जालौर का इतिहास: Jalore History In Hindi

जालौर का इतिहास: Jalore History In Hindi:- सुवर्णगिरी पहाड़ी के पूर्वी भाग में स्थित महर्षि जाबालि की तपोभूमि जालौर (सुवर्ण नगरी के नाम से प्रसिद्ध) को पहले जाबालिपुर व जालहुर कहा जाता था। यह सूकड़ी नदी के दक्षिण में स्थित है। जालौर जिले की आकृति एक वृहद् मछली के समान है। यहाँ नेहड़ क्षेत्र की समुद्री दलदल, सांचौर तथा सायला क्षेत्र के बालुका स्तूप, जसवंतपुरा तथा जालौर क्षेत्र के सुगन्धाद्रि तथा स्वर्णगिरी पर्वत, जालौर का कश्मीर कहा जाने वाला रानीवाड़ा क्षेत्र का बड़गाँव आदि स्थित है।

जालौर का इतिहास: Jalore History In Hindi
जालौर का इतिहास: Jalore History In Hindi

इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम ने जालौर को अपनी राजधानी बनाया था। खगोल शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान ब्रह्मगुप्त इसी जिले की विभूति थे, जिन्होंने ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ की रचना की थी। महाकवि माघ की जन्म भूमि भीनमाल भी इसी जिले में स्थित है। जालौर का इतिहास

नर्बदेश्वर धाम सीलू गाँव (जालौर) में है। जालौर में ही प्रतिहार नरेश वत्सराज के समय में जैन विद्वान व आचार्य उद्योतन सूरी ने प्रसिद्ध ग्रंथ कुवलयमाला की रचना (778 ई. में) की थी। सिद्धर्षि ने भीनमाल में’ उपमितिभव प्रपंच कथा’ की रचना की थी। राजा भोज के दरबारी कवि धनपाल ने सांचौर में ‘सच्चाउरिय महावीर उत्साह’ नामक ग्रंथ की रचना की। चारणों की खिड़िया शाखा के कवि चानण का जन्म सांचौर तहसील के बोर गाँव में हुआ था।

  • जालोर के उत्तर में बाड़मेर व पाली, दक्षिण पूर्व में सिरोही व दक्षिण मे गुजरात का बनासकांठा जिला है।
  • जालोर जिले के तीन प्रमुख नगर-जालोर, भीनमाल व सांचौर ऐतिहासिक है।
  • लूनी, बांडी, जवाई व सूकड़ी यहाँ की प्रमुख नदियाँ है।
  • जालोर जिले में ‘ग्रेनाइट’ बहुतायत से पाया जाता है। अतः जालोर को ‘ग्रेनाइट शहर’ भी कहा जाता
  • जालोर तहसील में ग्रेनाइट चट्टानों से बनी निम्न दो महत्त्वपूर्ण पहाड़ियाँ है।

1. जालोर पहाड़ी – स्वर्णगिरी पर्वत यहीं है जिसकी तलहटी में जालोर नगर स्थित है।

2. इसरना तथा राजनवाड़ी पहाड़ियाँ – इसकी तलहटी में जागनाथ महादेव शिवालय स्थित है |

3. जालोर का ढोल नृत्य प्रसिद्ध है।

4. आहोर तहसील में भाद्राजून की पहाड़ियाँ व किशनगढ़ की पहाड़ियाँ मालानी ज्वालामुखीय (रायोलाइट) की बनी है। 

5.  भीनमाल तहसील के दक्षिण पूर्वी भाग में जिले की सबसे ऊँची पहाड़ियाँ- जसवंतपुरा की पहाड़ियाँ हैं। सुंधा चोटी इस जिले की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है जिसे महाराजा जसवंत सिंह ने ‘मारवाड का दूसरा आबू’ घोषित किया था और यहाँ अपने ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए विश्राम स्थल बनवाया था।

 6.  बाँकली बाँध : जालोर जिले की आहोर तहसील में सूकड़ी नदी पर निर्मित यह बाँध इस जिले का सबसे बड़ा व सबसे पुराना सिंचाई बाँध है। इसकानिर्माण 1899-1905 के बीच तत्कालीन मारवाड़ रियासत द्वारा अकाल राहत कार्यों के तहत करवाया गया था। जालौर का इतिहास

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जालौर का इतिहास: प्रमुख मेले व त्यौहार

मेलास्थानदिन
बाबा रघुनाथपुरी पशु साँचौरचैत्र सुदी एकादशी
 सेवाड़िया पशु मेलारानीवाड़ा  चैत्र सुदी एकादशी से पूर्णिमा तक
आशापुरी माताजी का मेलामोदरा  होली के दूसरे दिन
जालोर का इतिहास

