखाने के ग्रंथकार इसी सभा मण्डप में बैठकर अपना कार्य करते थे। जयपुर का इतिहास

मुबारक महल

(वैलकम पैलेस)जयपुर राजप्रासाद परिसर (सिटी पैलेस) में स्थित इस महल का निर्माण महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने सर स्वींटन जैकब के निर्देशन में करवाया था। रियासत के मेहमानों को ठहराने के लिए सन् 1900 में निर्मित इस महल में मुगल, यूरोपीय और राजपूत स्थापत्य कला का अद्भुत समन्वय है। इसमें 1911 में किंग एडवर्ड सप्तम एवं क्वीन एलेकजेण्ड्रा तथा 1922 में प्रिंस ऑफ वेल्स ठहरे थे। मुबारक , महल की दक्षिण दिशा में पूरबियों की ड्योढ़ी’ है। पूर्व की ओर विशाल दरवाजे को ‘गण्डा की ड्योढ़ी’ (या वीरेन्द्र पोल) कहते हैं। मुबारक महल को सर्वतोभद्र महल से जोड़ने वाला द्वार ‘सरहद की ड्योढ़ी’ कहलाता है। इसे राजेन्द्र पोल भी कहते हैं। जयपुर का इतिहास

प्रीतम निवास

चंद्रमहल के दक्षिण में भव्य प्रीतम निवास बना हुआ है, जिसे सवाई प्रतापसिंह ने बनवाया था।

माधो निवास

चंद्रमहल के पश्चिम में निर्मित महल जिसका पश्चिमी भाग माधोसिंह प्रथम (1750-68 ई.) तथा शेष भाग रामसिंह द्वितीय ने बनवाया।

जय निवास उद्यान

चंद्र महल के सामने स्थित उधन जिसे महाराजा सवाई जी सिंह ने बनवाया इस उधन के उत्तर मे ताल कटोरा है इस उड़ान के ठीक माधव में गोविंद देव जी का मंदिर बना बना हुआ है | जयपुर का इतिहास

 सवाई मानसिंह संग्रहालय

इस संग्रहालय की स्थापना सन् 1959 में पूर्व नरेश मानसिंह -11 ने की थी।

आमेर के महल

अकबर के सेनापति व नवरत्नों में से एक कछवाहा राजा मानसिंह द्वारा 1592 में निर्मित ये महल हिन्दु-मुस्लिम शैली के समन्वित रूप हैं। यहाँ का शीशमहल, शिलामाता का मन्दिर, यश मंदिर, सुहाग मंदिर, जगत शिरोमणि मन्दिर प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं। ये आमेर की मावठा झील के पास पहाड़ी पर स्थित हैं। यहाँ प्रसिद्ध मावठा जलाशय तथा दिलाराम बाग व संग्रहालय स्थित है। मावठा तालाब में सुंदर केसर क्यारियाँ हैं जिन्हें मोहनबाड़ी भी कहते हैं।

मुगल बादशाह बहादुरशाह प्रथम (शाहजादा मुअज्जम) ने सवाई जयसिंह के काल में आयोग का काम पोगिताबाट कर दिया था। आय के पिंट मंदिर में विद्यागत पोस्ट हिंडोलाएकश्री और आकर्षक है। यूनेस्को ने 21 जून, 2013 को कम्बोडिया की राजधानी नोमपेन्ह में आयोजित बैठक में राजस्थ के 6 किलों को विश्व विरासत सूची में शामिल करने की घोषणा की थी। इसमें आमेर दुर्ग भी शामिल है। आमेर के महत भवनों में दीवान-ए-आम का निर्माण महाराजा मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया था। यहां राजा का आम दरबार लगता केनों में से एक कछवाहा राजा मानासह जाय प्रवेश सिंहपोल’ है। जयपुर का इतिहास

कचहरिया

 दीवान-ए-खास दावों तरफ 27 स्तंभों पर आधारित अष्टकोणीय मेहरावयुक्त बरामदे को कचहरियाँ कहते हैं। आमेर राजमहल के अंतरिक प्रवेश द्वार को ‘गणेश पोल ‘ कहते है | जयपुर का इतिहास

