चित्तौड़गढ़ का इतिहास: राजस्थान के इतिहास में सर्वाधिक शौर्य का प्रतीक चित्तौड़गढ़ लम्बे समय तक मेवाड़ की राजधानी रहा है। यहाँ का इतिहास रणबाँकुरे राजपूतों के शौर्य एवं उनकी स्त्रियों के जौहर की गाथाओं से सुशोभित है। चित्तौड़गढ़ में चित्रकूट दुर्ग (वर्तमान चित्तौड़गढ़ का किला) का निर्माण मौर्य शासक चित्रांगद (चित्रांग) ने बेड़च एवं गंभीरी नदियों के संगम के पास पर्वत शिखर पर करवाया था। बप्पा रावल ने यहाँ गुहिलवंश का शासन स्थापित किया।
चित्तौड़गढ़ मध्यकाल में राजस्थान की राजनीति का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा तथा यहाँ के शासकों ने बाहरी आक्रमणों का डटकर मुकाबला किया एवं इस क्षेत्र की स्वतंत्रताको अक्षुण्ण बनाये रखा। चित्तौड़गढ़ प्रारंभ से ही वीरता एवं शौर्य की क्रीड़ास्थली तथा त्याग एवं बलिदान व स्वामिभक्ति का पावन तीर्थ रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति तक यहाँ सिसोदिया वंश का शासन रहा तथा राजस्थान के एकीकरण के बाद मेवाड़ शासक महाराणा भूपाल सिंह जी को नवगठित राजस्थान का महाराज प्रमुख बनाया गया। (चित्तौड़गढ़ का इतिहास)
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- चित्तौड़गढ़ के उत्तर में भीलवाड़ा, पूर्व में मध्यप्रदेश, दक्षिण में प्रतापगढ़, पश्चिम में उदयपुर व उत्तर पश्चिम में राजसमंद जिला है।
प्रमुख मेले व त्योहार
मेला | स्थान | दिन |
मातृकुण्डिया का मेला | राशमी, हरनाथपुरा | वैशाख पूर्णिमा |
सांवलियाजी का मेला जलझूलनी एकादशी का मेला | मण्डफिया | भाद्रपद शुक्ला 11 |
राम रावण मेला | बड़ी सादड़ी | चैत्र शुक्ला 10 |
राज्य स्तरीय मेवाड़ उद्योग उत्सव | चित्तौड़गढ़ | दिसम्बर |
जौहर मेला | दुर्ग चित्तौड़गढ़ | चैत्र कृष्ण एकादशी |
मीरा महोत्सव | चित्तौड़गढ़ | शरद पूर्णिमा |
लालजी कानजी का मेला | घोसुंडा | शरद पूर्णिमा से 3 दिन तक |
जिला | चित्तौड़गढ़ ज़िला |
जनसंख्या (2011) | 1,16,406 |
क्षेत्रफल | 10856 वर्ग किमी. |
पिनकोड | 312001 |
राजा | रना कुम्भ |
वाहन पंजीकरण | RJ-09 |
चित्तौड़गढ़ का इतिहास प्रमुख मंदिर
मातृकुण्डिया राशमी (चित्तौड़गढ़)
विचीड़गढ़ जिले के राशमी पंचायत समिति क्षेत्र में स्थित हरनाबपुरा ग्राम के पास बहने वाला मेवाड़ का हरिद्वार’ भी कहा जाता है। यहाँ पनि जित में अस्थिया प्रवाहित की जाती है। यही प्रसिद्ध लक्ष्मण झूलाका) भी है |
समिद्धेश्वर मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग
यह मंदिर 11 वीं शताब्दी में मालवा के परमार राजा भावनाया था। यही प्राप्त शिलालेख (सन् 1428 ई. का) के अनुसार लजी का मोक्ल ने 1428 ई. में इसका जीर्णोद्धार सूत्रधार जैता के निर्देशेने से करवाया। यह शिव मंदिर नागर शैली में बना हुआ है। इसे मोकलजी का माँदर भी कहते हैं। यहाँ 150 ई. का एक शिलालेख के निर्देशन से करवाया। गुजरात के चालुक्य शासक कुमारपाल सोलंकी सन् 1150 ई. के लगभग अजमेर के चौहान शासक अोराज को पराजित करने के बाद इस मंदिर में आये थे तथा इसकी एक दीवार पर शिलालेख लगवाया था।
