डूंगरपुर का इतिहास: डूंगरपुर राज्य का पुराना नाम ‘वागड़’ है जो गुजराती भाषा के ‘वगड़ा’ शब्द से मिलता हुआ है, जिसका अर्थ जंगल होता है। प्राचीन ‘वागड़’ (या वाग्वर) प्रदेश में वर्तमान डूंगरपुर और बाँसवाड़ा राज्यों तथा उदयपुर का कुछ दक्षिणी भाग अर्थात् छप्पन नामक प्रदेश का समावेश होता था। वागड़ प्रदेश की पुरानी राजधानी ‘बड़ौदा’ थी, जो वर्तमान में आसपुर तहसील का एक गाँव है। डूंगरसिंह ने 1358 ई. में डूंगरपुर नगर का स्थापना की और वहाँ राजधानी बनायी, तभी से वागड़ को डूंगरपुर राज्य भी कहने लगे। (डूंगरपुर का इतिहास)
महारावल उदयसिंह की 1527 ई. में मृत्यु के बाद इस राज्य के दो भाग हुए जिसमें पश्चिम भाग डूंगरपुर राज्य और पूर्वी भाग बाँसवाड़ा राज्य कहलाया। इन दोनों राज्य की सीमा माही नदी ने बनाई। 1527 ई. में महारावल पृथ्वीराज ने डूंगरपुर की स्वतंत्र राज्य के रूप में नींव डाली। माही, सोम, भादर, मोरेन यहाँ की मुख्य नदियाँ है। डूंगरपुर में ‘परेवा’ नाम का सफेद, श्याम व भूरे रंग का पत्थर निकलता है जिससे बर्तन, खिलौने व मूर्तियाँ बनते हैं। डूंगरपुर राज्य की मुख्य भाषा ‘वागड़ीं’ है जो गुजराती का रूपान्तर है। 25 मार्च, 1948 को डूंगरपुर का राजस्थान संघ में विलय कर दिया गया। उस समय डूंगरपुर के शासक महारावल लक्ष्मणसिंह थे l (डूंगरपुर का इतिहास)
डूंगरपुर का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार
मेला | स्थान | दिन |
बेणेश्वर | बेणेश्वर धाम | माघ पूर्णिमा |
उर्स (दाउदी बोहरा सम्प्रदाय) | गलियाकोट | मुहर्रम के 27वें दिन |
रथोत्सव | डूंगरपुर पीठ | भाद्रपद पूर्णिमा |
बीजवा माता का मेला | आसपुर | शीतला सप्तमी |
मूरला गणेश | डूंगरपुर | दीपावली की दूज पर |
बोरेश्वर मेला | बोरेश्वर | वैशाख पूर्णिमा |
हड़मतिया का मेला | पालपाण्डव | कार्तिक शुक्ला चौदस |
नीला पानी का मेला | हाथोड़ | कार्तिक शुक्ला चौदस |
डूंगरपुर का इतिहास प्रमुख मंदिर
देव सोमनाथ
यह प्राचीन शिव मंदिर सोम नदी के किनारे देवगांव में स्थित है। संभवतः 12वीं सदी में निर्मित देवसोमनाथ शिवालय वागड़ का सांस्कृतिक वैभव तो है ही वास्तुशिल्प की दृष्टि से भी अद्वितीय है। इसमें बिना सीमेन्ट व चूने के विशिष्ट शिल्यविधि से पत्थरों को जोड़कर निर्मित किया गया है। आकर्षक झरोखे, कलात्मक सिखर और विशाल आकम वाला यह मंदिर राज्य के अतिरिक्त अन्य प्रान्तों केश्रद्धालुओं की आस्था का भी केन्द्र है।
बेणेश्वर धाम (वागड़ का पुष्कर एवं वागड़ का कुंभ)
माही, सोम और जाखम नदियों के संगन पर नेषटापारा गाँव के पास स्थित बेणेश्वर धाम बनवासियों (आदिवासियों) का महातीर्थ है। यहाँ पहाड़ी पर प्राचीन शिवालय है। इसे महारावल आसकरण ने बनवाया था। बेणेश्वर धाम का सर्वोपरि महत्व मृतात्माओं के मुक्तिस्थल के रूप में भी है। संत माकजी महाराज का संबंध इसी धान से है। बेणेश्वर मेले का शुभारम्भ माष शुक्ला ग्यारस के शुभ दिन भ)