 दीवान-ए-खास

गणेशपोल से प्रवेश करते हो बायाँ और स्थिर दो मंजिल भवन को दीवान-ए-व्यास कहा जाता है। दोवान-ए-खास को प्रथम मंदि जय मंदिर’ तथा दूसरों मॉडल को ‘जम माँदर’ या ‘शीशमहल’ कहते हैं। इन दूसरी मंजिल में काँच की लड़ाई का ठरकूश कार्य । दोकान-ए-वास के पश्चिम में ‘मुख माँदर’ स्थित है, जो ही परिवार का ग्रीष्मकालीन आवास रहा करता था। इसमें संगमरमर को चौखट में जालीदार झाना एवं सुख बने हुए हैं, जिनसे होकर पानी के साथ-साथ लाड़ी हवा आती है। गणेशपोल के ऊपर तीसरी मंजिल पर स्थित आपका भवन ‘सुहाग मंदिर’ है, जहाँ से रनिवास की महिलाएँ बैठकर जातियों में से दीवाने-आम की कार्यवाही एवं उनका आनन्द लेती थी। आगे के महलों कासबसे प्राचीन महत्व ‘मानसिंह महल’ है निर्माण आमेर महलों के प्रथम निर्माता महाराजा मानसिंह प्रथम ने सन् 1587 ई. में करवाया था। जयपुर का इतिहास

शीश महल

आमेर महल के आकर्षणों में से एक दीवान-ए-खास (शीश महल) का निर्माण मिजां राजा जयसिंह द्वारा पूर्ण किया गया। निर्माता के नाम पर इसे जयमंदिर और कांच की सुन्दर जहाई कार्य के आधार पर शीश महल कहते है। यह भवन दो मंजिला है। भूतल पर बना भवन जवमंदिर कहलाता है तथा प्रथम मंजिल पर बने भवनको जस मंदिर कहा जाता | दीवान-ए-खास में राजा अपने खास मेहमानों तथा दूसरे देशों के राजदूतों से मिलते थे। शीश महल में महल की पटरानी महाराजा के साथ आराम किया करती थी।

नहरगढ़

नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वारा मराठों में सुरक्षा हेतु 1734 ई. में करवाया गया था। इसे ‘सुदर्शनगढ़’ भी कहते हैं। दुर्ग के चारों और विशाल सुदड़ प्राचीर का निर्माण किया गया है। महाराजा माधोसिंह प्रथम ने इसमें अपनी गतियों हेतु माधवेन्द पैलेस का निर्माण करवाया तथा महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने अपनी 9 पासवानों हेतु एक जैसे 9 महल (सूरज प्रकाश, खुशहाल प्रकाश, जवाहर प्रकाश प्रकाश लक्ष्मी प्रकाश आनन्द प्रकाश, चन्द्रप्रकाश रत्नप्रकाश एवं बसन्त प्रकाश) बनवाये थे। ये सभी महत गुण सुरंग द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं। इन महलों के स्थापत्य को प्रमुख विशेषता एवं रंगों का संयोजन चित्रकारी है। लाहरगढ़ दुर्ग में नाहरसिंह जी भोमिया का स्थान है। जयपुर का इतिहास

रत्नाकर पुण्डरीक जी की हवेली

बह्मपुरी (जयपुर) में जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह जी द्वारा 18वीं सदी के प्रारंभ में राजपुरोहित व प्रख्यात ज्योतिषविद् रवाकर भट्ट (पुण्डरीक) हेतु बनवाई गई थी। उन्हें वाराणसी से जयपुर लाकर सवाई जयसिंह ने ही ‘पुण्डरीक’ नाम दिया तथा इस हवेली में भव्य भित्ति चित्रण करवाया जो आज भी दर्शनीय है।

 पन्ना मीणा की बावड़ी

आमेर में स्थित इस बावड़ी का निर्माण 17वीं शताब्दी में मिज राजा जयसिंह के काल में करवाया गया।

 महाकवि बिहारी का प्रासाद, आमेर

बिहारी, तुलसी के समकालीन कवि केशव के पुत्र थे। ये आमेर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। उन्होंने आमेर में स्थित इसी प्रारसाद में रहकर बिहारी सतसई की रचना की थी। जयपुर का इतिहास

जमवारामगढ़ बाँध

जयपुर शहर से करीब 26 किमी दूर पूर्व में स्थित 16 वर्ग किमी क्षेत्रफल की झील जो बाण ग गा नदी को अवरुद्ध कर बनाई गई है।

