करौली का इतिहास: प्रमुख पर्यटन स्थल और मंदिर

करौली का इतिहास: प्राचीन नाम कल्याणपुरी। 19 जुलाई, 1997 को सवाई माधोपुर से अलग होकर स्वतंत्र जिला (32वाँ) बना। करौली के यदुवंश के शासन की स्थापना विजयपाल द्वारा 1040 ई. में की गई थी। सन् 1348 में यादव वंश के शासक अर्जुनपाल द्वारा भद्रावती नदी के किनारे करौली शहर (कल्याणपुर) बसाया गया। 1650 ई. में यहाँ के शासक धर्मपाल- द्वितीय ने करौली को अपनी राजधानी बनाया। करौली पहले 18 मार्च, 1948 को मत्स्य संघ का भाग बना और फिर 15 मई, 1949 को इसे संयुक्त वृहत्तर राजस्थान में मिला दिया गया। इसे डांग क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। (करौली का इतिहास)

करौली का इतिहास
करौली का इतिहास
देश भारत
राज्य राजस्थान
जनसंख्या 82 ,960
पिनकोड़322241
क्षैत्रफल 5524 squre km
करौली का इतिहास

करौली का इतिहास: महत्वपूर्ण तथ्य

  •  करौली की दक्षिणी सीमा चम्बल नदी बनाती है जो इसे मध्यप्रदेश से पृथक करती है। इसके अलावा करौली की सीमा राज्य के सवाई माधोपुर, दौसा, भरतपुर व धौलपुर जिलों से लगती है।
  •  करौली शहर में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदी भद्रावती है जो पाँचना बाँध में विलीन होती है।
  • करौली की अन्य नदियाँ पाँचना, कालीसिल, खिराखरी, जगर आदि है।
  •  महावीर जी की लट्ठमार होली प्रसिद्ध है।
  • करौली का टुम्मा संगीत प्रसिद्ध है। (करौली का इतिहास)

करौली का इतिहास: प्रमुख मेले व त्यौहार

नामस्थानतिथि
श्री महावीर जी मेलामहावीर जीचैत्र शुक्ला त्रयोदशी से बैसाख कृष्णा द्वितीया तक
कैला देवी मेलाकरौलीचैत्र शुक्ला प्रथम से दशमी (विशेषत: अष्टमी को)
जगदीश जी मेलानादौतीश्रावण मास
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करौली का इतिहास: प्रमुख मंदिर

कैला देवी

कैलादेवी करौली के यदुवंशी राजवंश की कुलदेवी थी। त्रिकूट पर्वत की घाटी में कालीसिल नदी के किनारे यह मंदिर स्थित है। यह मंदिर 11वीं सदी में निर्मित्त है तथा देवी के 9 शक्ति पीठों में से एक है। कैलादेवी मंदिर के सामने बोहरा भक्त की छतरी है। तीर्थयात्री यहाँ कालीसिल नदी में अवश्य स्नान करते हैं। कैलादेवी की भक्ति में लोकदेवता लांगुरिया के लोकगीत गाये जाते हैं। यहाँ कैला देवी का प्रसिद्ध लक्खी मेला भरता है। इस मंदिर के पास ही कैला देवी वन्य जीव अभयारण्य स्थित है।

मदन मोहनजी का मंदिर

मदनमोहन जी की मूर्ति ब्रजभूमि वृंदावन से मुस्लिम आक्रांताओं से बचाकर लाई गई थी। संवत् 1785 में करौली नरेश गोपालसिंह इस मूर्ति को जयपुर से लाए व सं. 1805 (1748 ई.) में वर्तमान देवालय का निर्माण कराया था। यह मंदिर माध्वी गौड़ीय सम्प्रदाय का मंदिर है |

