जैसलमेर का इतिहास | Jaisalmer History in Hindi

जैसलमेर का इतिहास: स्वर्ण नगरी, हवेलियों व झरोखों का शहर, म्यूजियम सिटी, रेगिस्तान का गुलाब, राजस्थान का अंडमान यदुवंशी राजा भाटी के वंशज रावल जैसल ने अपनी राजधानी लोद्रवा को विदेशी आक्रमणों से सुरक्षा के अनुकूल प्रतीत न होने पर रावल जैसल द्वारा जैसलमेर किले की नींव 12 जुलाई सन् 1155 को रखी गई व जैसलमेर शहर बसा कर उसने अपनी राजधानी जैसलमेर स्थानांतरित की। किले की स्थापना त्रिकोणाकार गोडाहरे पहाड़ी (त्रिकूट पहाड़ी) पर की गई थी। अत: इसे गोडहरा, त्रिकूटगढ़ या त्रिकुटांचल भी कहते हैं। यह दुर्ग लंका की आकृति का त्रिकोण दुर्ग है। जैसलमेर के बारे में यह कहावत प्रचलित है कि यहाँ पत्थर के पैर, लोहे का शरीर और काठ के घोड़े पर सवार होकर ही पहुँचा जा सकता है l (जैसलमेर का इतिहास)

जैसलमेर का इतिहास
जैसलमेर का इतिहास

यह क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबल बड़ा व देश का तीसरा (लेह व कच्छ के बाद) सबसे बड़ा जिला है। राज्य के चार सीमावर्ती जिलों-गंगानगर, बीकानेर, जैलसमेर व बाड़मेर में रेडक्लिफ लाइन पर सर्वाधिक लम्बी सीमा बनाने वाला जिला जैसलमेर ही है। जैसलमेर क्षेत्र को प्राचीनकाल में माड तथा बाद में वल्ल मंडल और दुग्गल कहा गया है। (जैसलमेर का इतिहास)

Table of Contents

जैसलमेर का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार

मेलास्थानदिन
वैशाखी मेलावैशाखी हिंदू महा तीर्थवैशाख पूर्णिमा
पर्यटक मरु मेला (डेजर्ट फेस्टिवल) जैसलमेर व सममाघ शुक्ला 13 से 15 तक
रामदेवरारामदेवर (रूणेचा) तह. पोकरण भाद्रपद शुक्ला 2 से 11 तक (पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा धार्मिक मेला)
तेमड़ीराय तेमड़ीराय मंदिर
चुंधी तीर्थ मेलाचुंधी तीर्थ, भीलों की ढाणीभाद्रपद शुक्ला चतुर्थी व गंगा सप्तमी
जैसलमेर का इतिहास

जैसलमेर का इतिहास प्रमुख मंदिर

रामदेवरा

पोकरण के निकट रुणेचा कस्बे में बाबा रामदेव का प्रसिद्ध तीर्थस्थल, जहाँ सभी क्षेत्रों से सभी समुदायों के लोग आते हैं। अतः यह राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का मुख्य केन्द्र है। इस मंदिर के पुजारी तँवर जाति के राजपूत होते हैं। तीर्थयात्रियों को ‘जातरु’ कहा जाता है।

रामदेवजी को प्रिय श्वेत तथा नीले घोड़े चढ़ाये जाते हैं। रामदेवरा से 12 किमी दूरी पर पंच पीपली नामक धार्मिक स्थल है, जहाँ पर रामदेवजी ने पाँचों पीरों को पर्चा दिया था। रामदेवरा में उनकी शिष्या डाली बाई की समाधि व उसका कडा भी है। रामदेव ने कामड़िया पथ की स्थापना की थी l (जैसलमेर का इतिहास)

अमर सागर जैन मंदिर

जैसलमेर के निकट अमर सागर तालाब के किनारे सन् 1871 में बना यह भव्य जैन मंदिर न केवल शिल्पकला की दृष्टि से उत्कृष्ट है अपितु वास्तुशास्त्र का भी जीवन्त उदाहरण है। यहां हिम्मतराम बाफना द्वारा भव्य जैन मंदिरों का निर्माण कराया गया। स्वांगिया जी भाटियों की कुल देवी है। स्वांगिया देवी का प्रतीक त्रिशूल है। जैसलमेर में इनके 7 मंदिर है- (जैसलमेर का इतिहास)