सामोद महल

गुलाबी नगरी जयपुर से 40 किमी. दूर स्थित सामोद का ऐतिहासिक महल राजा बिहारीदास ने सन् 1645 से 1652 के बीच बनवाया था। महल का प्रमुख आकर्षण शीशमहल है। शीशमहल का निर्माण रावल शिवसिंह ने 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में किया था। सामोद में कलात्मक एवं विशाल महलों में चित्रकारी के अलावा काँच एवं मीनाकारी का बेमिसाल काम है। इसकी छतों एवं स्तम्भों पर सुंदर काँच का काम आमेर महल की ही अनुकृति है। यहाँ के भित्ति चित्रों में धार्मिक जीवन के अलावा साहित्यिक एवं सामाजिक जीवन की भी झाँकी मिलती है। यहाँ सुल्तान महल भी दर्शनीय है। सामोद में सात बहनों का मंदिर भी है। जयपुर में स्थित इस भव्य सर्किल पर जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह को मूर्ति लगी हुई है। इस मूर्ति के वास्तुकार स्व. महेन्द्र कुमार दास थे। जयपुर का इतिहास

स्टेच्यू सर्किल

जयपुर में स्थित इस भव्य सर्किल पर जयपुर के संस्थापक सवाई अपरिसता की मूर्ति लगी हुई है। इस मूर्ति के वास्तुकार स्व. महेन्द्र कुमार दास थे।

मोती डूंगरी

एक निजी पहाड़ी पर सवाई माधोसिंह द्वारा निर्मित यहाँ का तख्तेशाही महल / मोती महल प्रसिद्ध है।

 जंतर-मंतर

 जयपुर नरेश सवाई जयसिंह द्वितीय ने उज्बेकिस्तान के शासक उलूग वेग द्वारा समरकंद में बनवाई गई वेधशाला के परिवर्द्धित व परिष्कृत रूप की 5 वेधशालाएँ (जयपुर, दिल्ली, मथुरा, बनारस एवं उज्जैन में बनवाई, जो जंतर-मंतर के नाम से विख्यात हैं। सन् 1734. में सवाई जयसिंह द्वारा जयपुर में निर्मित जयपुर वेधशाला उनको पाँच वेधशालाओं में सबसे बड़ी है। इसका निर्माण कार्य सन् 1738 में जाकर पूर्ण हुआ। इसका प्रारंभिक नाम यंतर-मंतर था। इसमें विश्व की सबसे बड़ी पाषाण दीवार घड़ी लगी हुई। इसमें स्थित तीन महत्त्वपूर्ण खगोलीय तालमेल यंत्र लगे हुए हैं, ये हैं-सीमा चरम बिंदु स्थानिक यंत्रण, भूमध्य यंत्रणा एवं सूर्यपथ यंत्रणा कपाला यंत्रकार। अन्य वेधशालाएँ दिल्ली, उज्जैन, वाराणसी एवं मथुरा में है। यहाँ का रामयंत्र (ऊँचाई मापने हेतु) प्रसिद्ध है। जंतर-मंतर को 2010 में यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज (विश्व विरासत) की कल्चरल श्रेणी की सूची में शामिल किया गया था। यह विश्व विरासत सूची में शामिल होने वाली राज्य की पहली धरोहर है। इसका सम्राट यंत्र (सूर्य घड़ी) सूर्य की ग्रुप के आधार पर सही समय बताता है। इसमें कुल 19 यंत्र है। इन मंत्रों का प्रयोग समय मापन, सूर्यचन्द्र ग्रहण का पूर्वानुमान, प्रमुख तारों की पृथ्वी परिक्रमा पथ से तुलनात्मक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने, गृहों का झुकाव एवं आकाशीय पिण्डों की ऊंचाई का निर्धारण करने हेतु किया जाता है। यंत्र लगे हैं. ये मंत्र निम्न हैं-

1. चक्र यंत्र- विश्व के विभिन्न स्थानों के समय का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्रयुक्त यंत्र 2. दक्षिण भित्ति यंत्र – विभिन्न आकाशीय पिण्डों की अक्षांश, देशांतर एवं जेनिथ दूरियों का मापन।

2. दक्षिण भित्ति यंत्र- विभिन्न आकाशीय पिण्डों की अक्षांश, देशांतर एवं जेनिथ दूरियों का मापन।

