नागौर का इतिहास:Nagaur history in Hindi

नागौर का इतिहास: प्राचीनकाल में अहिछत्रपुर के नाम से विख्यात नागौर जांगलदेश व सपादलक्ष (शाकंभरी) के चौहानों की राजधानी रहा था। 1570 ई. में अकबर ने अजमेर जियारत कर सीधे नागौर जाकर अपना दरबार लगाया, जहाँ मारवाड़ अधिकांश शासकों ने उसकी अधीनता स्वीकार की थी। अतः मारवाड़ के की परतंत्रता की कड़ी में नागौर दरबार एक महत्त्वपूर्ण कड़ी था। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व नागौर जोधपुर रियासत का हिस्सा था। (नागौर का इतिहास)

नागौर का इतिहास:
नागौर का इतिहास:
  • नागौर से बीकानेर, चुरू, सीकर, जयपुर, अजमेर, पाली व जोधपुर सीमाएँ मिलती हैं।
  • नागौर में जिप्सम बहुतायत से पाया जाता है।
  •  नागौर जिले में खारे पानी की झीलें-डीडवाना, डेगाना व कुचामन हैं।
  • डीडवाना झील जिले की सबसे बड़ी नमकीन झील है जिसका पानी खारा हैं | (नागौर का इतिहास)

Table of Contents

प्रमुख मेले व त्यौहार

नाम स्थानतिथि
चारभुजानाथ (मीराबाई) का मेलामेड़ता सिटीश्रावण शुक्ला एकादशी से सात दिन तक
दधिमति माता का मेलागोठ मांगलोदआश्विन शुक्ला 8 व चैत्र शुक्ला 8
हरिराम जी का मेलाझौरड़ाभाद्रपद शुक्ला 5
तारकीन का उर्सनागौरसंत काजी हमीदुद्दीन नागौरी की दरगाह में
लक्ष्मीनारायण झूला का मेलामौलासरश्रावण मास
नागौर का इतिहास:

नागौर का इतिहास: प्रमुख मंदिर

चारभुजानाथ, मेड़ता (नागौर)

इस मंदिर को स्थापना राथ दूदा ने को। यहाँ मीरा, संत तुलसीदास, रैदास आदि को आदमकद प्रतिमाएँ हैं।

 कैवाय माता का मंदिर

नागौर जिले में परबतसर के निकट किनसरिया गाँव में पत्र शिखर पर बना कैवायमाता का मंदिर अति प्राचीन है।

दधिमति माता का मंदिर,(गोठ मांगलोद)

नागौर को जामल तहसील में गोठ और मांगलोद नामक गाँवों को सीमा पर यह मंदिर दधिमति माता (दाहिमा दाधीच ब्राह्मणों को आराध्य देवी) के नाम से विख्यात है। यह मंदिर 7से 9वीं शताब्दी पार्क में निर्मित है जो प्रतिहारकालीन महारू हिन्दू मंदिर शैली का है | (नागौर का इतिहास)

 भुवाल माता का मंदिर

 मेड़ता से 20 किमी. दूर भुवाल ग्राम में स्थित इस शक्तिपीठ में चामुण्डा और महिषमदिनी के स्वरूपों की पूजा होती है। यहां नवर की अष्टमी को मेला लगता है।

 बंशीवाले का मंदिर

 नागौर में स्थित इस मंदिर को मुरलीधर का मंदिर भी कहा जाता है।

ब्रह्माणी माता का मंदिर

नागौर में स्थित ब्रह्माणी नावों के इस प्राचीन म… को बरमायों का मंदिर तथा योगिनी का मंदिर भी कहा जाता है।

 पाडामाता का मंदिर

डीडवाना झील के निकट सरको माता अथवा पजमाता का मंदिर है।

गुसाईं मंदिर

वाले अवतार-गुसाई जो का यह मंदिर जुगाल में स्थित है। यहाँ भाद्रपद माह में मेला लगता है।

 झोरड़ा

 श्शेरा गाँव बाबा हरिराम को जन्मस्थली है। बाबा हरिराम रेगिस्तानों क्षेत्र के सांप-बिच्छुओं द्वारा इसे लोगों का उपचार करते थे। आर भी यहाँ सौंप-बिचट्ट के इसे हुए लोगों का उपचार होता है। प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की चतुर्थी व पंचमी को गाँव में मेला लगता है। (नागौर का इतिहास:)

खरनाल

यह लोकदेवता तेजाजी की जन्म भूमि है। खरनाल गाँव में वीर तेजाजी का एक छोटा मंदिर बना हुआ है। खरनाल गाँव से 1/2 किमी दूर तेजाजी की बहन युगलबाई का मंदिर है। दरगाह बड़ी खाटू गाँव में स्थित है।

शाह-समद दीवान की दरगाह

या ददारग़ा बड़ी खठो गाव मे  स्थित है |

रैण

मेड़ता, नागौर में स्थित रैण रामस्नेही सम्प्रदाय के महात्मा दरियाव जी महाराज की कर्मस्थली है। 