 श्री महावीर जी

 श्री महावीर जी प्रदेश के पूर्वी भाग में करौली जिले के हिन्डौन उपखण्ड में गम्भीर नदी के किनारे स्थित श्री महावीर जी विश्वविख्यात लोकतीर्थ है। सभी धर्म, सम्प्रदाय व मान्यता के लोग सद्भाव से इस महान् तीर्थ की यात्रा करते हैं। यह मंदिर करौली के लाल पत्थर और संगमरमर के योग से चतुष्कोण आकार में निर्मित है। यह स्थान पूर्व में चांदनपुर के नाम से जाना जाता था। (करौली का इतिहास)

दिगम्बर और श्वेताम्बर समान रूप से यहाँ पूजा-अर्चना करते हैं। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (महावीर जयंती) पर यहाँ प्रतिवर्ष चार दिवसीय मेला भरता है। मेले का मुख्य आकर्षण वैशाख कृष्णा प्रतिपदा पर निकलने वाली जिनेन्द्र रथ यात्रा है जो मुख्य मंदिर से प्रारम्भ होकर गंभीर नदी के तट तक जाती है। स्वर्ण आभा से सुशोभित भव्य रथ पर विराजित प्रतिमा का अभिषेक पीतवस्त्रधारी भक्तजन करते हैं, जबकि शासन (राजा) के प्रतिनिधि स्वरूप क्षेत्रीय उपखंड अधिकारी र सारथी बनते हैं। रथ यात्रा प्रारम्भ होने से पहले भगवान की मूल प्रतिमा के पुरस्कर्ता चर्मकार ग्वाले के वंशजों को विधिवत सम्मानित कर कृतज्ञता ज्ञापित की जाती है।

 अंजनी माता का मंदिर

यहाँ अंजनी माता की हनुमान जी को स्तनपान कराती हुई भारत की एक मात्र मूर्ति है।

कबीरंशाह का मकबरा

 यह करौली में स्थित है।

 गरहमोर मंदिर

माना जाता है कि गढ़मौरा राजस्थान के प्राचीनतम गाँवों में से एक है जो भगवान कृष्ण के शासनकाल से ही विद्यमान है। इसका वर्तमान नाम राजा मोरध्वज के समय से पड़ा है। यहाँ एक पवित्र कुण्ड है, जहाँ हर वर्ष मकर संक्रांति पर विशाल मेला भरता है |

गुफा मंदिर

 रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के बीहड़ जंगलों में स्थित गुफा में विद्यमान यह मंदिर कैला देवी का मूल व प्राचीन मंदिर जाता है।

दर्शनीय स्थल

तिमंगढ़ दुर्ग

यह करौली जिले की मासलपुर तहसील में स्थित है। इस दुर्ग की नींव 1048 ई. में यदुवंशी शासक विजयपाल के पुत्र व बयाना के राजा तिमनपाल ने रखी। यह दुर्ग 1058 ई. में बनकर पूर्ण हुआ। तब तिमनपाल ने तिमनगढ़ को अपनी राजधानी घोषित किया। यह दुर्ग इतिहास प्रसिद्ध था। (करौली का इतिहास)

कवि ने इस दुर्ग को स्वर्ण खंड के समान बताया है। तिमनपाल ने लम्बे समय तक तिमनगढ़ पर शासन किया। यहाँ से प्राप्त एक • शिलालेख में वि.सं. 1142 (1085 ई.) व तिमनपाल का नाम अंकित है। इससे प्रतीत होता है कि तिमनपाल 1085 ई. में यहाँ पर शासन कर रहा था। यह दुर्ग जैन धर्म व वैष्णव धर्म का तीर्थ स्थल रहा है। इस दुर्ग में अमूल्य अष्टधातुओं का संग्रह विद्यमान है। तिमनगढ़ दुर्ग का दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार ‘जगनपौर’ के नाम से तथा उत्तर-पूर्व दिशा में बनाया गया द्वार ‘सूरजपौर’ (सूर्यपोल) के नाम से जाना जाता है।

