उदयपुर का इतिहास | Udaipur History in Hindi

उदयपुर का इतिहास: अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य की गोद में स्थित उदयपुर नगर को महाराणा उदयसिंह ने 1559 ई. में बसाया था। हरितिमा युक्त मनोरम पहाड़ियों के बीच हिलोरें लेती सुरम्य झीलों ने उदयपुर को ‘झीलों की नगरी’ बना दिया है। इसे ‘राजस्थान का कश्मीर’ एवं ‘पूर्व का वेनिस “सिटी ऑफ फाउंटेन एंड माउंटेन’ उपनामों से भी पुकारा जाताहै। अरावली श्रेणियों का दूसरा सबसे ऊँचा हिस्सा ‘भोरट का पठार’ उदयपुर जिले के गोगुंदा से लेकर राजसमंद के कुंभलगढ़ के बीच स्थित है। मेवाड़ क्षेत्र प्राचीन काल में शिवी जनपद, प्राग्वाट एवं मेदपाट आदि नामों से जाना जाता था। (उदयपुर का इतिहास)

उदयपुर का इतिहास
उदयपुर का इतिहास

Table of Contents

उदयपुर का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार

मेला स्थानदिन
प्रताप जयन्तीहल्दी घाटी व चावंडज्येष्ठ सुदी 3
 ऋषभदेव मेलाऋषभदेवचैत्र कृष्णा अष्टमी
जरगा जी का मेला जरगा पहाड़ तह. झाड़ोलफाल्गुन शिवरात्रि (फरवरी)
झामेश्वर का मेलाझामरकोटड़ा
 विक्रमादित्य मेला (राजा विक्रमादित्य की स्मृति में)उदयपुरचैत्र अमाध् या (विक्रम संवत् के नववर्ष की पूर्व संध्या पर)
हरियाली अमावस्या का मेलाफतेहसागर, उदयपुरश्रावण मास की अमावस्या
 शिल्पग्राम उत्सवशिल्पग्राम, उदयपुरप्रति वर्ष 21-31 दिसम्बर तक
मेवाड़ महोत्सवउदयपुरअप्रैल
उदयपुर का इतिहास

उदयपुर का इतिहास प्रमुख मंदिर

जगत का अम्बिका मंदिर

उदयपुर से 42 किमी दूर जगत नामक ग्राम में अम्बिका का मंदिर मातृ देवियों को समर्पित होने के कारण शक्तिपीठ कहलाता है। इस देवालय में दिक्पाल, यक्ष, किन्नरों के अतिरिक्त कोई भी देव प्रतिमा उत्कीर्ण नहीं है। यह मंदिर 10वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बना था। यह मंदिर मेवाड़ का खजुराहो या ‘राजस्थान का दूसरा खजुराहो’ कहा जाता है। इसका निर्माण मेवाड़ शासक अल्लट के समय हुआ था। (उदयपुर का इतिहास)

आहड़ (उदयपुर) के जैन मंदिर

 यहाँ 10 वीं शताब्दी के जैन मंदिरों का समूह स्थित है। यही वह पावन स्थल है. जहाँ आचार्य जगच्चन्द्र सूरि को 12 वर्षों के कठोर तपोपरान्त तत्कालीन शासक जैत्रसिंह ने ‘तपा’ विरुद प्रदान किया। परिणामस्वरूप जगच्चंद्रसूरि की शिष्य परम्परा ‘तपागच्छ’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। आहड़ का प्राचीन नाम आघाटपुर / आटपुर / गंगोभेद तीर्थ थे। 9वीं व 10वीं शताब्दी में यह वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र था।

जगदीश मंदिर, उदयपुर

राजमहलों के पास जगदीश चौक में स्थित इस मंदिर की स्थापना महाराणा जगतसिंह (प्रथम) द्वारा विक्रम संवत 1708 (सन् 1651) की वैसाखी पूर्णिमा को की गई। यह मंदिर पचास कलात्मक स्तंभों पर अवस्थित है। इस मंदिर के निर्माण का श्रेय भंगोरा जाति के कुशल शिल्पी भाणा (या भानु) के दो पुत्रों मुकुन्द और भूधर को प्राप्त है। इस मंदिर में प्रभु जगन्नाथ राय की काले कसौटी पत्थर की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर के निर्माण में स्वप्न संस्कृति का बड़ा महत्त्वपूर्ण योग रहा है। इसलिए इसे सपने से बना मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर पंचायतन शैली का है। (उदयपुर का इतिहास)

