बूंदी का इतिहास: अरावली पर्वतमाला की गोद में बसे इस शहर का नाम मीणा शासक ‘बूँदा’ के नाम पर बूँदी पड़ा। बूँदा के पोते जैता मीणा को हराकर हाड़ा चौहान देवा ने यहाँ चौहान वंश का शासन स्थापित किया। इसे छोटी काशी एवं ‘बावड़ियों का शहर’ भी कहते हैं। बूँदी का दक्षिण-पूर्वी भाग बावन बयालीस कहलाता है।
यह हाड़ा वंश की प्रारंभिक राजधानी थी। बूँदी जिले का उत्तरी पूर्वी क्षेत्र प्राचीनकाल में सूरसेन जनपद के अन्तर्गत आता था जिसकी राजधानी मथुरा थी। सूरसेन राज्य अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली तथा आसपास के पठारी भागों में फैला हुआ था। पूर्व में संपूर्ण हाड़ौती क्षेत्र को पठार क्षेत्र कहते थे। मध्यकाल में यहाँ मीणा जनजाति 221 । का राज्य स्थापित था। (बूंदी का इतिहास)
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सन् 1241 ई. के लगभग हाड़ा चौहान देवा ने मीणा शासक जैता को हराकर यहाँ चौहान वंश का शासन स्थापित किया। बीच में कुछ समय यहाँ मेवाड़ का शासन भी रहा। बाद में कोटिया भील को पराजित कर बूँदी के हाड़ा शासकों ने कोटा को बूँदी राज्य में मिलाकर उसे अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
यहाँ के शासक सुर्जन हाड़ा ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। मराठों का राजस्थान में सर्वप्रथम प्रवेश बूँदी के उत्तराधिकार के युद्ध के कारण ही हुआ था। वर्तमान में बूँदी राज्य में चावल उत्पादन करने वाला प्रमुख जिला है। फूलसागर, जैतसागर, नवलसागर, हिण्डोली का तालाब, गुढ़ा बाँध आदि यहाँ के प्रमुख तालाब हैं। (बूंदी का इतिहास)
बूंदी का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार
मेला | स्थान | दिन |
कजली तीज | बूंदी | भादवा कृष्णा तृतीया |
इन्द्रगढ़ माता (बीजासण माता) का मेला | इन्द्रगढ़ | वैशाख शुक्ला पूर्णिमा, चैत्र व आश्विन नवरात्रा |
केशवराय पाटन का मेला | केशवराय पाटन | कार्तिक पूर्णिमा |
बूंदी का इतिहास प्रमुख मंदिर
बीजासण माता
यह प्रसिद्ध मंदिर इंद्रगढ़ में स्थित है। इसे इंद्रगढ़ माता का मंदिर भी कहते है।
केशोरायपाटन
प्राचीन ‘पाटन’ या आरमपट्टन। यहाँ स्थित केशवराय जी के प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण 1601 ई. में बूँदी के राजा शत्रुसाल ने करवाया था। यहाँ के अन्य मंदिरों में पंच शिवलिंग, हनुमानजी व अंजनी माता के मंदिर, पाण्डुओं की गुफा, वराह मंदिर आदि हैं।केशोरायपाटन में मुनि सुव्रतनाथ का प्रसिद्ध जैन मंदिर है। (बूंदी का इतिहास)
राजा | हद राव देवड़ा |
क्षेत्रफल | 5,550 km |
जनसंज्ञा | 1,110,906 |
प्राचीन नाम | बूंद-का-नल |
बूंदी का इतिहास पर्यटन व दर्शनीय स्थल
राजमहल (गढ़पैलेस)
बूंदी का रामप्रासाद।
चित्रशाला
बूंदी के शासक राम राजा उम्मेद सिंह द्वारा निर्मित। चित्रकला दीर्धा चित्रकला का स्वर्ग।
सुखमहल
जैवस्वगर इरील में स्थित महल जिसका निर्माण राजा विमुसिंह ने करवाया था।
चौरासी खंभों की छतरी
बूंदी कोटा मार्ग पर देवपुरा गाँव के निकट राव अनिरुद्ध द्वारा भाभाई देवा को स्मृति में 1683 में निर्मित स्मारक। इसकी दीवारों, स्तंभों छत पर बेजोड़ कलाकारो व चित्रकारी की गई है।
जैतसागर
बूंदी में स्थित इस झोल का निर्माण बूँदी के अंतिम मीणा शासक जैता ने 13वीं सदी में करवाया था।
रानी जी की बावड़ी