दुर्ग में तीन कूप स्थित है जिन्हें ‘ननद-भोजाई के कूपों’ के नाम से जाना जाता है। महाराजातिमनपाल ने यहाँ तिमनबिहारी मंदिर व एक विष्णु मंदिर का निर्माण कराया। यहाँ विदेव मंदिर जनसहयोग से निर्मित किया गया था जिसमें ।ब्रह्मा, विष्णु व महेश की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गई थी। यहाँ शवधर्म के मंदिर, सूर्य मंदिर व शाक्त मंदिर भी बनाए गए थे। शाक्त मंदिर में लक्ष्मी, सरस्वती, उमा, दुर्गा आदि की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित की गई थी। इस दुर्ग में कई स्वेताम्बर जैन मंदिर भी स्थापित किए गए थे। तिमनगढ़ के शासक कुंवरपाल ने आचार्य जिनदत सूरि से प्रभाषित होकर भगवान शांतिनाथ का जिनालय बनवाया था। दुर्ग में मुनि बालचंद का स्मारक, नटनी की छतरी, लाट व सागर तालाब थे।

उत्तूगिर दुर्ग

देवगिरी दुर्ग क्लौली जिले के करनपुर गाँव से खण्डार (स. माधोपुर) के मध्य चंबल नदी के बीहड़ों में स्थित है। उत्गिर दुर्ग का निर्माण लोड़ा यौद्धाओं द्वारा अरावली पर्वतमाला की एक पहाड़ी पर कराया गया था। ऐसा माना जाता है कि राजा अर्जुन देव ने उत्गिर दुर्ग पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया था।

भँवरविलास पैलेस

 करौली महाराजा गणेशपाल देव बहादुर द्वारा सन् 1938 में शाही निवास हेतु निर्मित्त कराया गया यह महल अब हैरिटेज होटल के रूप में संचालित है।

सिटी पैलेस

 मूल रूप से चौदहवीं सदी में करौली महाराजा अर्जुनपालदेव द्वारा निर्मित कराये गये इस पैलेस को महाराजा गोपालसिंह ने 18वीं सदी में पुनः बनवाया था।

राजा गोपालसिंह

सिटी पैलेस के नदी गेट के पास निर्मित एवं आकर्षक भिति चित्रों से सुसज्जित इस छतरी पर स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी अपना की छतरी उद्बोधन दिया था।

गोमती धामः

 कैलादेवी वन्य जीव अभयारण्य के घने जंगलों में तिमनगढ़ दुर्ग व सागर तालाब के पास स्थित यह पवित्र धाम संत गोमतीदासजी का आश्रम था।

मंडल का किला

यह दुर्ग चम्बल नदी के किनारे स्थित है, जो गावों के इस क्षेत्र में बसने से पूर्व से विद्यमान है। मंडरालय कस्बे में स्थित यह दुर्ग राज अर्जुनदेवपाल द्वारा मुस्लिम किलेदार मियां मक्खन से 1327 ई. में विजित किया गया था यहाँ करौली महाराजा हरबख्शपालदेव ने एक अन्य भव्य दुर्ग ‘बाला किला’ का निर्माण करवाया था।

 ऊँटगिरि दुर्ग

यह दुर्ग करणपुर के कल्याणपुरा गाँव की ऊँची पर्वत श्रृंखला की सुरंगनुमा पहाड़ी पर स्थित है।

 सुखविलास बाग

भद्रावती नदी के किनारे सुख विलास बाग स्थित है। साड़ी कुंड तीन मंजिली बावड़ी है।

रावल पैलेस

यह राजमहल लाल व सफेद पत्थर से बना है।

हरसुख विलास

करौली में महाराजा द्वारा स्थापित चंदन से महकता उद्यान

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निष्कर्ष:

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम द्वारा सम्पूर्ण करौली का इतिहास का वर्णन किया है, करौली का इतिहास के साथ- साथ करौली के महत्वपूर्ण स्थलों तथा मंदिरों आदि का भी वर्णन किया गया है।

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