 एकलिंग जी का मंदिर, कैलाशपुरी

यह मेवाड़ के अधिपति एकलिंग जी का मंदिर है। जनश्रुति है कि इसका निर्माण बापा रावल ने 734 ई. में कराया था। यहाँ एकलिंग जी की चतुर्मुखी काले पत्थर की मोहक प्रतिमा है। मेवाड़ महाराणा इनके दीवान कहलाते हैं। शिवरात्रि को यहाँ विशाल मेला लगता है। चैत्रको अमावस्या को प्रतिवर्ष ध्वजा चढ़ाने की रस्म पूरी की जाती है तथा ‘हीरों का नाग’ चढ़ाया जाता है। इस मंदिर में हारीत ऋषि की मृत्ति भी स्थापित है| (उदयपुर का इतिहास)

ऋषभदेव मंदिर उदयपुर

यह मंदिर कोयल नदी पर बसे धुलेव कस्बे में स्थित है। पूरे देश में एकमात्र यही ऐसा मंदिर है जहाँ किसी सम्प्रदाय और जाति विशेष कर मंदिर कोसन आदी का पासे धुत्वेव करने में स्थित है देखे सो प्रतिहित है जिसे श्वेताम्बर-दिगम्बर जैन, शैव, वैष्णव, भील व तमाम लोग पूजते हैं। यहाँ देवता के के सेर चढ़ती है। अतः ऋषभदेव को केसरिया नाथ के नाम से भी स्मरण किया जाता है।

केसरियानाच की काले पाषाण की बड़ी भव्य-मूर्ति के कारण आदिवासी इसे ‘कालाजी’ (काला बावजी) कहकर भी पुकारते हैं। भील लोग तो ‘कालिया बाबा की आण’ लेते हैं और इसकी शपथ लेने के बाद झूठ नहीं बोलते हैं। वैष्णव धर्म वाले उन्हें विष्णु का अवतार मानका पूजते हैं। यहाँ आश्विन कृष्णा प्रथमा-द्वितीया को रथयात्रा का अपूर्व महोत्सव मनाया जाता है। चैत्र कृष्ण अष्टमी-नवमी को विशाल मेला लगता है। (उदयपुर का इतिहास)

साश बहु का मंदिर

नागदा में स्थित 10वीं सदी के दो वैष्णव मंदिर, जो सोलंकी (महागुर्जर शैली) कला के प्रतीक है। 

जावर का विष्णु मंदिर

उदयपुर जिले की जावर माइंस में रमानाथ कुंड और भगवान विष्णु का मंदिर पंचायतन शैली में मेवाड़ के शासक महाराणा कुंभा की पुत्री रमाबाई ने बनवाया था। इसके शिल्पी व सूत्रधार ईश्वर थे। (उदयपुर का इतिहास)

मेवाड़ का अमरनाथ ‘गुप्तेश्वर महादेव

उदयपुर जिला मुख्यालय से 10 किमी. दूर तीतरड़ी-एकलिंगपुरा के बीच हाड़ा पर्वत पर स्थित है |

‘ बोहरा गणेशजी

गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है जो गिर्वां के अमरनाथ या मेवाड़ के अमरनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। उदयपुर के आहाड़ संग्रहालय के पीछे तथा उदयपुर विश्वविद्यालय के पास स्थित। इस मंदिर में भगवान गणेश की नृत्य गणेश स्वरूप की मूर्ति विराजित है। इस मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह के शासनकाल में हुआ। (उदयपुर का इतिहास)

ईडाणा माता

उदयपुर जिले की सलंबूर तहसील में बंबोरा गाँव के पास ईंडाणा माता की चमत्कारी शक्तिस्थल है। यह देवी अक्सर अग्नि स्नान करती है। अर्थात् माताजी के चढ़ाये गये नारियल, लच्छी, मोली, चुनर आदि स्वतः ही जलने के बाद अग्नि स्वतः शांत हो जाती है।

गोसणजी बावजी मंदिर

सराड़ा (उदयपुर) तहसील के कातनवाड़ा गाँव में ‘गोसण जी बाबजी मंदिर’ में बड़ी संख्या में पत्थर के बैलों की मूर्तियाँ चढ़ाई जाती हैं। गुमा हुआ बैल मिलने की मनौती पूरी होने पर ग्रामीण लोग यहाँ पत्थर का बैल भेंट करते है !(उदयपुर का इतिहास)