यह बूँदी नगर में स्थित है जो बावड़ियों का सिरमौर है। इस बावड़ी का निर्माण राव राजा अनिरुद्ध सिंह की विधवा रानी नातावनजी (नामावानीजी) ने 18वीं सदी के पूर्वार्द्ध में करवाया था।
अनारकली की बावड़ी क्षार बाग (केशरबाग)
रानी नाथावती की दासी अनारकली द्वारा वर्तमान छत्रपुरा क्षेत्र (बूंदी) में निर्मित।
क्षार बाग
बूंदों में स्थित यह स्थल बूँदी के दिवंगत राजाओं का समाधि स्थल (शमशान) है। राव राजा शत्रुशाल की मृत्यु हो जाने पर उसकी 64 रानियों ने यहीं उनकी चिता में आहुति दी थी। यह बाग बौरत्य के दृष्टांतों को उजागर करने के दृष्टिकोण से बेजोड़ है। (बूंदी का इतिहास)
रतनदौलत दरीखाना
बूंदो के राजप्रासाद में स्थित महल, जिसमें बूँदी नरेशों का तिलक होता था। यहीं पास में चित्रशाला व अनिरुद्ध महल बने हुए हैं।
रंगमहल
बूंदी के शासक एवं छत्रसाल द्वारा निर्मित महल जो अपने आकर्षक एवं मनमोहक भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
फूल सागर
इस सरोवर का निर्माण 17वीं सदी के पूर्वाद्ध में राव राजा भोजसिंह की रक्षिता ने करवाया था।
शिकार बुर्ज
पहाड़ियों में स्थित आश्रम जहाँ महाराव राजा उम्मेद सिंह 1770 ई. में जीते जी राज्य अपने पुत्र अजीतसिंह को सौंपकर संन्यास ग्रहण के बाद रहा करते थे। यहाँ उम्मेदसिंह द्वारा बनाई गई हनुमान जी की छतरी दर्शनीय है। यहीं पर एक ऊँची बुर्ज है जो शाही शिकार के समय प्रयुक्त होती थी।
बांसी दुगारी
यहाँ तेजाजी महाराज का थान है। यह स्थान तेजाजी की कर्मस्थली रहा है। यहाँ एक सरोवर है जिसमें दर्शनार्थी पवित्र स्थान करते हैं। यहाँ एक प्राचीन दुर्ग भी है।
गंगासागर-यमुनासागर कुण्ड
बूंदी में चौगान दरवाजे के बाहर राष राजा रामसिंह की रानी चन्द्रभान कैवर द्वारा सन् 1885 में निमिंत करवाये गये दो कुण्ड गंगासागर एवं यमुनासागर हैं जिन्हें नागर-सागर कुण्ड भी कहते हैं। बूंदी में हो लंका गेट के पास रावराजा रामसिंह (19वीं सदी) के समय निर्मित धाभाइयों का कुण्ड भी है।
मोतीमहल संग्रहालय
बूंदी दुर्ग के नीचे रावला परिसर में राक्राणा बहादुरसिंह मेमोरियल म्यूजियम हाल में यह संग्रहालय है।
बाबा मीर साहब की दरगाह
बूंदी शहर में पूर्वी दिशा में स्थित पहाड़ी पर यह 5 मीनार वाली यह दरगाह स्थित है। सामान्यत: दरगाह (मस्जिद) में 4 मीनारे ही होती है।
गरदड़ा रॉक पेंटिग्स
बूंदी जिले के गरदड़ा स्थान पर छाजा नदी के तट पर एक ‘विश्व का प्राचीनतम शैल चिन्त्र’ मिला है जिसे बर्ड राइडर रॉक पेंटिंग कहते हैं।
लाखेरी
राज्य की पहली सीमेंट फैक्ट्री यहीं स्थापित हुई थी।
रक्तदंजी माता मंदिर
यह मंदिर सबूर में है। यह माता कंजर जनजाति की आराध्य देवी है।
हडूला लोक उत्सव
बूंदी जिले के मियाँ गाँव में मनाया जाने वाला लोकोत्सव ।
अन्य स्थल
छत्र महल, नवलखा झोल, नवलसागर, हिण्डोली का तालाब, रामेश्वर नाला, भीमलत जलप्रपात, खटकड़ महादेव, हुण्डेश्वर महादेव का मंदिर (हिण्डोली), तारागढ़ दुर्ग, चौगान दरवाजा, धाभाइयों का कुंड, गेण्डोली बालाजी (चांचोड़ के बालाजी), कालाजी को बावड़ी, नारुजी की बावड़ी, गुल्ला की बावड़ी, चम्पा बाग की बावड़ी व पठान की बावड़ी आदि।
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निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने बूंदी का इतिहास के बारे मे वर्णन किया हैबूंदी बूंदी का इतिहास का साथ – साथ बूंदी का इतिहास के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भी वर्णन किया है।