  1. काला डूंगरराय का मंदिर : इस मंदिर का निर्माण महारावल जवाहरसिंह ने निर्माण कराया। भादरियाराय का सुग्गा माता मंदिर : यह मंदिर जोधपुर-जैसलमेर मार्ग पर धोलिया गाँव के निकट भादरिया गाँव में स्थित है। महारावल गजसिंह ने इसका निर्माण कराया। मंदिर को आधुनिक रूप संत हरवंश सिंह निर्मल ने दिया। (जैसलमेर का इतिहास)
  2. तनोटराय का मंदिर : भाटी तणु राव ने स्वांगिया देवी का मंदिर तनोट में बनवाया। इसे तनोट देवी भी कहते हैं। इसकी पूजा अर्चना जैसलमेर राजघराने की ओर से करने की व्यवस्था की गई। 1965 में भारत-पाक युद्ध के बाद अब पूजा का कार्य सीमा सुरक्षा बल के भारतीय सैनिकों द्वारा सम्पादित किया जाता है। देवी के मंदिर के सामने ही 1965 के भारत-पाक युद्ध में भारत की विजय का प्रसिद्ध स्मारक विजय स्तंभ भी स्थित है। तनोट देवी को थार की वैष्णो देवी भी कहते हैं। (जैसलमेर का इतिहास)
  3.  तेमडीराव का मंदिर : यह मंदिर जैसलमेर के दक्षिण में गरलाउणे नामक पहाड़ की कंदरा में बना हुआ है। यहाँ पर श्रद्धालु भक्तों को देवी के दर्शन छछुन्दरी के रूप में होते हैं। चारण लोग इसे द्वितीय हिंगलाज मानते हैं। 
  4. घंटियाली राय का मंदिर: स्वांगिया देवी का यह मंदिर तनोट से 5 किमी की दूरी पर दक्षिण पूर्व में स्थित है।
  5.  देगराय का मंदिर : जैसलमेर के पूर्व में देगराय जलाशय पर निर्मित मंदिर ।
  6.  गजरूप सागर देवालय: यह जैसलमेर में गजरूप सागर तालाब के पास समतल पहाड़ी पर निर्मित स्वांगिया देवी का मंदिर है। इसका निर्माण महारावल गजसिंह ने करवाया था। (जैसलमेर का इतिहास)

आदिनारायण का मंदिर

जैसलमेर के यदुवंशी सांसों के आदि देव के रूप में आदिनारायण वर मंदिर जैसलमेर दुर्ग में स्थित है। आदिनारायण का अष्टधातु का विया यहाँ कसराय के नाम से प्रसिद्ध है। किले के अनुसार इस प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य महारावल जसवंत सिंह(1700-1707 ई.) के पुत्र आमिह ने अपनी माता की स्मृति में कराया था। (जैसलमेर का इतिहास)

भगवान लक्ष्मीनाथ का मंदिर

जैसलमेर में स्थित इस मंदिर का निर्माण क्लामण के काल में किया गया। इसमें लक्ष्मी विष्णु की पुरन प्रतिमा है। इस मंदिर के निर्माण में शासक के अतिरिका सातों जातियों द्वारा निर्माण कार्य में सहयोग प्रदान करने के कारण यह जन-जन का मंदिर शाहलाता है।यहाँ प्राप्त एक प्रस्तर लेख के अनुसार इस मंदिर की स्थापना सन् 1437 में हुई। (जैसलमेर का इतिहास)

पार्श्वनाथ मंदिर

 जैसलमेर दुर्ग स्थित यह मंदिर अपने स्थापत्य, मूर्तिकला व विशालता हेतु विण्यात है। वृदिरस्न माला के अनुसार इस मंदिर में मूर्तियों की कुल संख्या 1235 है। इसके शिल्पकार का नाम ‘अन्ना’ या व इसका निर्माणफाल वि.सं. 1473 था। तथ जैसलमेर पर रावल लक्ष्मण सिंह का शासन था। (जैसलमेर का इतिहास)

संभवनाथ मंदिर

इस मंदिर की स्थापना रावल और सिंह के समय वि. स. 1497 में शिवराज, महिराज व लखन नामका श्वेताम्बर पंथी जैन परिवार द्वारा कराया दिर गाया। इस देवालय के रंगमहल को गुम्बदनुमा छ स्थापत्य में दिलवाड़ा मंदिर के समान है। इस देवालय के भूगर्भ में वने कछ में दुर्लभ पुस्तकों का भंडार ‘जिनदत्त सूरी ज्ञान भंडार स्थित है। (जैसलमेर का इतिहास)

