झुंझुनू का इतिहास: प्रमुख पर्यटन स्थल

झुंझुनू का इतिहास : राव शेखा (1433-88) की जन्म स्थली ‘शेखावाटी क्षेत्र आज राजस्थान की (कला दीर्घा) के नाम से विख्यात है। यहाँ की हवेलियाँ भित्ति चित्रण’ के लिए प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र देश के प्रमुख मारवाड़ी व्यवसायियों की जन्म स्थली है, जो एक शताब्दी से भी अधिक समय से देश के वाणिज्यिक एवं औद्योगिक क्षेत्र की रीढ़ है। झुंझुनू, सीकर एवं चुरू जिले के क्षेत्र शेखावाटी में आते हैं।

यहाँ के भित्ति चित्रों में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया गया है, जो आज भी पूर्व की भाँति ही विद्यमान हैं। शेखावाटी के प्रमुख भाग झुंझनूँ जिले को राजस्थान के मरुस्थल का सिंह द्वार कहा जाता है। इस जिले का लगभग आधा भाग (उत्तरी हिस्सा) अर्द्ध शुष्क मरुस्थलीय है एवं दक्षिणी हिस्से में अरावली पवर्तमाला की पहाड़ियाँ हैं जिनमें मुख्य रूप से तांबे के भण्डार हैं। इस क्षेत्र में 1045 ई. के लगभग चौहान शासक सिद्धराज का शासन था।

झुंझुनू का इतिहास 
झुंझुनू का इतिहास 

फिरोज खाँ तुगलक के बाद सन 1450 ई. के लगभग कायम खाँ के पुत्र मुहम्मद खाँ ने चौहानों को हराकर झुंझुनूं में अपना राज कायम किया। विक्रम संवत् 1787 (सन् 1730 ई.) तक यहाँ कायमखानी नवाबों का आधिपत्य रहा। इसके बाद इस पर शेखावत राजपूतों का आधिपत्य हो गया। झुंझुनूँ आज प्रदेश में साम्प्रदायिक सद्भाव की दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थानका सिरमौर जिला ) रखता है।झुंझुनू को यह नाम ‘झुंझा’ जाट या ‘जुझार सिंह नेहरा’ की स्मृति के रूप में दिया गया है। झुंझुनू को ताम्र जिला व खेतड़ी को ताम्र नगरी कहा जाता है। (झुंझुनू का इतिहास )

  •  शशन के उत्तर-पूर्व, पूर्व व दक्षिण-पूर्व में हरियाणा, दक्षिण व दक्षिण- पश्चिम में सीकर तथा उत्तर व उत्तर-पश्चिम में चूरू जिला है।
  •  इसके दक्षिण पूर्व में अरावली की पहाड़ियाँ हैं।

झुंझुनू का इतिहास: प्रमुख मेले व त्यौहार

मेलास्थानदिन
 रायमातागांगियासरविजयदशमी
 नरहड़ पीरजीनरहड़कृष्ण जन्माष्टमी
लोहार्गललोहार्गलभाद्रपद की माह गोगा नवमी से अमावस तक तथा चैत्र में सोमवती अमावस्या को
मनसा देवीझुंझुनूँ चैत्र सुदी 8 एवं आसोज सुदी 8
 राणी सती मेला प्रमुख मंदिरझुंझुनूँभाद्रपद अमावस्या
झुंझुनू का इतिहास

झुंझुनू का इतिहास: प्रमुख मंदिर

लोहार्गल, झुंझुनूँ

मालकेतु पर्वत की शंखाकार घाटी में यह प्रसिद्ध तीर्थ अवस्थित है। इस तीर्थ की चौबीस कौसी परिक्रमा प्रसिद्ध है। यह गोगा नवमी से प्रारंभ होकर भाद्रपद अमावस्या को समाप्त होती है। इसे मालखेत जी की परिक्रमा भी कहा जाता है। यहाँ बोरखंडी शिखर एवं सूर्यकुंड आदि दर्शनीय स्थान हैं।

राणीसती का मंदिर

मंदिर राणी सती का वास्तविक नाम नारायणी था जो अग्रवाल जाति की थी। यह मंदिर झुंझुनूँ में । इसे नारायणी बाई का मंदिर भी कहते हैं।

रघुनाथजी चूड़ावत का मंदिर

खेतड़ी के इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण राजा बख्तावर जी की रानी चूड़ावत ने करवाया था। इसमें श्री राम व लक्ष्मण की मूँछों वाली मूर्तियाँ प्रतिष्ठित है जो अन्यत्र दुर्लभ हैं।