बेणेश्वर पीठाधीश्वर (वर्तमान में गोस्वामी अच्युतानन्द महाराज) द्वारा बेणेश्वर धाम के प्रधान देवालय हरि मंदिर (राधा-कृष्ण मंदिर)पर सात रंगों वाला ध्वज चढ़ा कर किया जाता है, जो पूर्णिमा तक चलता है।(डूंगरपुर का इतिहास)
विजय राजेश्वर मंदिर
दूंगरपुर के गैबसागर पर पारेका प्रस्तर से निर्मित इस चतुर्भुजाकार भव्य मंदिर का निर्माण महारावल विजयसिंह ने प्रारम्भ करवाया था जिसे उनके पुत्र महारावल लक्ष्मणसिंह ने पूर्ण करवाया।
सैयद फखरुद्दीन की मस्जिद, गलियाकोट
परमार राजाओं से संबंधित एवं सागवाड़ा तहसील में माही नदी के तट पर स्थित यह स्थान वर्तमान में दाउदी बोहरा सम्प्रदाय के बावजी कोट मौला सैयद फखरुद्दीन शाहोद की मस्जिद के लिए प्रसिद्ध है। इनकी मजार को ‘मजार-ए-फखरी’ कहते हैं। यह दाउदी बोहरा सम्प्रदाय का प्रधान तीर्थ स्थल है। यहाँ हर वर्ष उर्स भरता है। गलियाकोट की गोबर के कंडों से खेली जाने वाली होली प्रसिद्ध है। गलियाकोट का अन्य नाम ‘ताहेराबाद’ है। दाउदी बोहरा समुदाय इस्माइली शिया मुस्लिम संप्रदाय की शाखा है।(डूंगरपुर का इतिहास)
गवरी बाई का मंदिर
बगड़ की मोरां गवरी बाई का मंदिर डूंगरपुर में महारावल शिवसिंह ने निर्मित कराया। (डूंगरपुर का इतिहास)
संत मावजी का मंदिर, साबला
पुंजपुर के निकट साबला ग्राम में संत मावजी का मुख्य हरि मंदिर है। मावजी को विष्णु का कल्कि (निष्कलंकी) अवतार माना जाता है। यह बेणेश्वर धाम से कुछ दूरी पर ही साबला ग्राम में है। संत माषजी (सन् 1714-49) ने भीलों में सामाजिक व धार्मिक सुधार हेतु एक आंदोलन चलाया था। वे कृष्ण के भक्त थे एवं स्वयं कृष्ण का रूप धारण कर रासलीला करते थे व स्वयं को कृष्ण का निष्कलंकी अवतार मानते थे। वे मोक्ष प्रासि हेतु योग साधना, भक्ति एवं कर्म को आवश्यक मानते थे एवं बाह्याडम्बरों के विरोधी थे। जाति प्रथा का विरोध करते हुए उन्होंने अछूतों एवं भीलों का उद्धार किया। (डूंगरपुर का इतिहास)
संत भावजी न जाति प्रथा के बंधन समाप्त होने, राजतंत्र एवं जागीरदारी प्रथा को समाप्ति, मुद्रा अवमूल्यन, धातु मुद्दा के स्थान पर कागज की प्रतीक मुद्रा के प्रचलन, ब्राह्मणों का एकाधिकार समात होने, उत्तर से प्रलयंकारी शक्ति का आगमन, पश्चिम से शांति स्थापित करने वाली शक्ति का अवतरण तथा भयंकर युद्ध एवं नरसंहार होने आदि भविष्यवाणियाँ की थी। उनकी भविष्यवाणियाँ उनके द्वारा लिखित उपदेशों (मावजी की वाणी) जो ‘चौपड़ा’ कहलाती है, में वर्णित हैं।
उनकी ये भविष्यवाणियाँ वर्तमान में अक्षरशः सत्य सिद्ध हो रही हैं। संत मावजी ने आदिवासी समाज में व्याप्त कुप्रथाओं एवं आडम्बरों को समाप्त कर सादा एवं सरल जीवन जीने का उपदेश दिया है। ‘न्याय’, ‘ज्ञान भंडार’, ‘अकलरमण’, ‘सुरानंद’, ‘ज्ञान रत्नमाला’, ‘कालिंगा-हरण’ आदि संत मावजी द्वारा रचित ग्रंच है। साबला और पूंजपुर के अतिरिक्त डूंगरपुर राज्य में बेणेश्वर वा ढालावाला, मेवाड़ राज्य में सैंसपुर (सलूंबर के पास) और बाँसवाड़ा राज्य में पारोदा गाँव में मावजी के मंदिर है। (डूंगरपुर का इतिहास)