उदयपुर शेयर का क्षेत्रफल 37 km
राजा राना उदय सिंह
इस्टापना 1559
जनसंज्ञा 4,51,100
भाषा हिन्दी । मेवड़ी
उदयपुर का इतिहास

उदयपुर का इतिहास प्रमुख दर्शनीय स्थल

सिटी पैलेस

विध्येला फोल के किनारे स्थित राजमहल। यहाँ पर कृष्णा विलास महल है, जहाँ राजकुमारी कृष्णा में जहर पीकर अपनी पहल पिछोला झोल के किनारे राजा या राजकन महल, मोती महल, मानक महल, दिलखुश महल आदि प्रसिद्ध महल *है। उदयपुर नगर में सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित ये महल इतने भख्य है कि प्रसिद्ध इतिहासकार फग्यूसन और विशाल है। के विण्डसर महलों’ की संज्ञा दी।

पिछोला झील

इस झील का निर्माण राणा लाखा के शासन काल में एक बंजारे ने करवाया था। इस झील को जल की आपूर्ति सीसारमा व बुझा द्वारा की आती है। इस झील के अंदर जगनिवास महल एवं जगमंदिर महल बने हुए हैं, जिनमें आजकल होटल लैक पैलेस संचालि है। जगमंदिर महल में महाराजा कणसिंह ने विद्रोही शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) को शरण दी थी। इसी से जुड़ा हुआ गता दूध तलाई कहलाता है। पहाँ सफेद पत्थर के हाथियों को पंक्ति पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण हैं। झील के पश्चिम में गोवनस है जिसका निर्माण जगतसिंह द्वितीय ने कराया था।।

सहेलियों की बाड़ी

फतेहसागर झील को पाल की तलहटी में बना एक रमणीक बगीचा। महाराणा संग्राम द्वितीय ने इसका निर्माण व महाराणा फतहसिंह  इसका पुननिर्माण करवाया था।

सज्जनगढ़ पैलेस एवं सज्जन निवास बाग

इस महल एवं उद्यान का निर्माण महाराणा सज्जनसिंह जी ने करवाया था। इसे वाणी विलास महल भी कहते हैं। यह महल बाँसदा पहाड़ी पर स्थित है। यह उदयपुर का मुकुटमणि है। योगेश्वर वाणीविलास महाराणा सज्जनसिंह के गुरु थे। महाराणा फतहसिंह ने इससे गुलाबवाड़ी का निर्माण करवाना। इस उद्यान के गुलाब अपने आकार की वजह से प्रसिद्ध हैं। यहाँ अभयारण्य भी है। यहाँ राजस्थान का दूसरा सबसे पुराना जन्तुआलय भी है।

मोती मगरी

फतेहसागर के निकट स्थित पहाड़ी, जिस पर महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा एवं स्मारक बड़ा ही अनोखा गार्डन भी हैं।

जयसमन्द झील

मेवाड़ महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित। यह झोल ‘डेबर झील’ के नाम से जानी जाती हैं। इस झील का निर्माण गोमती नदी पर बाँध बनवाकर करवाया गया। मोठे पानी की यह राजस्थान की सबसे बड़ी झील है। इस झील के मध्य में सात द्वीप है जिसमें सबसे बड़े द्वीप का नाम बाबा का भागड़ा व सबसे छोटे द्वीप का नाम प्यारी है। इन द्वीपों पर भील व मीणा जनजातियों के लोग निवास करते हैं। इझीस के मध्य में स्थित बाबा का भांगड़ा नामक टापू पर जयसमंद रिसोर्ट बनाया गया है। (उदयपुर का इतिहास)

वीरपुरा (जयसमंद)

यहाँ हवामहल है जिसे रूठी रानी का महल कहा जाता है। यह राजस्थान सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है।

गोगुन्दा

हल्दीघाटी के निकटस्थ स्थान, जहाँ 1572 ई. में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक किया गया था। महाराणा उदयसिंह की मृत्यु भी गोगुन्दा में हो हुई थी। प्रताप को प्रारंभिक राजधानी गोगुन्दा ही थी, जिसे बाद में यहाँ से स्थानान्तरित कर दिया गया था।

मायरा की गुफा

गोगुंदा के पास मोड़ी गाँव में स्थित गुफा जहाँ महाराणा प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनवाया था।