 शांतिनाथ एवं कुन्थुनाथ जी का मंदिर

 यह सुरुवों मंदिर है। प्रथम तल का मंदिर कुन्युनाय को व ऊपर का शादिनाथ जी को समर्पित है। इस मंदिर के शिखर को महामेरु पर्वत काको कल्पना कर साकार किया गया है। यह मंदिर वि.स. 1536 में बनकर तैयार हुआ। इस मंदिर का निर्माण जैसलमेर निवासी चोपड़ा एवं संखषाल गोत्रीय जैन धर्मानुयायी परिवारों ने संयुक्त रूप से कराया था। इस मंदिर की एक विशिष्टता यह भी है कि इस मंदिर में खेतसी नामक संखवाल गोत्रीय व्यक्ति ने दसवार और लक्ष्मीनाथ भगवान की प्रतिमाएँ स्थापित कराकर हिन्दू-जैन धर्म की समन्वयता को प्रोत्साहित किया था।

 चंद्रप्रभु मंदिर

यह तीन मंजिला विशाल जैन मंदिर जैन तीर्थकर चन्द्रप्रभु को समर्पित हैं। रणकपुर के मंदिर के स्थापत्य के समान इस मंदिर को 12वीं सदी में निर्मित किया गया था। अल्लाउद्दीन खिलजी ने जैसलमेर पर आक्रमण के समय इसका विध्वंस कर दिया था। जैन धमानुयायियों ने इसका पुनर्निमांण कराया। (जैसलमेर का इतिहास)

लोद्रया जैन मंदिर

यही कारण है कि इस मंदिर में दोनों घभों के पालनकर्ता समान रूप से पूजा अर्चना करते हैं। जैसलमेर के समस्त जैन मॉदरों में यह सर्वश्रेष्ठ है।मंदिर लोद्रका नामक स्थल 10वीं सदी में परमारों के अधीन था। जैसलमेर के भाटी शासक इसे विजित कर इस क्षेत्र के अधिपति बने थे। वर्तमान में विद्यमान लोद्रता जैन मंदिर का निर्माण वि.स. 1675 में यारूशाह नामक श्रेष्ठी ने करवाया। मंदिर के गर्भगृह में सहस्रफण पाश्र्वनाय को श्याम प्रतिमा प्रतिष्ठित है। मूर्ति के चेहरे पर जड़ा हुआ होरा मूर्ति के अनेक कापों के दर्शन करवाता है। इस मंदिर के चारों कोनों पर एक- एक मंदिर बना हुआ है, जो हिन्दू मंदिरों के पंचायतन शैली का प्रतिरूप है। मंदिर प्रांगण में पीले पत्थर से सुमेरू पर्वत की संरचना कर अष्ट धातु का एक कल्पवृक्ष निर्मित किया गया है। (जैसलमेर का इतिहास)

रामकुंडा का मंदिर

यह रमणीक स्थान काक नदी के किनारे स्थित है। यहाँ पर महारावल अमरसिंहजी के राज्यकाल में तपस्वी साधु महाराज अणतराम जी का आगमन हुआ था। अणतराम जी ने इसी कुंड के पास अपना आश्रम बनवाया था। ये रामानंदी साधु थे। इस कारण इस कुण्ड को रामकुण्ड कहा जाने लगा। रामकुण्ड मंदिर का निर्माण महारावल अमरसिंह जी की पत्नी मनसुखी देवी ने करवाया था। मंदिर में राम और सीता को मूर्तियाँ स्थापित है। जैसलमेर में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का यह प्रथम मंदिर है। रामनवमी के दिन यहाँ मेला लगता है।

वैशाखी हिन्दू जैसलमेर

 वैशाखी हिन्दू जैसलमेर के ‘ब्रह्मकुण्ड’ (ब्रह्मसागर) के पास वैशाखी नामक प्राचीन हिन्दू तीर्थ है। वैशाख पूर्णिमा को महातीर्थ यहाँ मेला भरता है तथा तीर्थयात्री वैसाखी के कुण्डों में स्नान करते हैं। प्राचीन मान्यता है कि इस दिन सरस्वती नदी का जल इन कुण्डों में आता है। प्राचीन काल में इस मरू क्षेत्र में सरस्वती नदी बहती थी। वर्तमान में उसे काक नदी कहा जाता है।