3. दिगंश यंत्र – सूर्योदय व सूर्यास्त के समय के चरण हेतु प्रयुक्त यंत्र ।

4. दिशा यंत्र

5. ध्रुव दर्शक पट्टिका- अन्य आकाशीय पिण्डों से ध्रुव तारे की सापेक्षिक स्थिति का ज्ञान।

 6. जय प्रकाश यंत्र

7. कपाली यंत्र

8.  कनाली यंत्र

9. कांति वृत यंत्र आकाशीय पिण्डों के अक्षांश व देशान्तरों का मापन।

10. लघु सम्राट यंत्र

 11. . मिश्र यंत्र यह पाँच भिन्न-भिन्न यंत्रों का सम्मिश्रण है।

12.  नाड़ी वलय यंत्र – इससे भी समय मापन होता है इसमें समय मापने में। मिनट से भी कम का अंतर आ सकता है। जयपुर का इतिहास

13. पलभा यंत्र

14. राम यंत्र जयपुर का इतिहास

15. राशि वलय यंत्र – इस यंत्र से तारों, गृहों व 12 तारामंडलों के कॉऑर्डीनेट का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

16. षष्ठांश यंत्र – वृहत सम्राट यंत्र के पास स्थित यह यंत्र 60° अंश के चाप (arc) के आकार में बना हुआ है।

17. उन्नतांश यंत्र एक धात्विक गोल रिंग जिसके चार भाग (लम्बवत एवं क्षैतिज) किये गये हैं। जयपुर का इतिहास

18. वृहत सम्राट यंत्र – सूर्य की परछाई के आधार पर हर 2 सैकेण्ड में समय का सही मापन करता है।

19. यंत्रराज यंत्र – 2.43 मीटर का कांसे (Bronze) का बना यंत्र है। इसे वर्ष में एक बार प्रयोग कर हिन्दू कलैण्डर की गणना की जाती है | जयपुर का इतिहास