सांवलिया जी मंदिर, मंडफिया
चितौड़गढ़ के मण्डफिया गाँव में सांवलिया जी का विश्वविख्यात मंदिर स्थित है। यहाँ काले पत्थर की श्रीकृष्ण मूर्ति है। भक्त लोग इन्हें सांवलिया सेठ कहते हैं। जलझूलनी एकादशी के मेले में सांवलिया जी की प्रतिमा को चाँदी के भव्य रथ में बैठाकर पास में स्थित सरोवर में स्नान कराने हेतु ले जाया जाता है। स्थानीय लोग सांवलिया जी को अफीम के देवता के रूप में पूजते हैं। (चित्तौड़गढ़ का इतिहास)
मीरा मंदिर
यह मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में इन्डो-आर्य शैली में निर्मित है। मीरा बाई मेवाड़ के राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोज की पत्नी थी। ये श्रीकृष्ण कीपरम भक्त थी।
श्रृंगार चॅवरी
शान्तिनाथ जैन मंदिर जिसे महाराणा कुंभा के कोषाधिपति के पुत्र वेलका ने 1448-49 ई. में बनवाया था जो चित्तौड़गढ़ किले में ही स्थित है।
सतबीस देवरी
11वीं सदी में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अंदर बना एक भव्य जैन मंदिर, जिसमें 27 देवरियाँ होने के कारण ‘सतबीस देवरी’ कहलाता है।
चितौड़गढ़ का कुंभ श्याम मंदिर
8वीं शती में चितौड़गढ़ दुर्ग में कुंभ श्याम मंदिर व कालिका माता (मूल रूप से सूर्य मंदिर) जैसे विशाल प्रतिहारकालीन मंदिरों का निर्माण हुआ। ये दोनों देवालय मेवाड़ में मंदिर निर्माण के वास्तुशिल्प इतिहास में रेखांकित किये जाने वाले कोष चिन्ह के समान हैं। ये दोनों विशाल मंदिर महामारू शैली के हैं। महाराणा कुंभा ने 15वीं शती में कुंभ श्याम मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था। (चित्तौड़गढ़ का इतिहास)
तुलजा भवानी मंदिर
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अंतिम द्वार रामपोल से दक्षिण की ओर तुलजा भवानी माता का मंदिर है, जिसका निर्माण उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज के दासी पुत्र बनवीर ने कराया था। इसी के पास पुरोहित जी की हवेली स्थित है।
असावरी माता का मंदिर
चित्तौड़गढ़ की भदेसर पंचायत समिति के पास निकुंभ में असावरी माता (आवरी माता) का मंदिर है जहाँ लकवे के मरीजों का इलाज किया जाता है।
बाड़ोली के शिव मंदिर
उत्तरगुप्तकालीन यह मंदिर परमार राजा हुन ने बनवाया था। यह बामनी नदी और चंबल नदी के संगम क्षेत्र में राणा प्रताप सागर बाँध केनिकट भैंसरोड़गढ़ (वित्तौड़गढ़) में स्थित है। इन मंदिरों को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का कार्य जुलाई, 1821 में कर्नल जेम्स टॉड ने किया। इनका निर्माण 8वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य हुआ। यह १ मंदिरों का समूह है। इसमें सबसे प्रमुख मंदिर घाटेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है। इसके अलावा यहाँ भगवान विष्णु, त्रिमूर्ति, वामन, महिषासुर मर्दिनी एवं गणेश मंदिर मुख्य हैं।