जगनिवास महल

(लेकपैलेस) पिछोला झील में इस महल का निर्माण महाराणा जगतसिंह द्वितीय द्वारा 1746 में करवाया गया।

जगमंदिर पैलेस

पिछोला झील में स्थित इस महल का निर्माण महाराणा जगतसिंह प्रथम द्वारा 1651 में पूर्ण करवाया गया। इस पैलेस का निर्माण महाराजा कर्णसिंह ने ही शुरू कर दिया था। शाहजादा खुर्रम ने इस मंदिर में शरण ली थी |

नागदा

गुहिल शासकों (मेवाड़) की प्रारंभिक राजधानी, जिसके इल्तुतमिश द्वारा पर कर दिये जाने पर आहा को व फिर चित्तौड़गढ़ को राजधानी बनाया गया। यहाँ 10वीं सदी का सास-बहु का मंदिर प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिर सोलंकी (महागुर्जर शैली) कला के प्रतीक है। बड़ा मंदिर सास और छोटा मंदिर बहू के नाम से विख्यात है। इसके पास ही एक विशाल जैन मंदिर भी भग्नावस्था में मौजूद है जिसे खुमाण रावल का देवरा कहते हैं।

आहड़

उदयपुर के निकट आहद नदी पाटों में 4000 वर्ष पुरानी पूर्व युगीन सिंधु सभ्यता के समकालीन व ताम्रगुगीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं। आइड नागदा के बाद सिसोदिया वंश को राजधानी भी थी। आहड़ में ही महाराणा प्रताप के बाद के उदयपुर महाराकओं पथा महाराणा अमरसिंह, महाराणा कर्णसिंह आदि की छतरियों स्थित है।

चावंड

सन् 1578 में कुंभलगढ़ पर मुगल सेना का अधिकार को जाने के बाद महाराणा प्रताप ने सन् 1585 ई. में चावंड को अपनी राजधानी बनाया था। जीवन के अंतिम दिन उन्होंने यहाँ बिताये। मेवाड़ी चित्रकला की प्रारंभिक शैली का प्रादुर्भाव चावंड से ही हुआ। यहा नगर जैन मंदिर, महाराणा के बनवाए हुए महल, चावण्डा माता का मंदिर तथा भामाशाह, शाला मन्ना, हकीम वा सूरी और भीलू राजा को भूतियों के स्मारक के रूप में भी जाना जाता है। नेवाड़ी चित्रकला में चावण्ड शैली अपना विशेष महत्व रखती है। (उदयपुर का इतिहास )

बांडोली

 चावंड के निकट स्थित इस गाँष में प्रताप का अंतिम संस्कार किया गया गया। यहाँ महाराणा प्रताप की छतरी है, जिसे महाराणा अमर सिंह प्रथम ने बनवाया है |

फतेहसागर झील

पिछोला झील के उत्तर में स्थित फतेहसागर झील का निर्माण 1687 ई. में महाराणा जयसिंह ने करवाया था। तब इसे देवाली तालाब कहते थे। इस झोल में आहड़ नदी से लगभग 6 किमी लम्बी एक नहर द्वारा जल लाया जाता है। इसके बीच में एक टापू व नेहरू गाईन स्थित है। महाराणा फतहसिंह ने देवाली तालाब के टूट जाने के बाद एक नया बाँध बनवाया जिसका शिलान्यास सन् 1889 में ड्यूक ऑफ कनॉट ने किया था। इसलिए इसे ‘कनॉट बाँध’ भी कहते हैं। 1889 ई. के बाद से इसका नाम फतहसागर झील हो गया। (उदयपुर का इतिहास )

बागोर की हवेली

यहाँ उदयपुर में इसका निर्माण मेवाड़ के प्रधानमंत्री श्री अमरचंद बड्‌या द्वारा 1751-1778 के बीच करवाया गया।

सौर वेधशाला

उदयपुर सौर वेधशाला फतहसागर झील के बीच स्थित है।

महासतियाँ (आहाड़)

आहाड़ गांष (उदयपुर) में गंगोद्भव नामक तीर्थ के निकट मेवाड़ महाराणाओं का श्मशान स्थल है। महाराणा प्रताप के बाद के राणाओं की अंत्येष्टि इसी स्थान पर हुई। महाराण अमरसिंह प्रथम की छतरी यहाँ स्थित छतरियों में सबसे पुरानी है। (उदयपुर का इतिहास )