नागफैनजी मंदिर
यह जैन मंदिर डूंगरपुर में स्थित है। इस मंदिर में देवी पद्मावती, नागफैनजी व धरणेन्द्र की मूर्तियाँ है। इसके पास ही नागफैन जी शिवालय भी है।
वसुंदरा (वसुंधरा)देवी का मंदिर
यह प्राचीन मंदिर डूंगरपुर के वसुंदरा गाँव में स्थित है।
बोरेश्वर महादेव का मंदिर
डूंगरपुर के सोलज गाँव के निकट सोम नदी के किनारे बोरेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है, जिसका निर्माण महारावल सामन्तसिंह द्वार सन् 1179 ई. में सोम नदी के किनारे पर करवाया गया था।
भुवनेश्वर शिव मंदिर
यह शिव मंदिर, डूंगरपुर से 9 किमी दूर भुवनेश्वर गाँव में एक पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग है।
मुरलीमनोहर का मंदिर
डूंगरपुर के महारावल वैरिशाल की रानी शुभकुँवरी ने डूंगरपुर में मुरली मनोहर का मंदिर बनवाया व 30 अप्रैल, 1800 को इसक प्रतिष्ठा करवाई।
शिवज्ञानेश्वर शिवालय
महारावल शिवसिंह द्वारा गैबसागर झील के तट पर अपनी माता की स्मृति में शिवज्ञानेश्वर शिवालय बनवाया। उन्होंने दक्षिण कालिका का मंदिर भी बनवाया। (डूंगरपुर का इतिहास)
फूलेश्वर महादेव
महारावल शिवसिंह की रानी फूलकुंवरी ने फूलेश्वर महादेव का मंदिर बनवाकर 10 फरवरी, 1780 को उसकी प्रतिष्ठा करवाई।
राधे बिहारी का मंदिर
महारावल उदयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित मंदिर।
महालक्ष्मी का मंदिर
महारावल विजयसिंह अपनी माता हिम्मत कुँवरी की स्मृति में बेणेश्वर में यह मंदिर बनवाया।
रामचंद्र जी का मंदिर
गैब सागर की पाल पर महारावल उदयसिंह द्वितीय की पटरानी उम्मेद कुँवरी द्वारा निर्मित करवाया गया मंदिर।
श्रीनाथ जी (गोवर्धन नाथ) का मंदिर
इस मंदिर का निर्माण महारावल पंजराज ने करवाया था। इसकी प्रतिष्ता 25 अप्रैल, 1623 को की गई। इसमें श्री गोवर्धन नाथ जी अ श्री राधिका जी की आदमकद प्रतिमाएँ है।
क्षेत्रफल | 3770 वर्ग किमी. |
स्थापना | 1358 |
जनसंज्ञा | 6,34,141 |
पिनकोड़ | 314001 |
राजा | डूँगरिया भील |
डूंगरपुर का इतिहास दर्शनीय स्थल
गूढ़ मण्डप
यह एक तिमंजिला हॉल है, जो पास स्थित तीन मंदिरों के लिए प्रयुक्त होता रहा है। यह 12 स्तंभों एवं 64 पायों पर टिका हुआ है।
शिवज्ञानेश्वर शिवालय (एक थम्बिया महल)
डूंगरपुर के सुरम्य गेबसागर तट पर उदयविलास राजप्रासाद में स्थित यह शिवालय वागड़ की उत्कृष्ट वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण है। इसका निर्माण महारावल शिवसिंह (1730-85 ई.) द्वारा अपनी माता राजमहिषी ज्ञानकुंवर की स्मृति में शिवज्ञानेश्वर शिवालय के रूप में करवाया गया था। कालान्तर में यह शिवालय ही एक थम्बिया महल के रूप में विख्यात हुआ। इसे ‘कृष्ण प्रकाश’ भी कहा जाता है। (डूंगरपुर का इतिहास)