जयपुर का इतिहास: महत्त्वपूर्ण तथ्य

  1. प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री डॉ. सी. वी. रमन ने जयपुर शहर को ‘आइलैण्ड ऑफ ग्लोरी’ (Hand of Glory या वैभव का द्वीप) कहा था। जयपुर का इतिहास
  2. हेड़े की (छठ की) परिक्रमा : जयपुर में प्रतिवर्ष हेड़े की छह कोसी परिक्रमा (राधा-कृष्ण के स्वरूपों की झाँकी) पुराने घाट से प्रारम्भ होकर गोपाल जी के रास्ते में गोपाल जी के मंदिर में विसर्जित होती है।
  3. बिड़ला वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केन्द्र: … बी. एम. बिडला, फाउंडेशन ने जयपुर में स्टेन्यू सर्किल पर इस केन्द्र का निर्माण किया है। इस संस्थान में बी. एम. बिड़ला प्लेनेटोरियम एवं साइंस म्यूजियम हैं। इसका प्रारम्भ 17 मार्च, 1989 को किया गया।  जयपुर का इतिहास
  4. श्री संजय शर्मा संग्रहालय: यह संग्रहालय चौड़ा रास्ता स्थित ठठेरों का रास्ता में स्थित है। इसमें एक लाख से अधिक पाण्डुलिपियाँ तथा कई हजार कलाकृतियाँ संगृहित हैं।
  5. पेपरवेट संग्रहालय: यह संग्रहालय श्री राजेन्द्र जैन का निजी संग्रहालय है जिसमें विभिन्न प्रकार के पेपर वेट संग्रहित किए गए है। जयपुर का इतिहास
  6. डॉल म्यूजियम (गुड़िया का संग्रहालय): जयपुर में स्थित है। इसका उद्घाटन 7 अप्रैल, 1979 की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भैरोंसिंह शेखावत द्वारा किया गया। जयपुर का इतिहास
  7. सवाई जयसिंह ने 1727 ई. में जयपुर में टकसाल स्थापित की। जयपुर रियासत के सिके झाड़शाही कहलाते हैं।
  8. जयपुर के महाराजा कॉलेज की स्थापना सन् 1844 में तत्कालीन पॉलिटिकल एजेंट कैप्टन लुडलो ने की थी। जयपुर का इतिहास
  9. झरणिया जयपुर जिले में है।
  10. ढूँढ नदी के किनारे बसा जयपुर शहर राजस्थान की राजधानी है। जयपुर का इतिहास
  11. जयपुर शहर के चारों ओर कुल 7 दरवाजे हैं-ध्रुव पोल, घाट गेट, न्यू गेट, सांगानेरी गेट, अजमेरी गेट, चांदपोल गेट व सूरजपोल गेट।
  12. सुंदरता में इस नगर की तुलना पेरिस से, आकर्षण में बुडापोस्ट से तथा भव्यता में मास्को से की जाती है। जयपुर का इतिहास
  13. प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल की भी नगर सौंदर्यीकरण में महती भूमिका है। उन्हें’आधुनिक जयपुर का निर्माता’ कहा जाता है।
  14. जयपुर 30 मार्च, 1949 को नवगठित राजस्थान की राजधानी बना।
  15. जयपुर जनसंख्या की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा नगर है।
  16.  जयपुर में सांभर झील तथा रामगढ़, कानोता, छापरवाड़ा और देवयानी प्रमुखबाँध है।
  17. जयपुर राज्य में सर्वाधिक जनसंख्या व सर्वाधिक घनत्व वाला जिला है।
  18.  जयपुर राज्य में उत्तर पश्चिम रेल्वे का मुख्यालय है।
  19. जयपुर चिड़ियाघर राज्य का सबसे प्राचीन चिड़ियाघर है। जयपुर का इतिहास
  20. जयपुर जू देश का प्रथम जंतुआलय है जहाँ घड़ियाल प्रजनन में सफलता प्राप्त हुई है। 
  21. हाथी गाँव : आमेर के निकटवर्ती कुण्डा गाँव को 19 जून, 2010 को हाथी गाँव घोषित किया गया। यहाँ एलिफेन्ट राइडिंग पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।
  22. सांभर झील फुलेरा तहसील में स्थित खारे पानी की झोल। जयपर का इतिहास
  23. नया विधानसभा भवन : 6 नवम्बर, 2001 को तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन द्वारा नई विधानसभा भवन का लोकार्पण हुआ। यह नया भवन 8 मंजिला बना हुआ है। इसमें राजस्थान की विभिन्न स्थापत्य शैलियाँ व सांस्कृतिक धरोहर की झलक दिखाई देती है।
  24. जयपुर में मंदिरों की अधिकता के कारण इसे ‘राजस्थान की दूसरी काशी’, गलताजी को ‘जयपुर की काशी’ व गोनेर को ‘जयपुर की मथुरा’ कहा जाता है।
  25. जयपुर स्कूल ऑफ आर्ट्स की स्थापना सवाई रामसिंह द्वितीय ने 1867 में की थी।
  26. सांभर में प्राचीन सभ्यता के सांभर में झील के सूखे भाग पर उत्तर से दक्षिण 600 मी. लम्बे एवं लगभग 550 मी. औसत चौड़ाई के एक टीले के उत्खनन में 6 स्वरों में लगभग 45 छोटे घरों के अवशेष मिले हैं जो ईसा पूर्व तीसरी सदी लेकर 10वीं सदी तक के हैं। 200 सिक्के भी मिले हैं जिनमें एक सिक्का इण्डो-यूनानी (Indo-greck) शासक एण्टीयोक्स निकेफॉरस का एवं कुछ कुषाणकालीन, कुछ यौद्धेयों के तथा कुछ इण्डो- सेसेसियन सिक्के हैं। सोने की कुछ वस्तुएँ व टुकड़े भी मिले हैं। ताम्बे व लौहे के उपकरण बड़ी मात्रा में प्राप्त हुए हैं। इस स्थल की खुदाई में चाहमानों (चौहानों) की प्रारंभिक राजधानी शाकम्भरी के अवशेष मिले हैं। उस काल में पासे का खेल सर्वाधिक प्रसिद्ध थी। जयपुर का इतिहास

जयपुर के प्रमुख मैले

मेल स्थान दिन
गणगौर मेल जयपुर चैत्र शुक्ल तीज व चौथ
बाणगंगा मेल विराटनगर वैशाख पूर्णिमा
शीतलामाता का मेल चाकसू चैत्र कृष्ण अष्टमी
तीज की सवारी एव मेल जयपुर श्रावण शुक्ला 3
जयपुर का इतिहास