वीर तेजाजी का मंदिर, परबतसर

लोकदेवता वीर तेजाजी का मंदिर है।

बड़े पीर की दरगाह, नागौर

यह सूफियों की कादरिया शाखा के जन्मदाता सैय्यद सैफुद्दीन अब्दुल वहाब की दरगाह है।

सुल्तानुतारकीन की दरगाह मेड़ता सिटी

नागौर नगर में ही सूफियों की चिश्तीशाखा के संत काजी हमीदुद्दीन नागौरी सुल्तानुचारकीन की दरगाह है, जहाँ अजमेर के बाद सबसे बड़ा उसे भरता है। काजी हमीदुद्दीन मुहम्मद गौरी के साथ भारत आए थे। सुल्तान तारकीन को ‘संन्यासियों का सुल्तान’ कहा जाता है। इस मस्जिद का निर्माण फैजुल्लाखान के पुत्र बाराम खान की देखरेख में बादशाह मोहम्मद अकबर शाह द्वितीय के समय हुआ । (नागौर का इतिहास)

नागौर का इतिहास: पर्यटन एवं दर्शनीय स्थल

मेड़ता सिटी

प्राचीन नाम-मेडन्तक, मेडतापुर व मेदिनीपुर। राय दृदा द्वारा 15वीं सदी में निर्मित। यहाँ मालकोट का दुर्ग है। मीरा बाई कर जीवन यहाँ बीता था। यहाँ मीरा बाई का मंदिर एवं मीराबाई का महल आदि स्थित है। यहाँ दागोलाई तालाब पर महाराज सिंधिया के फ्रेंस कप्तान डो. बौरबोन की कब्र भी दर्शनीय है। (नागौर का इतिहास:)

खींवसर किला

यह अब एक हैरिटेज होटल है। इस किले में मुगल सम्राट औरंगजेब ठहरे थे।

नागौर दुर्ग

यह दुर्ग राजपूत मुगल शैली का सुंदर उदाहरण है।

जैन विश्वभारती लाड खुर्दी (कुराड़ा)

अमूर्तिपूजक जैन परम्परा (जैन श्वेताम्बर तेरापंथी) के युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी की प्रेरणा से सन् 1971 में इस आध्यात्म तीर्थ की स्थापना की गई। यह अब एक डीम्ड युनिवर्सिटी का रूप ले चुका है।

 बुलन्द दरवाजा

नागौर नगर की पवित्र दरगाह का यह बुलन्द दरवाजा न केवल स्थापत्य की बुलन्दियों का अहसास कराता है अपितु अपने विराट स्वरूप के कारण दर्शकों को भी अनायास ही आकर्षित करता है। (नागौर का इतिहास)

पीपासर

यह जांभोजी की जन्म स्थली व साधना स्थली है। यहाँ जांभोजी का पैनोरमा है।

 राव अमरसिंह की छतरी

 नागौर में झड़ा तालाब में 16 कलात्मक खम्भों की वीरवर राव अमरसिंह राठौड़ की छतरी स्थित है। राव अमर सिंह ‘मतीरे को राह’ के कारण चर्चित रहा।

लाखोलाव तालाब

मूण्डवा में स्थित तालाब। इसका निर्माण लक्खी बनजारा नामक एक व्यापारी ने करवाया। लाखोलाव तालाब के ऊपर ही बने बगीचे में नागा बाबा का मंदिर है जो किसी समय नागा साधुओं की आस्था स्थली थी। इस तालाब पर प्रतिवर्ष नाग पंचमी को विशाल मेले का आयोजन होता है।

मालकोट

मालकोट मेड़ता शहर के दक्षिणी छोर पर स्थित है। मालकोट दुर्ग जोधपुर नरेश मालदेव ने बनवाया था। राव मालदेव ने इसी दुर्ग में अकबर के दूतों-अबुल फजल व फैजी से वार्ता की थी।

 खवासपुरा

 खवासपुरा गाँव शेरशाह सूरी के सेनापति खवासखों के नाम से प्रसिद्ध है जो राव मालदेव की रूठी राणी का पीछा करते हुए यहाँ ठहरा था। बाद में उसकी वहीं मृत्यु हो गई। उसकी कब्र व महल के भग्नावशेष आज भी यहाँ है | (नागौर का इतिहास)

 जैन विश्वभारती लाडनूँ (नागौर)

 जैन श्वेताम्बर तेरापंथी के युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी की प्रेरणा से सन् 1971 में इस आध्यात्म तीर्थ की स्थापना की गई।अभी य डीम्ड यूनिवर्सिटी का रुफ ले चुका है |

खुदी

 यह परबतसर तहसील के इस स्थल से सन् 1934 में उत्खनन में ताम्रयुगीन सामग्री प्राप्त हुई है।

अन्य स्थल

 मीरा बाई का पैनोरमा, शाह जामा मस्जिद, फलौदी माता का मंदिर, ताऊसर गाँव में सिंधिया जनरल अप्पाजी को कलात्मक छतरी, बड़ली में नाथों की छतरी, चुंटीसरा में सांईजी का टांका आदि दर्शनीय हैं।