शिल्पग्राम

उदयपुर के निकट 1989 में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा हवाला गाँव में ग्रामीण सिल्प एवं लोक कला परिसर शिल्पग्राम का सृजन किया गया। 8 फरवरी, 1989 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने इसका उद्‌घाटन किया था। प्रतिवर्ष दिसम्बर माह में पहाँ राष्ट्रीय स्तर का शिल्पग्राम उत्सव आयोजित किया जाता है।

नटनी का चबूतरा

 नटनी (गलको) की स्मृति में पिछोला झील में ‘नटनी का चबूतरा निर्मित है।

दूध तलाई

पिछोला झील से जुड़ा हुआ जलाशय। इसके चारों ओर ऊँचे पहाड़ों पर दोनदयाल उपाध्याय उद्यान तथा माथिक्पलाल वर्मा उद्यान स्थित है।

नाहरमगरा

उदयपुर से 16 मील दूर स्थित महाराणाओं का आखेट स्मल।

 गोदावरी उद्यान

मुख्नमंत्री श्री अशोक गहलोत ने खेरवाड़ा के समीप गोदावरी उद्यान का 29 जनवरी, 2003 को उद्‌घाटन किया।

नौ चौकी महल

महाराणा उदयसिंह द्वारा निर्मित्त महल जहाँ उदयपुर के महाराणाओं का राज्याभिषेक होता था।

 कपूरबाबा की छतरी

मह उदयपुर के जगमंदिर महल में स्थित है जो शाहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) ने बनवाई थी।

मानसून पैलेस

उदयपुर शहर से बाहर बाँसदरा पहाड़ी पर 19वीं सदा में महाराणा सज्जनसिंह जी द्वारा बनवाया गया भव्य महल।

दूधतलाई

उदयपुर स्थित इस जलाशय में नवसंवत्लयर व महत्त्वपूर्ण पर्वो पर दीपदान होता है। दूधतलाई विश्वविख्यात पिछोला झील से ही जुड़ी हुई है। इसके चारों ओर नक्काशीदार गुम्बदों युक्त छदरियाँ ब नी है। इसके चारों ओर ऊँचे पहाड़ों पर स्थित दीनदयाल उपाध्याय उद्यान और माणिक्पालाल वर्मा उद्यान इस स्थल की शोभा बढ़ाते है। महीं एक पहाड़ी पर पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र ‘रोप-वे’ भी स्थापित किया | (उदयपुर का इतिहास )

अन्य स्थल

जनजाति संग्रहालय, माणिक्य लाल वर्मा जनजाति शोध संस्थान, नारायण सेवा संस्थान, सुखाड़िया सर्किल आदि।

उदयपुर का इतिहास महत्वपॉर्न तथ्य

  • उदयपुर के राजमहलों की सुन्दरता के कारण प्रसिद्ध इतिहासकार फर्ग्यूसन ने इन्हें विण्डसर महलों की संज्ञा दी।
  • राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार कविराज श्यामलदास महाराणा सज्जनसिंह के दरबारी लेखक थे।
  • उदयपुर की झाड़ोल तहसील में शाखा युक्त खजूर पाए जाते हैं। यहाँ पीला पलाश भी पाया जाता है। सामान्यत: पलाश अपने लाल सुर्ख फूलों के लिए ‘जंगल की ज्वाला’ नाम से प्रसिद्ध है।
  • उदयपुर राज्य का सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला जिला है। 
  •  उदयपुर नगर पिछोला झील के किनारे बसा है | 
  • डबोक यहाँ का हवाई अड्डा है जिसे ‘महाराणा प्रताप एयरपोर्ट’ के नाम से जाना जाता है।
  • उदयसागर झील : इस झील का निर्माण महाराणा उदयसिंह ने करवाया। आयड़ नदी इसी में गिरती है व उसके बाद इसका नाम बेड़च नदी हो जाता है। 
  • महाराणा फतह सिंह को ‘झीलों को जोड़ने की अवधारणा का जनक’ माना जाता है।
  • स्वरूपसागर झील :उदयपुर की इस झील का निर्माण महाराजा स्वरूपसिंह ने करवाया था। यह झील पहले कुम्हरिया तालाब के नाम से जानी जाती थी। यह झील पिछोला और फतेहसागर झील का जोड़ने का कार्य करती है। (उदयपुर का इतिहास )