चुन्धी गणेश मंदिर

जैसलमेर में लोद्रवा मार्ग पर भीलों की ढाणी के पास काक नदी के मध्य गणेश की प्राकृतिक प्रतिमा है। इस स्थान को च्यवन ऋषि का आश्रम कहा जाता था। कालान्तर में इसका नाम चून्धी हो गया। यहाँ गंगा सप्तमी व गणेश चतुर्थी को मेला लगता है।

जैसलमेर का इतिहास पर्यटन स्थल

सोनार फिला (जैसलमेर दुर्ग)

पीले पत्थरों को बिना चूने चूने के जोड़ कर बनाया गया 99 बुर्जी वाला विशाल दुर्ग, जो दूर से स्वर्णिम आभा लिये प्रतीत होता है। यह त्रिकूट पहाड़ी पर बनाया गया है। इसमें ढाई साके हुए। इसे गढ़ गोडहरा’ कहते हैं। भारत सरकार ने 28 जनवरी, 2009 को सोनार दुर्ग पर 5 रुपये का डाक टिकट जारी किया। यूनेस्को ने 27 जून, 2013 को राजस्थान के 6 किलो को विश्व विरासत घोषित किया जिसमें यह किला भी शामिल है। रेगिस्तान में पीत पाषाणों से निर्मित यह फिला ऐसा लगता है मानो रेत के समुद्र में कोई जहाज लंगर डाले खड़ा हों। (जैसलमेर का इतिहास)

 बड़ा बाग

बड़ा बारा जैसलमेर का एक अति महत्त्वपूर्ण स्मारक स्थल है श्मशान स्थली है। यह जहाँ राजपरिवार की स्थान जैसलमेर के उत्तर-पश्चिम में रामगढ़ रोड़ पर सुनहरे मगरों के मध्य भन्य घाटी में स्थित है। यहाँ सर्वप्रथम जैसलमेर के शासक रावल जैतसिंह तृतीय की छत्री का निर्माण उनके पुत्र महारावल लूणकरणसिंह ने 1528 ई. में करवाया। सब से लेकर आज तक जैसलमेर राज परिवार के सदस्यों का अंतिम संस्कार इसी स्थान पर होता आया है। यहाँ पर भव्य कलात्मक 104 स्मारकों का निर्माण हुआ है। (जैसलमेर का इतिहास)

जैत बंध

रावल जैत सिंह तृतीय ने यहाँ दो पहाड़ों के बीच एक बाँध का निर्माण भी करवाया जाना प्रारम्भ किया था जिसका नाम जैत बंध रखा गया। इस बांध का निर्माण उस समय जल संरक्षण व जल संग्रहण हेतु करवाया जा रहा था। लेकिन बाँध के पूर्ण होने से पहले ही उनका देहान्त हो गया। इस बाँध को उनके पुत्र रावल लूणकरण सिंह ने पूर्ण करवाया। इस बाँध की प्राण प्रतिष्ठा के समय लूणकरण सिंह ने एक महान यह करवाया। उस महायज्ञ में हजारों हिन्दुओं को, जिन्हें मजबूरन इस्लाम धर्म अपनाना पड़ा था, पुनः यज्ञोपवीत धारण करवा कर हिन्दू अनारया गया था। जैतबंध बिना चूने गारे का बना हुआ प्राचीर प्रस्तर बंध हैं जो आज भी जलसंग्रहण के काम आता है। (जैसलमेर का इतिहास)

मूलराज सागर

मूलराज सागर का निर्माण महारावल मूलराज द्वितीय द्वारा करवाया गया।

सालिम सिंह की हवेली

राज सागर नम सिंह की जैसलमेर केप्रधानमंत्री सालिम सिंह द्वारा 18वीं शती में निर्मित यह 5 मंजिला हवेली अपनी पत्थर की नक्काशी व महीन जालियों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी पाँचवीं मंजिल को मोतीमहल या जहाज महल कहते हैं। इसका निर्माण सालिमसिंह ने स्वयं अपने लिए कराया था। मेहता सालिमसिंह 1784 ई. से 1824 ई. तक जैसलमेर राज्य के दीवान रहे थे। मोती महल के ऊपर लकड़ी की दो मंजिलें और भी बनाई गई थी जो क्रमशः शीशमहल और रंगमहल कहलाती थी। इन दोनों तलों को सालिमसिंह की मृत्युपरांत राजकीय कोप के कारण तुड़वा दिया गया था। (जैसलमेर का इतिहास)