पंचायतन शैली में निर्मित्त ये मंदिर गुर्जर प्रतिहार कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। फग्र्युसन ने इन मंदिरों को तत्कालीन स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बतायाहै। स्थापत्य के लिहाज से ये मंदिर मुख्यत: निम्न चार भागों में विभाजित हैं- 1. गर्भगृह 2. अन्तराल 3. मुखमण्डप 4. शिखर। बाड़ौली का प्राचीन नाम भद्रावती (हूणों का राज्य) था। (चित्तौड़गढ़ का इतिहास)
रैदास की छतरी
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में मीरां के मंदिर के सामने संत रैदास की छतरी स्थित है।
श्री शनि महाराज का आलीधामा
कपासन चित्तौड़गढ़ में स्थित शनि महाराज का मंदिर। यहाँ एक प्राकृतिक तेल कुंड है जिसमें शनि महाराज को चढ़ाया गया तेल इकट्ठा होता रहता है जिसका उपयोग चर्म रोग के उपचार में किया जाता है।
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चित्तौड़गढ़ का इतिहास पर्यटन व दर्शनीय स्थल
चित्तौड़गढ़ किला (राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर)
यह अभेद्य दुर्ग मूलतः भीर्थ शासक चिजंग (चित्रांगदा गया। बारावल में इसे मौर्य शासक राजा मान गोरी से जीता था। गुहिलों ने भागदा के विनाश के बाद इसे अपनी राजधानी बनाया। दुर्ग में रानी पदमिनी का महल, विजय, कुंभश्याम मंदिर मीराबाई का मंदिर, तुलजा भवानी का मंदिर आदि हैं। रास्ते में जबमल एवं पत्ता (उदयसिंह के और सिपाही) की छतरियों है। व्हेल माली के आकार में बना यह दुर्ग राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है। इसी दुर्ग में स्थित गौमुख कुण्ड के पास रानी पदमिनी का जौहर स्थल है। चिचीड़गढ़ दुर्ग में नौगजा पीर की कब्र भी है। यह दुर्ग गंभीरी और बेडच नदियों के संगम के पास पहाड़ो पर स्थित है। (चित्तौड़गढ़ का इतिहास)
विजय स्तम्भ
मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय के उपलक्ष में महाराणा कुंभा द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग में मंजिले (१ खण्डों के) निर्माण 1440 ई. में प्रभ करवाया। गया। यह 1448 में बनकर पूर्ण हुआ। इस स्तम्भ पर अल्लाह खुदा हुआ है। इसे ‘भारतीय मूर्तिकला का विश्व कोष’ भी कहा जाता है। (चित्तौड़गढ़ का इतिहास)
जैन कीर्ति स्तम्भ
प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ को समर्पित यह स्मारक दिगम्बर जैन महाजन जीजाक बनाया गया था। यह चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।
फतेहप्रकाश महल
कुंभा महल के प्रमुख प्रवेश द्वार बड़ी पोल’ से बाहर निकलते हो फतह प्रकाश महल है। इसका निर्माण मेवाड़ महाराणा फतेहसिंहजी ने राजपूत स्थापत्य शैली में कराया था। इसे अब राजकीय म्यूजियम में परिवर्तित कर दिया गया है। इसके पास ही चतुर्भुजानाथ का भव्य मंदिर है। (चित्तौड़गढ़ का इतिहास)
पद्मिनी महल
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में सूर्य कुण्ड के दक्षिण में तालाब के किनारे रानी पदिमनी के महल स्थित है।
भामाशाह की हवेली
यह महाराणा प्रताप के वितं सलाहकार मंत्री भामाशाह व उनके भाई ताराचंद द्वारा बनवाई गई हवेली है। इन दोनों भाइयों ने प्रताप को राज्य का खजाना खाली हो जाने पर युद्ध हेतु अपनी निजी संपत्ति सौंप दी थी। (चित्तौड़गढ़ का इतिहास)