जालौर का इतिहास: प्रमुख मंदिर

श्री लक्ष्मीवल्लभ पार्श्वनाथ 72 जिनालय

भीनमाल में स्थापित यह देश का सबसे बड़ा जैन मंदिर है। इस जिनालय के प्रेरणारत जैनाचार्य श्री हेमेन्द्र सुरिश्वरजी जिनालय आज्ञाकारी मुनिप्रवर श्री ऋषभचन्द्र विजय जी महाराज हैं। 2 मई, 1996 को इस मंदिर का शिलान्यास किया गया। यह मंदिर श्रीयंत्र रेखा पर बनाया गया है, जिनके दर्शनमात्र से लक्ष्मी की प्राप्ति हो सकती है। यह तीर्थ 100 एकड़ जमीन पर विस्तृत है। रेखा पर संगमरमर में निर्मित यह मंदिर 252 x 252 फीट (कुल 63504 वर्ग फीट) में है। यह मंदिर लुकंड परिवार द्वारा बनाया यह किसी एक परिवार द्वारा बनाया जाने वाला देश का पहला विशाल तीर्थ है।

मूलनायक प्रभु पार्श्वनाथ के इस मंदिर में 14 फरवरी, 2011 को प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित किया गया। लुकंड परिवा सुमेरमल जी व श्रीमती सुआबाई लुकंद ने इस मंदिर का निर्माण कार्य शुरु कराया तथा उनके वंशज श्री किशोरमल जी माणकमलजी व रमेश जी लुकंड ने इस कार्य को पूर्ण किया। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ के नाम पर इसका नाम लक्ष्मीवल्लभ पार्श्वनाथ 72 जिनालय’ रखा गया। यहाँ जैन इतिहास में प्रथम बार पूर्व 24 तीर्थंकरों वर्तमान 24 तीर्थकरों व 24 तीर्थंकरों के मंदिर एक साथ एक ही परिसर में बनाए गए हैं।

जालौर में कन्यागिरि पर्वत पर यह स्थान योगीराज जालंधरनाथ जी की सिद्ध तपोभूमि है, जिनके नाम पर जालौर को जालंधर जाता था। यहाँ राजा रतनसिंह ने एक शिव मंदिर की स्थापना करवाई थी। महाराजा मानसिंह ने आयस देवनाथ की कृपा से इस मंदिका पुननिर्माण करवाया। मोदरां जालोर के सोनगरा चौहान शासकों की कुलदेवी थी। इस मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है वह लगभग एक हजार साल पुरानी है

सिरे मंदिर

जालौर में कन्यागिरि पर्वत पर यह स्थान योगीराज जालंधरनाथ जी को सिद्ध तपोभूमि है, जिनके नाम पर जालोर को जालंधर कहा जाता था। यहाँ राजा रतनसिंह ने एक शिव मंदिर की स्थापना करवाई थी। महाराजा मानसिंह ने आपस देवनाथ की कृपा से इस मंदिर का पुननिर्माण करवाया। (जालौर का इतिहास)

महोदरी (आशापुरी) माता मंदिर मोदरा

मोदरां जालोर के सोनगरा चौहान शासकों की कुलदेवी थी। इस मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है वह लगभग एक हजार साल पुरानी है। नवरात्रा में यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है।

 मंदिर आपेश्ववर महादेव

शिव के यों तो भूमंडल में अनन्त मंदिर हैं, जिनमें से अधिकांश में शिवलिंग विद्यमान है। किन्तु मंदिरों में मूर्त स्वरूप बिरले ही स्थानों पर अधिष्ठापित है। ऐसे बिरले मंदिरों में जालोर जिले के रामसीन ग्राम का शिव मंदिर है। आपेश्वर महादेव (भगवान अपराजितेश्वर) का यह मंदिर गुर्जर प्रतिहार कालीन है। इस मंदिर के पुजारी काश्यप गोत्रीय रावल आहान है। यहाँ स्थापित शिव प्रतिमा 5 फीट ऊँची है जो श्वेत स्फटिक से निर्मित है। इस मंदिर में आदिदेव भगवान भोलेनाथ समाधिस्य मुद्रा में विराजित है।

मालिक शाह पीर की दरगा

जालोर दुर्ग में स्थित इस दरगाह में भरने वाला उसे धार्मिक एकता एवं हिन्दु मुस्लिम समन्वय का प्रतीक है।

भिनमाल का जगतस्वामी सूर्य मंदिर

 इतिहासकार जी. एच. ओझा के अनुसार यह राजपूताने के प्राचीन सूर्य मंदिरों में से एक है जो स्थानीय बोलचाल में जगमडेरा कहलाता था।

सेवाड़ा के पाटेलेश्वर

जालोर के सेवादा ग्राम में यह शिव मंदिर स्थित है।

सुन्धा माता का मंदिर

दांतलावास गाँव (रानीवाड़ा, जालोर) में यह मंदिर सुण्डा पर्वत पर 1220 मीटर की ऊंचाई पर एक प्राचीन गुफा में स्थित है। यहाँ माँ अहेटेश्वरी देवी का मंदिर है जिसे चामुण्डा माता के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में चामुण्डा माँ के सिर्फ सिर की पूजा की जाती है। यह श्रीमाली ब्राह्मणों की कुलदेवी है। यहाँ पर प्रति माह पूर्णिमा को तथा भाद और वैशाख शुक्ल में तेरस से पूर्णिमा तक विशालमेला भरता है। होली पर यहाँ भाटा गैर नृत्य का आयोजन किया जाता है।