 पटवों की हवेली

यह 5 मंजिली हवेली अपनी नक्काशी व पत्थर में बारीक कटाई के लिए प्रसिद्ध है। यह एक हवेली नहीं बल्कि 5 छोटी हवेलियों का समूह है। इसकी पहली हवेली 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में पटवा गुमान चंद द्वारा बनवायी गई। यह सबसे बड़ी हवेली है। इनकी पहली हवेली को ‘कोठारी को पटना हवेली’ कहते हैं। पटवों की हवेली की कारीगरी के बारे में कहा गया है-

स्थापत्य व सौन्दर्यबोध की दृष्टि से पटुओं को हवेलियों का स्थान सर्वप्रथम है। पटवों की हवेली जैसलमेर में सबसे बड़ी हवेली है। 66 झरोखों से युक्त ये हवेलियाँ 8-10 फीट ऊँचे चबूतरों पर बनी हुई है। भूमि से ऊपर 5 मंजिल व एक मंजिल तलघर के रूप में है। इसमें एक हवेली के ‘दीपषरों’ के शीशों पर ग्वालियर के मराठा शासक महादजी सिंधिया को अंकित किया गया है। यह हवेली गुमानचंद पटवा द्वारा अपने 5 बेटों के लिए बनाई गई। (जैसलमेर का इतिहास)

 दीवान नथमल व हवेली

दीवान नथमल की भव्य हवेलियों की श्रेणी में तृतीय दीवान नथमल की हवेली है। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पीले रंग के पत्थरों से निर्मित इस पाँच मंजिली हवेली का निर्माण महारावल बैरीसाल के समय हुआ है। इस हवेली को अनुपम रूप प्रदान वाले शिल्पकार’ हाथी’ व ‘लालू’ थे। इन दोनों ने इस हवेली के निर्माण का आधा-आधा कार्य किया था। हवेली के प्रवेश द्वार के दोनों छोरों पर दो अलंकृत हाथी बने हुए है।

लौद्रवा

यह जैसलमेर की स्थापना से पूर्व जैसलमेर के भाटी राजाओं की राजधानी था। मूमल एवं महेन्द्र की दंत कथाओं के लिए प्रसिद्ध ।

राष्ट्रीय मरु उद्यान

राजस्थान का सबसे बड़ा वन्य जीव अभयारण्य जो आकल वुड फोसिल पार्क के लिए प्रसिद्ध है।

 बादल विलास

जैसलमेर किले के दक्षिण में निर्मित यह पाँच मंजिला भवन है। निश्चय ही यह भवन अपने नाम को सार्थक करता है जैसे वास्तव में यह बादलों के साथ विहार कर रहा हो।

अमर सागर

जैसलमेर के अमरसागर तालाब व बाँध का निर्माण महारावल अमरसिंह ने सन् 1688 ई. में प्रारम्भ करवाया था। इसकी प्रतिष्ठा सन् 1692 में करवाई गई। इसके पास ही अमर बाग स्थित है। यहाँ अनूप बाव महारावल अमरसिंह जी ने अपनी महारानी अनोप कंवर के नाम पर बनवाई। यहाँ उनकी छत्री भी 1702 ई. में बनवाई गई। बाँध के ऊपर श्री अमरेश्वर महादेव का मंदिर है जो महारावल अमरसिंह जी ने 1694 ई. मे बनवाया था | (जैसलमेर का इतिहास)

 घडसीसर सरोवर

जैसलमेर में इस सरोवर का निर्माण रावल घड़सी के शासनकाल में करवाया गया। इस कृत्रिम सरोवर का मुख्य प्रवेश द्वार ‘टीलों की पिरोल’ के रूप में विख्यात है। यहाँ हजरत जमाल शाहपीर की दरगाह भी है।

 गजरूप सागर

गजरूप सागर जल संग्रहण की भूमिगत व्यवस्था का सुंदर प्रतीक है। इसका निर्माण महारावल गजसिंह ने करवाया था।