 नरहड़ शरीफ की दरगाह

झुंझुनूं जिले की चिड़ावा तहसील के एक प्राचीन कस्बे नरहड़ में बाबा शक्कर बार पीर की दरगाह स्थित है। बाबा शक्कर बार पीर को ‘बांगड़ का धणी’ व ‘हाजी बाबा’ भी कहा जाता है। प्रत्येक जन्माष्टमी पर इस दरगाह में मेला भरता है जिसमें विभिन्न सम्प्रदायों के लोग बिना जातिगत भेदभावों के भाग लेते हैं। नरहड़ शरीफ की पवित्र भूमि साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा स्थल है। इस दरगाह में तीन दरवाजे बुलन्द, बसन्ती व बगली दरवाजा है। (झुंझुनू का इतिहास )

झुंझुनू का इतिहास: दर्शनीय स्थल

ईसरदास की हवेली

यह शताधिक खिड़कियों वाली हवेली है।

 खेतड़ी महल झुंझुनू

खेतड़ी के महाराजा भोपाल सिंह (1735-1771 ई.) द्वारा अपने ग्रीष्मकालीन विश्राम हेतु झुंझुनू में अनेक खिड़कियों व झरोखों से सुसज्जित बहुमंजिले खेतड़ी महल का निर्माण करवाया गया था। इस महल में लखनऊ जैसी भूल भूलैया एवं जयपुर के हवामहल की झलक देखने को मिलती है। इसे ‘राजस्थान का दूसरा हवामहल’ भी कहा जाता है।

करोड़ी

यहाँ उदयपुर वाटी के दानवीर शासक टोडरमल एवं वित्त मंत्री मुनशाह के स्मारक हैं। यहां केवड़े के दुर्लभ वृक्ष भी उपलब्ध हैं। 

खेतड़ी

खेतड़ी नगर की नींव राजा खेत सिंह निर्वान ने डाली। भारत की ‘ताम्र नगरी’ के नाम से विख्यात खेतड़ी नगर का स्वामी विवेकानन्द से गहरा रिश्ता है। शिकागो धर्म सम्मेलन में जाने से पूर्व स्वामीजी खेतड़ी आये थे। खेतड़ी नरेश महाराजा अजीतसिंह से उनका पारिवारिक संबंध था। स्वामीजी को विवेकानन्द नाम खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह ने ही दिया था। पं. मोतीलाल नेहरू (जवाहरलाल नेहरु के पिता) की प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं हुई थी। खेतड़ी के निकट शिमला गाँव से शेरशाह सूरी का भी संबंध था। यहाँ रामकृष्ण मिशन का मठ, गोपालगढ़ का दुर्ग पन्नालाल शाह का तालाब ( सतरंगी तालाब), खेतड़ी का किला, गोपीनाथ का मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं। (झुंझुनू का इतिहास )

अजीत सागर बाँध

यह बाँध राजा अजीत सिंह ने बन्सियाल गाँव (खेतड़ी) में बनवाया।

 स्वामी विवेकानंद

इस म्यूजियम को बनाने की घोषणा स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती पर जनवरी 2013 में की गई। यह म्यूजियम फतेह विलास पैलेस, खेतड़ी में बनाया गया है।

पिलानी

तकनीकी शिक्षा के राष्ट्रीय सिरमौर पिलानी में तथा केन्द्रीय इलेक्ट्रानिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान स्थित है। बिरला हवेली एवं पंचवटी परिसर आदि दर्शनीय स्थल हैं। बिरला तकनीकी म्यूजियम (देश का प्रथम उद्योग एवं तकनीकी म्यूजियम) बिट्स पिलानी में 1954 में स्थापित किया गया।

महनसर

पौद्दारों की ‘सोने की दुकान’ (सोने-चाँदी की हवेली) जिस पर भित्ति चित्रों में स्वर्णिम पॉलिस की गई है एवं श्रीराम एवं श्रीकृष्ण की लीलाओं का नयनप्रिय चित्रण किया हुआ है, के लिए प्रसिद्ध तोलाराम मसखरा का महफिल खाना भी यहाँ है।