सुण्डा पर्वत पर राजस्थान का पहला रोपवे 20 दिसम्बर, 2006 को प्रारंभ हुआ था।

नंदीश्वर दीप तीर्थ

यह मंदिर भीनमाल तहसील, जालोर में स्थित है। यहाँ 52 जिनालय है। मंदिर में एक कीर्ति स्तम्भ भी है

मंडोली तीर्थ

यह जैन संत गुरुवर विजय शांति सूरीश्वर महाराज जी को समर्पित जैन मंदिर है। यहाँ उनकी श्वेत स्फटिक से निर्मित प्रतिमा है। इस मंदिर का निर्माण शांति विजय जी के भक्त सेट किसनचंद ने करवाया

वीर फत्ताजी का मंदिर

 साथू गाँव में लोकदेवता वीर फत्ताजी का मंदिर है। यहाँ भाद्र शुक्ला नवमी को मेला भरता है।

सुभद्रा माता का मंदिर 

यह भाद्राजून (जालोर) में स्थित है। इसे घूमड़ा माता का मंदिर भी कहा जाता है।

खिमज माता का मंदिर

यह भीनमाल के पास क्षेमंकरी पहाड़ी पर स्थित है। दुर्गा सप्तशती के एक श्लोक के अनुसार पन्यानाम सुपथारु मामकरी अर्थात् मार्गो की रक्षा कर पथ को सुपथ बनाने वालों देवी क्षेमकरी दुर्गा का ही अवतार है। यह सोलांकियों की कुल देवी मानी जाती है। 

जगनाथ महादेव का मंदिर 

सोनगरा चौहानों के संस्थापक कीर्तिपाल की पुत्री रुदल देवों द्वारा बनवाया गया शिवालय यह दरगाह सांचोर में स्थित है।

अबवंशाह अलेही रहम मकदूर पीर की दरगाह  

यह दरगा साचोर मे स्थित है |

जालौर का इतिहास: प्रमुख दर्शनीय स्थल

जालोर दुर्ग

मारवाड़ में सुकड़ी नदी के किनारे सुवर्णगिरी पहाड़ी पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम ने कराया था। इसके साथ चौहान (खींची) शासक वीर कान्हड़दे के उद्भट पराक्रम का आख्यान जुड़ा हुआ है।

सांचौर

इस क्षेत्र में राजस्थान की पाँच नदियाँ बहती है। अतः इसे राजस्थान का पंजाब कहते हैं।

भीनमाल

भीनमाल के श्रीमाल, भिल्लामाल, पुष्पमाल, आलमाल, रत्नमाल, वीर नगर आदि नामों का उल्लेख मिलता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग भी यहाँ आया था। उसने इसे पीलोमोलो नाम दिया था। ‘हरमेखला’ नामक आयुर्वेद के ग्रंथकर्ता ‘ श्रीमहुर’ भीनमाल के ही निवासी थे।

तोपखाना

जालोर में जोधपुर राज्य की तोपें रखने का स्थान ‘तोपखाना’ के नाम से प्रसिद्ध है।

बड़गांव

 जालोर जिले की रानीवाड़ा पंचायत समिति का बड़गाँव क्षेत्र ‘जालोर का कश्मीर’ कहलाता है। यहाँ सुकाल नदी बहती है।

हरजी गाँव 

यह गाँव मिट्टी पर सवार मामाजी के घोड़ों के लिए जाना जाता है।

तोपखाना

परमार राजा भोज संस्कृत साहित्य का विद्वान था। उसने अपनी राजधानी धारा नगरी व जालोर में संस्कृत पाठशालाएँ स्थापित की। ये पाठशालाएँ मुस्लिम शासन के दौरान मस्जिदों में परिवर्तित कर दी गई। धारा की यह पाठशाला कमल मौला तथा जालोर की पाठशाला तोपखाना मस्जिद के नाम से जानी जाती है। राठौड़ शासनकाल में इसके परिसर में तोपें रखी जाती थी। यहाँ प्राप्त शिलालेख के अनुसार गयासुद्दीन तुगलक ने यहाँ एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।

कोटकस्टा दुर्ग 

यह जालौर जिले के भीनमाल कस्बे के पास स्थित है। इसे ‘नाथों का दुर्ग’ भी कहते हैं। इसका निर्माण भीमनाथजी महाराज ने करवाया था।

एलाना 

पुरातात्विक स्थल जहाँ ताम्रयुगीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।

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निष्कर्ष:

आज किस इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने जालौर का इतिहास तथा जालौर के प्रमुख पर्यटन स्थल तथा प्रमुख मंदिरों का वर्णन विस्तार से किया है। जालौर का इतिहास इस पोस्ट मे गहन अध्ययन के बाद लिखा हुआ है, यदि आपको इस तरह की पोस्ट पढ़नी है तो हमारी वेबसाईट को विज़िट कर सकते है धन्यवाद।