बादल विलास

यह 5 मंजिला भवन बादल पैलेस परिसर में स्थित है। यह ताजिया की आकृति में बना है।

जैसलमेर का इतिहास महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • महारावल जवाहर सिंह को ‘आधुनिक जैसलमेर का निर्माता’ कहा जाता है। 
  • महारावल हरिराज ने ‘पिंगल शिरोमणि’ नामक ग्रंथ की रचना की।
  • जैसलमेर राजपूताने में एकमात्र ऐसी रियासत थी जिसने न तो 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया न ही उत्तरदायी सरकार की स्थापना की।
  •  30 मार्च, 1949 को तत्कालीन शासक महारावल गिरधारी सिंह ने इसका राजस्थान में विलय कर दिया। महारावल जवाहर सिंह के 17 फरवरी, 1949 को निधन के बाद उनके पुत्र महारावल गिरधारी सिंह जैसलमेर के शासक बने। 
  • जैसलमेर जिले के पश्चिमी क्षेत्र में राज्य का सबसे निचला क्षेत्र है जो ‘लाठी क्षेत्र’ के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र में ‘सेवण घास’ उगती है।
  •  जैसलमेर में दूर-दूर तक रेत ही रेत है जिसे धोरे कहा जाता है। यहाँ पथरीले मरुस्थल को हम्मादा, पूर्ण शुष्क मरुस्थल को ‘इर्ग’ तथा मिश्रित मरुस्थल को ‘रंग’ कहते हैं। इस क्षेत्र में निचले भाग को ‘तल्ली’ तथा इन तल्लियों में बनी अस्थाई झीलों को ‘टाट’ कहते हैं।
  •  प्लाया झीलों (खड़ीन) का सर्वाधिक विस्तार जैसलमेर जिले में ही है।
  •  जैसलमेर जिले में राज्य का सर्वाधिक मरुस्थलीय भाग व सर्वाधिक ‘रन’ क्षेत्र पाया जाता है।
  • भाटियों की प्राचीन राजधानी भटनेर, मारोठ, तनोट व लोद्रवा रही है। राजस्थान में जैसलमेर में प्राकृतिक गैस के सर्वाधिक भंडार मिले हैं। 
  •  जैसलमेर का सानू क्षेत्र स्टील ग्रेड लाइमस्टोन के लिए प्रसिद्ध है।
  •  राज्य में पवन ऊर्जा का सर्वाधिक उत्पादन जैसलमेर में होता है व इसकी सर्वाधिक संभाव्यता भी जैसलमेर में ही है।
  • राजस्थान में सबसे कम जनसंख्या घनत्व के साथ जैसलमेर विरल आबादी वाला क्षेत्र है।
  •  18 मई, 1974 को भारत ने पोकरण, जैसलमेर में अपना प्रथम परमाणु परीक्षण किया। इसे ‘बौद्धा स्माइलिंग’ नाम दिया गया। भारत ने दूसरा परमाणु परीक्षण 11-13 मई, 1998 को खेतोलाई, पोकरण, जैसलमेर में किया। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति 98’ नाम दिया गया।
  •  चाँदन नलकूप को ‘थार का घड़ा’ कहा जाता है।
  • मसूरदी नदी जिले की मुख्य बरसाती नदी है जो कोटरी गाँव की पहाड़ियों से निकलकर बुझ झील में गिरती है। (जैसलमेर का इतिहास)
  •  अमरसागर झील, गजरूप सागर झील व गड़सीसर झील यहाँ की प्रमुख झीलें है।
  • यहाँ को लोक गायकी ‘मांड गायकी’ कहलाती है।
  • जैसलमेर की रम्मतों को ‘तेज कवि’ ने राष्ट्रीय पहचान दी। उन्होंने ‘स्वतंत्र वामनी’ नामक रम्मत लिखी थी। 
  • ‘मूमल’ जैसलमेरो चित्रकला का सर्वश्रेष्ठ चित्र है।
  • रामदेवरा मेले पर आयोजित होने वाला कामड़ियों का तेरहताली नृत्य आकर्षण का केन्द्र होता है।
  •  मांड राग के गीतों में मूमल, वायरिया, हाडो, ढोला मारू, काचबो, नथमल,करियो, झेडर, अरणी, रतनराणो, बाघो भारमली, कुरजां, सोरठ, मारवी व बळोचण अत्यंत लोकप्रिय है।
  •  विजयराव भाटी का नाम इतिहास में ‘विजयराव चुड़ाले’ के नाम से प्रख्यात रहा है। (जैसलमेर का इतिहास)

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निष्कर्ष:

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने जैसलमेर का इतिहास के बारे मे वर्णन किया है जैसलमेर का इतिहास के साथ – साथ जैसलमेर का इतिहास के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भी वर्णन किया है। (जैसलमेर का इतिहास)

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