नौगजा पीर की कब्र
यह चित्तौगढ़ दुर्ग में स्थित है।
वीनौता की बावड़ी
जिले की बड़ी सादड़ों तहसील में स्थित इस बावड़ी का निर्माण स्थानीय जागीरदार सूरजसिंह शक्तावत ने करवाया था।
बेगूं
रियासतकाल में किसान आन्दोलन के लिए प्रसिद्ध।
नगरी (माध्यमिका)
बेडच नदी के किनारे स्थित राजस्थान का प्राचीन कस्वा, जो चित्तौड़ से 13 किमी उत्तर में हैं।
चूलिया प्रपात
चित्तौड़गढ़ के मूलिया गाँव में चम्बल नदी पर 60 फीट ऊँचा जलप्रपात है।
चित्तौड़गढ़ का इतिहास महत्त्वपूर्ण तथ्य
- चित्तौड़गढ़ के बस्सी कस्बे में बस्सी अभयारण्य में ओरई व ब्राह्मणी (बामनी) नदियों का उद्गम है |
- भैंसरोड़गढ़ ब्राह्मणी (बामनी) और चम्बल नदी के संगम पर बसा हुआ है।
- चित्तौड़गढ़ जिले की बस्सी की काष्ठ कला व खिलौना उद्योग, पहुंना का लौह उद्योग और आकोला की रंगाई – छपाई पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। यहाँ का तुर्रा कलंगी खेल तथा बाँस पर भवाई नृत्य की कला भी अनूठी व दर्शनीय है। आकोला ग्राम बेड़च नदी के तट पर स्थित है। यहाँ के वस्त्रों की छपाई ‘आकोला प्रिंट्स’ के नाम से प्रसिद्ध है।
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्राप्त धाईवी पीर दरगाह के लेख से ज्ञात होता है कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1303 ई. में इस दुर्ग पर कब्जा कर चित्तौड़ का नाम ‘खिज्राबाद’ रखा था।
- इस जिले की आकृति ‘घोड़े की नाल’ के समान है।
- इस जिले का एक भाग-भैंसरोड़गढ़ जिले की सीमा से पृथक बूंदी और कोटा से सटा हुआ है।
- चूँडा को ‘मेवाड़ का भीष्म पितामह’ कहा जाता है।
- खातड़ रानी का महल : चित्तौड़गढ़ दुर्ग में पद्मिनी के महलों के पीछे महाराणा क्षेत्रसिंह की पासवान कर्मा खाती के महल है जिसे ‘खातड़ रानी का महल’ कहते हैं। कर्मा खातण के पुत्र चचा और मेरा ने राणा मोकल की हत्या कर दी थी।
- 23 नवम्बर, 1881 में पद्मिनी महल में महाराणा सज्जनसिंह के दरबार का आयोजन किया गया था जिसमें तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉड रिपन स्वयं शामिल हुए थे और महाराणा को ‘ग्रेट कमाण्डर ऑफ दी स्टार ऑफ इंडिया’ की उपाधि प्रदान की थी।
- घोसुण्डा व निम्बाहेड़ा का तुर्रा कलंगी ख्याल प्रसिद्ध है।
- अकोला : यह रंगाई-छपाई का प्रमुख केन्द्र है। यहाँ की छपाई को दाबू प्रिंट के नाम से जाना जाता है। बस्सी : यह स्थान लकड़ी के खिलौने व कठपुतली बनाने के लिए जाना जाता है।
- कपासन : यह नगर नारियल के खोल की चूड़ियाँ बनाने के लिए विख्यात है। (चित्तौड़गढ़ का इतिहास)
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निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने चित्तौड़गढ़ का इतिहास के बारे मे वर्णन किया है,चित्तौड़गढ का इतिहास के साथ – साथ चित्तौड़गढ के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भी वर्णन किया है।
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