जूना महल
डूंगरपुर में धनमाता पहाड़ी पर 13वीं सदी में पारेवा पत्थर से निर्मित महल।
बादल महल
गैबसागर झील के किनारे निर्मित महल।
पुंजेला झील
यह झील महारावल पुंजराज ने बनवाई। इसका जीर्णोद्धार महारावल विजयसिंह ने किया।
गैब सागर झील
महारावल गोपीनाथ ने 15वीं शताब्दी में डूंगरपुर में गैब सागर झील बनवाई।
एडवर्ड समुद्र
सम्राट एडवर्ड सप्तम की स्मृति में महारावल विजय सिंह ने यह झील बनानी प्रारम्भ की जिसे उनके पुत्र महारावल लक्ष्मण सिंह ने पूर्ण किया।
नौलखा बाग
डूंगरपुर में यह बाग महारावल पुंजराज ने बनवाया।
उदयबाव
यह बावड़ी महारावल उदयसिंह द्वितीय ने बनवाई।
नौलखा बावड़ी
महारावल आसकरण की चौहान वंश की रानी प्रेमल देवी ने डूंगरपुर में भव्य नौलखा बावड़ी बनवाई। (डूंगरपुर का इतिहास)
केला बावड़ी
महारावल जसवंत सिंह की राठौड़ रानी गुमान कुँवरी ने यह बावड़ी बनवाई। (डूंगरपुर का इतिहास)
डेसा गाँव की बावड़ी
बड़ी यह बावड़ी डूंगरसिंह के पुत्र रावल कर्मसिंह की रानी माणक दे ने 23 अक्टूबर, 1396 को बनवाई।
अन्य स्थल
नानाभाई खाट व कालीबाई उद्यान, पुंजपुर, बड़ौदा गाँव (वागड़ राज्य की प्राचीन राजधानी जो आसपुर तहसील में है), धनमाता व कालीमाता के मंदिर, मजार-ए-फखरी।(डूंगरपुर का इतिहास)
महरावल पृथ्वीराज
डूंगरपुर का इतिहास महत्त्वपूर्ण तथ्य
- राड-रमण: होलिका दहन के दूसरे दिन डूंगरपुर में राड-रमण का आयोजन केया जाता था l
- पितृ पूजा महोत्सवः दीपावली के 14 दिन पश्चात् आने वाली कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को वनवासी पूर्वजों की स्मृति में पितृ पूजा महोत्सव मनाते है। यह महोत्सव दीपावली के दिन मृतात्माओं के दीपदान की रस्म दीवड़ा के साथ प्रारंभ हो जाता है। (डूंगरपुर का इतिहास)
- डूंगरपुर जिला देश का पहला पूर्ण साक्षर आदिवासी जिला बना था। राजस्थान में सर्वाधिक लिंगानुपात इसी जिले का है।
- डूंगरपुर जिले की प्रमुख झीलें व बाँध : पुंजेला झील, गैब सागर, सोम- कमला-अम्बा बाँध, कुमल सगार बाँध, डिमीया डेम (मोरेन नदी पर), पटेला झील, लाड़ीसर झील, सवेला झील, चूंडावाडा की झील।
- सोम-कमला-अम्बा सिंचाई परियोजना डूंगरपुर जिले की प्रमुख सिंचाई परियोजना है।
- राजस्थान में डूंगरपुर, बाँसवाड़ा व उदयपुर की झूमिंग खेती को ‘वालरा’ कहते हैं।
- दूँगरपुर जिला पूर्ण साक्षर घोषित होने वाला राजस्थान का पहला आदिवासी जिला है। गलियाकोट सोपस्टोन के कलात्मक खिलौनों के लिए जाना जाता है, जिसे रमकड़ा उद्योग कहते हैं। (डूंगरपुर का इतिहास)
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निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने डूंगरपुर का इतिहास की विस्तार से व्याख्या की है, साथ ही डूंगरपुर का इतिहास के प्रमुख पर्यटन स्थल का भी वर्णन किया है।
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