नवालगढ़

यहाँ पौद्दारों की हवेली, भगतों की हवेलियाँ, बघेरियों (भगोरियों) की हवेलियाँ, आठ हवेली काम्प्लेक्स, रूपनिवास महल, रावल साहब की हवेली, लालधरजी व घरकाजी की हवेली, चौखानी परिवार की हवेली आदि प्रसिद्ध दर्शनीय हवेलियाँ हैं। यह कस्बा ‘शेखावाटी की स्वर्णनगरी’ के नाम से विख्यात है।

बिसाऊ

इस कस्बे में स्थित प्रसिद्ध हवेलियों में सेठ जयदयाल केड़िया की हवेली, पोद्धारों की हवेली, हीराराम बनारसी की हवेली, विरलाजी की हवेली एवं सीताराम सिंगतिया की हवेली है |

 मण्डावा

यहाँ रामदेव चोखाणी की हवेली एवं सागरमल लाडिया की हवेली प्रसिद्ध है।

मोड़ा पहाड़

झुंझुनूं में मोडा पहाड़ एक प्रसिद्ध सनसेट प्वाइंट है।

अन्य दर्शनीय स्थल

शेखावाटी क्षेत्र यहाँ की भित्ति चित्रों से युक्त प्राचीन हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ मण्डावा, डूण्डलोद, मुकुन्दगढ़, चिड़ावा आदि प्रमुख कस्बे हैं, जहाँ की हवेलियाँ अत्यधिक आकर्षक हैं। इसके अतिरिक्त कमरुद्दीन शाह की दरगाह, मनसा माता का मंदिर, (उदयपुरवाटी के पास), मोदियों की हवेली, बिरदी का कुआँ, टिबेरवाला की हवेली, हेमराज कूलवाल हवेली, केसरदेव की हवेली, बादलगढ़, चंचलनाथ का टीला, फतेहसागर तालाब, नवाब रुहेल खाँ का मकबरा, जामा मस्जिद व आबूसर में नेतका टीला आदि अन्य दर्शनीय स्थल है। (झुंझुनू का इतिहास )

इसके अलावा अन्य पर्यटक स्थलों में नेतजी दादा का मंदिर (खुड़ानिया गाँव), धुनरी गाँव का जुहार जी का मंदिर, भोपालगढ़ दुर्ग (खेतड़ी), बिनगढ़ दुर्ग (टमकोर), अलसीसर महल, बिसाऊ महल, बिसाऊ दुर्ग, सूरजगढ़ दुर्ग, रामकृष्ण मिशन, धोसी पहाड़ी, श्यामगढ़ दुर्ग, बंधे के बालाजी मंदिर आदि आते हैं।

  • 1742 में बनी मेड़तणी बावड़ी, खेतानों की बावड़ी, जीतमल का जोहड़ा, तुलस्यानों की बावड़ी, लोहार्गल तीर्थस्थल पर बनी चेतनदास को बावड़ी तथा नवलगढ़ कस्बे की बावड़ी झुंझुन जिले की मुख्य बावड़ियाँ है। इसके अलावा शैशन के नवाब शम्सखों द्वारा बनवाया गया सम्म तालाब तथा सार्दुलसिंह की मेड़तनी रानी द्वारा बनवाई गई झुंझुनूं की भूत बावड़ी प्रमुख है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • झुंझुनूँ जिले में मेजर हेनी फोस्टर ने 1835 ई. में एक फौज का गठन किया था जिसका नाम शेखावाटी ब्रिगेड रखा था।
  •  शेखावाटी क्षेत्र में गींदड़, चंग व ढप परम्परागत लोकनृत्य है।
  • बाघोरगढ़ दुर्ग : बाघोर गाँव में स्थित दुर्ग। इसमें बौद्ध कालीन मूर्ति मिली है।
  • डूंडलोद : यहाँ गोयनका हवेली प्रसिद्ध है। यहाँ की गोयनका छतरी और डूंडलोद का किला दर्शनीय है। डूंडलोद में इंग्लैंड की डंकी सेंचुरी के सहयोग से देश का 5वाँ और राज्य का प्रथम गर्दभ अभयारण्य स्थापित किया। गया है।  (झुंझुनू का इतिहास )
  • अकवाली में देश की प्रथम खनिज कोर लाइब्रेरी स्थापित की गई है।
  • सुनारी नामक पुरातत्व स्थल पर खुदाई में धोंकनी लगी धमन भट्टी मिली है।

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निष्कर्ष;

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने झुंझुनू का इतिहास  का सम्पूर्ण विवरण प्रदान किया है, झुंझुनू का इतिहास के साथ- साथ, झुंझुनू के प्रमुख पर्यटन स्थल का भी वर्णन किया है।