सवाई माधोपुर का इतिहास: बाघों की क्रीड़ा स्थली सवाई माधोपुर में 1973 में स्थापित राज्य की प्रथम बाघ परियोजना’ रणथम्भौर टाइगर प्रोजेक्ट’ स्थित है। जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम के नाम पर जिले का नामकरण किया गया है। सवाईमाधोपुर शहर की स्थापना जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम ने 19 जनवरी, 1763 को की थी। सवाईमाधोपुर जिले का अब तक दो बार विभाजन किया जा चुका है।
प्रथम बार 1992 में इसका विभाजन कर दौसा जिला बनाया गया तथाद्वितीय विभाजन वर्ष 1997 में करौली जिले का सृजन कर किया गया। सवा जिले में बनास नदी के टीलों पर सुगन्धित घास ‘खस’ (एक तरह क पाई जाती है और इसी कच्चेमाल का उपयोग कर कुण्डेरा और आस- गाँवों में कुछ परिवार खस का इत्र निकालने और अन्य सामग्री बनाने करते है। (सवाई माधोपुर का इतिहास)
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सवाई माधोपुर का इतिहास प्रमुख मेले व त्योहार
मेला | स्थान | देना |
श्री चौथ माता का मेला | चौथ का बरवाड़ा | माघ कृष्ण 4 |
शिवाड़ का मेला | शिवाड़ | शिवरात्रि |
श्री गणेशजी का मेला | रणथम्भौर | भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी |
कल्याण जी का मेला | गंगापुर | बैसाख पूर्णिमा |
जगदीश मेला | कैमरी | बसंत पंचमी व आषाढ़ शुक्ला 2 |
हीरामन का मेला | पशु रोगों एवं उनके लाभ के लिए चमत्कारी देवता का मेला। |
सवाई माधोपुर का इतिहास प्रमुख मंदिर
घुश्मेश्वर महादेव
जिले के शिवाड़ कस्बे में भगवान शिव का बारहवाँ व अंतिम ज्योतिर्लिंग ‘घुश्मेश्वर महादेव’ अवस्थित है।
धुंधलेश्वर स. माधोपुर
गंगापुर सिटी से लगभग 6 किमी दूर धुँधलेश्वर का प्राचीन शिवालय है। यहाँ भाद्रपद कृष्णा नवमी को वार्षिक मेला लगता है। यहाँ भगवान आशुतोष का शिवलिंग स्थित है। (सवाई माधोपुर का इतिहास)
चमत्कारजी का मंदिर
सवाई माधोपुर के निकट आलनपुर में चमत्कारजी का मंदिर है, जिसमें भगवान ऋषभदेव की स्फटिक पाषाण की बनी चमत्कारी प्रतिम है। यहाँ प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को सड़क के किनारे ही मेला भरता है।
गणेश मंदिर, रणथंभौर
सवाई माधोपुर के पास स्थित इस मंदिर में श्री गणपति के मात्र मुख की पूजा होती है। गर्दन, हाथ, शरीर, आयुध व अन्य अवयव इस प्रतिम में नहीं हैं। रणथम्भौर के गणेश जी लाखों लोगों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी गणेश चतुर्थी को यहाँ प्रतिवर्ष ऐतिहासिक और संभवत: देश का सबसे प्राचीन गणेश मेला भरता है। गणेश मंदिर के पूर्व में पठार पर भक्तगण पत्थर का प्रतीकात्म घर बनाते हैं। जन मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन यहाँ ऐसा करने से गणेश जी प्रसन्न होकर उनके स्वयं का मकान होने का योग सिद्ध करते हैं।
विवाह तथा अन्य मांगलिक अवसर पर कार्यों को प्रारम्भ करने से पहले रणथम्भौर के गणेशजी को निमंत्रण देना, वहाँ पधारने का आग्रह करना अति प्राचीन परम्परा है। रणथम्भौर के गणेश जी त्रिनेत्री हैं। गणेश जी की ऐसी मुखाकृति अन्यत्र किसी मंदिर में देखने को नहीं मिलती है। मंदिर निर्माण के बारे में अनेक किवदंतियाँ है, परन्तु यह निर्विवाद है कि सन् 944 में दुर्ग निर्माण से पहले इस मंदिर का निर्माण अवश्य हो गया था। चौहान राजाओं के काल से ही यहाँ गणेश चौथ का मेला भरता आ रहा है | (सवाई माधोपुर का इतिहास)
रामेश्वरम
खंडार तहसील में चम्बल, बनास एवं सीप नदी के संगम पर रामेश्वरम् का प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर मेला भरता है।
सवाई माधोपुर का इतिहास: प्रमुख दर्शनीय स्थल
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान
प्रोजेक्ट टाइगर के अन्तर्गत यह उद्यान देश के बेहतरीन बाघ आरक्षित क्षेत्रों में से एक है। इसमें प्रसिद्ध जोगी महल, पद्म तालाब व बाग स्थित है। यहाँ खस घास पाई जाती है। परियोजना क्षेत्र की भू-गर्भीय रचना की एक अद्वितीय विशेषता यह है कि यहाँ दो अलग अलग पर्वत श्रृंखला विध्याचल व अरावली पर्वतमालाएँ मिलती है। दो बड़ी नदियाँ चम्बल व बनास इस क्षेत्र में सीमाबन्ध करती है | (सवाई माधोपुर का इतिहास)
अन्य स्थल
काकोड़, चौथमाता का मंदिर (चौथ का बरवाड़ा), रणथम्भौर दुर्ग क्षेत्र में गुप्त गंगा, बारहदरी महल, हम्मीर की कचहरी, बत्तीस स्त की छतरी आदि दर्शनीय स्थल है।
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निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने सवाई माधोपुर का इतिहास के बारे मे वर्णन किया है, सवाई माधोपुर का इतिहास के साथ – साथ सवाई माधोपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भी वर्णन किया है।
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