नागौर का इतिहास: महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • पंचायती राज व्यवस्था का प्रारम्भ 2 अक्टूबर, 1959 को नागौर में हुआ।
  • रोटू : नागौर जिले का आखेट निषिद्य क्षेत्र जहाँ हजारों की संख्या में काले हिरण व चिंकारा विचरण करते है।
  •  कुचामन में मारवाड़ राज्य की टकसाल थी जिसमें ढले हुए सिक्के कुचामनी सिक्के कहलाते थे।
  •  परबतसर से मात्र तीन किमी. की दूरी पर गिंगोली का मैदान है जहाँ जोधपुर व जयपुर राज्यों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध लड़ा गया था।
  • अकबर के नौ रत्न कहे जाने वाले दरबारी-बीरबल, अबुल फजल तथा फैजी नागौर के थे। महान कवि वृन्द भी नागौर के थे।
  •   जायल तहसील के गौराऊ तथा परबतसर तहसील के कुराड़ा गाँव में स्वतंत्रता से पूर्व ताम्र उपकरण मिले है।
  •  नावां शहर में एमरी स्टोन की चक्कियाँ बनती हैं भारत सरकार ने संत शिरोमणि मीरांबाई तथा समाजसेवी व किसान नेता बलदेवराम मिर्धा पर डाक टिकट जारी किया। बलदेव पशु मेला मिर्धा की स्मृति में ही भरता है।
  • अलौह धातुओं में काँसे और पीतल के नागौरी शिल्प के बर्तन प्रसिद्ध है। • मारोठ व कुचामन का गोल्डन पेंटिंग का काम पूरे हिन्दुस्तान में प्रसिद्ध है।
  •  ग्राम टांकला की दरियाँ तथा बडू की जूतियाँ प्रसिद्ध हैं।
  • लोहारपुरा (नागौर) में लोहे के हस्त औजार बनते हैं।
  •  ताउसर, नागौर की मेथी प्रसिद्ध है। (नागौर का इतिहास)
  • नागौर के मालपुए और फीणी, मूण्डवा के नमकीन सेब (भुजिया) तथा कुचामन के गोंद के पापड़ प्रसिद्ध है।
  •  नागौर में प्रवेश द्वार : नागौर में प्रवेश के लिए 6 विशाल द्वार है। ये द्वार माही, अजमेर, दिल्ली, कुम्हारी, नकास व नया दरवाजा के नाम से जाने जाते हैं। नकास दरवाजा के पास झड़ा तालाब, माही दरवाजा के पास बख्त सागर, नया दरवाजा के पास प्रताप सागर, दिल्ली दरवाजा के पास शक्कर तालाब, अजमेर दरवाजा के पास समस तालाब व कुम्हारी दरवाजा के पास लाल सागर नामक तालाब है। नगर के मध्य में गिनाणी तालाब है।
  • मारवाड़ मूण्डवा सावन भादों की गोठ के लिए प्रसिद्ध है।
  • जायल में तीज का मेला निशानेबाजी की प्रतियोगिताओं के लिए प्रसिद्ध है।
  •  डीडवाना को ‘शेखावाटी का सिंहद्वार’ कहा जाता है, क्योंकि यह मारवाड़ का आखिरी नगर है और इसके बाद से शेखावाटी की सीमा प्रारम्भ होती है। • लाडनूं की बैंगानी हवेली, इनाणिया हवेली तथा गणपतराय सेठी की हवेली दर्शनीय है।
  • मकराना यह कस्बा संगमरमर की खानों के लिए जाना जाता है।
  •  दुगणी, फदिया, पिरोजी : मध्यकालीन मारवाड़ में प्रचलित सिक्के । 
  •  सेवज वर्षा का पानी इकट्ठा करके उसमें गेहूँ, चने, सरसों आदि बोई जाती थी उसे ‘सेवज’ कहते हैं।
  •  पिलाण : ऊँट पर बैठने के लिए रखा जाने वाला आसन । (नागौर का इतिहास)
  • नागौर नस्ल के बैलों की मूल उत्पत्ति श्वालक क्षेत्र से मानी जाती है।
  • पांचला सिद्धा : खींवसर तहसील का यह गाँव जसनाथ सम्प्रदाय की पीठ के लिए जाना जाता है। यहाँ सोवा जाति के सिद्ध जलते हुए अंगारों में नृत्य के लिए प्रसिद्ध है ।
  • बुटाटी : यह गाँव लोक संत चतुर्दस जी का जन्म स्थान है। लकवा पीड़ित मरीजों के लिए यह स्थान आस्था का केन्द्र है।
  •  राजस्थान में खारे पानी की सर्वाधिक झीलें नागौर में है तथा राज्य में सर्वाधिक फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्र भी नागौर ही है।
  • राज्य में सर्वाधिक पशु मेलों का आयोजन नागौर जिले में होता है।
  •  देश में पहली रेल बस सेवा का आरम्भ नागौर में मेड़ता से मेड़ता रोड की बीच 1994 में किया गया।
  •  हाकड़ा नदी के किनारे बसा खींवसर जैन धर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है।
  • नागौर के कुचामन का कुचामनी ख्याल प्रसिद्ध है।
  •  नागौर जिले का वरुण गाँव बकरियाँ के लिए जाना जता है|

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