बड़ली तालाब

महाराणा राजसिंह द्वारा अपनी माँ जनादे की स्मृति में बनवाया गया यह तालाब ‘जियान सागर’ के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ देश का प्रथम मल्ल अभयारण्य विकसित किया जा रहा है।

विक्टोरिया हाल संग्रहालय

महारानी विक्टोरिया की 50वीं जुबली के अवसर पर महाराणा फतेहसिंह ने विक्टोरिया हॉल का निर्माण करवाया जो सज्जन निवास बाग में स्थित है। 1 नवम्बर 1890 को इस भवन में विक्टोरिया हॉल म्यूजियम व पुस्तकालय का उ‌द्घाटन भारत के तत्कालीन वॉयसराय लॉर्ड लेंसडाउन ने किया।

 दूध तलाई झील

यह पिछोला झील से जुड़ी हुई है। इसके पास ऊँचे पहाड़ों पर तंजौर गार्डन शैली में दीनदयाल उपाध्याय उद्यान और माणिक्यलाल वर्मा उद्यान बने हुए हैं। यहीं एक पहाड़ी पर रोपवे भी बनाया गया है।

पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र

पिछोला झील के प्रसिद्ध गणगौरी घाट पर स्थित बागोर की हवेली में संचालित पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र राजस्थानी लोक कला का एक उत्कृष्ट संग्रहालय है |

गुरु गोबिंद सिंह चट्टान बाग

फतेहसागर झील के सर्पाकार मार्ग में पहाड़ी के ऊपर बने बाग को गुरु गोबिन्द सिंह चट्टान बाग कहते हैं। इस उद्यान से संपूर्ण झील का दृश्य बहुत सुंदर दिखाई देता है।

चिल्ला शरीफ

माछला मगरा पहाड़ी पर करणीमाता मंदिर के पीछे हजरत गुलाम रसूल साहब रहमतुल्ला अलैह (मलंग सरकार) की मजार है। इन्हें ‘तोपवाले बाबा’ कहा जाता है।

 दूस का सूर्य मंदिर

इस गाँव में स्थित यह मंदिर राज्य सरकार का संरक्षित स्मारक है।

भारतीय लोक कला मंडल

1952 में स्व. देवीलाल सामर द्वारा लोक कला व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भार प लोक कला मण्डल, उदयपुर की स्थापना की गई। इस संस्थान में लोक वाद्यों, आभूषणों व पोशाकों का अच्छा संग्रह है। यहाँ एक खुला रंगमंच है जहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। (उदयपुर का इतिहास )

 आहड़ सभ्यता

 आहड़ सभ्यता को एच.डी. सांकलिया ने अपनी पुस्तक ‘एस्केवेशन एट आयड़ में बनास संस्कृति के नाम दिया है। आहड़ में मेवाड़ के महाराणाओं के स्मारक और स्मारकों के पास बने ‘गंगा कुण्ड’ का विशेष धार्मिक महत्त्व है।

हाड़ी रानी हावर का

हाड़ी रानी का स्मारक : हाड़ी रानी का स्मारक सलूम्बर में हैं।

जावर का विष्णु मंदिर :

  उदयपुर जिले की जावर माइस में रमानाथ कुण्ड और भगवान विष्णु का मंदिर पंचायतन प्रासादों की श्रृंखला में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस मंदिर का निर्माण महाराणा कुंभा की पुत्री रमाबाई द्वारा कर कया और था। इस बियर के सिल्पी सूत्रधार ईश्वर थे। (उदयपुर का इतिहास )

मेवाड़ इको अमरनाथ ‘गुप्तेश्वर’

उदयपुर में तीतरड़ी- एकलिंगपुरा के बीच हाड़ा पर्वत स्थित गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है जो ‘गिर्वा के अमरनाथ’ व ‘मेवाड़ अमरनाथ’ के नाम से जाना जाता है।

नारायण सेवा संस्थान, उदयपुर

यह संस्थान निःशक्तजनों की सेवा में रत है इस संस्थान में देश के प्रथम सुमन एनाटॉमी पार्क (देह देवालय) की भी स्थापना की गई है। (उदयपुर का इतिहास )

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निष्कर्ष:

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने उदयपुर का इतिहास के बारे मे वर्णन किया है,उदयपुर का इतिहास के साथ – साथ उदयपुर का इतिहास के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भी वर्णन किया है।

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