चुरू का इतिहास: ऐसी मान्यता है कि चूरू को चूहरु नाम के एक जाट ने 1620 ई. के आसपास बसाया था। दूर-दूर रेत के टीलों से आच्छादित एवं काले हिरणों के अभयारण्य के लिए प्रसिद्ध चुरू जिला अपनी हवेलियों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ की कोठारी हवेली, ढोलामारु के चित्र, मंजिली सुराणा हवेली (जिसमें 1100 दरवाजे एवं खिड़कियाँ हैं), खेमका व पारखों की हवेलियाँ, दानचंद चौपड़ा की हवेली, कन्हैयालाल बागला की हवेली, आठ खम्भों की छतरी, टकड़ैतों की छतरियाँ, गंगाजी का मठ आदि प्रसिद्ध हैं।
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कहा जाता है कि चुरू का किला मालदे नामक व्यक्ति के उत्तराधिकारी खुशहालसिंह ने 1739 ई. में बनाया था। चुरू जिला राज्य में सबसे कम वन क्षेत्र वाला जिला है। इस जिले की जलवायु शुष्क है तथा इसमें कोई नदी प्रवाहित नहीं होती है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इस क्षेत्र के गोगा लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। दूधवाखारा किसान आंदोलन तो इतिहास में अपना नाम लिखवा गया है। राज्य में सर्वाधिक एवं न्यूनतम तापमान के मामले में यह जिला अग्रणी रहता है।
चुरू के पश्चिम में बीकानेर, उत्तर में हनुमानगढ़, पूर्व में में हरियाणा व झुंझुनूँ,दक्षिण पूर्व में सीकर तथा दक्षिण में नागौर है।
चुरू का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार
मेला | स्थान | दिन |
भभूता सिद्ध का मेला | चंगोई (तारानगर) | भादवा सुदी सप्तमी |
सालासर बालाजी का मेला | सालासर (सुजानगढ़) | चैत्र पूर्णिमा व आश्विन पूर्णिमा |
गोगा मेला | ददरेवा | भाद्रपद कृष्णा नवमी (गोगानवमी) |
साहवा का गुरुद्वारा मेला | साहवा (तारानगर) | कार्तिक पूर्णिमा |
चुरू का इतिहास प्रमुख मंदिर
ददरेवा
भाद्रपद मास में कृष्णा नवमी (गोगानवमी) को मेला भरता है। यह गोगाजी का जन्म स्थान है। गोगानवमी को गोगाजी के राखी चढ़ाई जाती है।
सालासर बालाजी सालासर
इस मंदिर की स्थापना 1754 ई. में महात्मा श्री मोहनदास जी ने की थी। सालासर के पूर्व में एक किमी दूर श्री हनुमान जी की जनी अंजना देवी का मंदिर भी है। यहाँ हनुमान जी का दाढ़ी-मूँछ युक्त व माथे पर तिलक युक्त विग्रह है जो इस प्रकार का देश का पहला मंदिर है। आश्विन व चैत्र की पूर्णिमा को यहाँ विशेष मेले लगते हैं। मंदिर के बीच में एक जाल का पेड़ है जिस पर भक्त अपनी कामना पूति के लिए नारियल और धागे बाँधते हैं। यह स्थल ‘सिद्ध हनुमान पीठ’ माना जाता है।
तिरुपति बालाजी, सुजानगढ़
बैंकटेश्वर फाउन्डेशन ट्रस्ट ने 1994 में सुजानगढ़ में भगवान बैंकटेश्वर तिरुपति बालाजी के मंदिर का निर्माण करवाया । 75 फीट ऊँचे इस मंदिर का स्थापत्य एवं शिल्प देखने योग्य है। डॉ. एम. नागराज व डॉ. बैंकटाचार्य की देखरेख में इस मंदिर का निर्माण हुआ। यह आंध्रप्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर की हूबहू प्रतिकृति है।
सागर सिंधी मंदिर य
यह अपनी बेजोड़ काँच की जड़ाई और स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है।
मनसा माता मंदिर
चुरू जिले की राजगढ़ तहसील के बड़ी लंबोर (लम्बोर धाम) गाँव में मनसा माता (देवी पार्वती/दुर्गा) का भव्य मंदिर है।
क्षेत्रफल | 16830 वर्ग किमी. |
जनसंज्ञा | 1,19,856 |
राजा | राव मलदेव |
स्थापना | 1620 ई . |
पूर्व नाम | कालेरा बास |
चुरू का इतिहास पर्यटन व दर्शनीय स्थल
ताल छापर वन्य जीव अभयारण्य
काले हिरणों की प्राकृतिक शरणस्थली यह वन्य जीव अभयारण्य सुजानगढ़ कस्बे के पास ताल छापरपर्यटन व दर्शनीय स्थल प्राकृतिक शरणस्थली यह वन्य जीव अभयारण्य सुजानगढ़ कस्बे के पास ताल छापर कस्बे में है। कहा जाता है कि यह मही भारत कार भी गुरु दाणा कार्य का स्थान था। यहाँ सदी में ठण्डे स्थानों से कुरजां (डेमोसिल क्रेन), बार हंडेड गुज आदि पारवासी पक्षी आते है |
दूधवा खारा
किसान आंदोलन के लिए प्रसिद्ध।
सेठाणी का जोहड़ा
रतनगढ़ के निकट यह स्थान प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षक स्थल है। इसका निर्माण भगवानदास बागला की विधवा ने 1898 ई. में छप्पनिया अकाल के दौरान अकाल राहत कार्यों के तहत् कराया था।
मालजी का कमरा
सन् 1925 में मालजी कोठारी द्वारा चुरू शहर में बनवाई गई प्रसिद्ध हवेली, जो इटालियन व शेखावाटी स्थापत्य शैली में बनवाई गई है।
नाहटा संग्रहालय
सरदार शहर में स्थित यह संग्रहालय अपने आकर्षक व मनभावन भित्ति चित्रों व स्वर्ण जड़ित, चित्रकारी के लिए जाना जाता है।
सुराणा हेवली
चुरू शहर में सुराणा जी की प्रसिद्ध डबल हवेली स्थित है, जिसका निर्माण सन् 1870 ई. में करवाया गया था। इस हवेली में ‘हवामहल’ भी बनवाया गया है जिसमें कुल 1111 खिड़कियाँ एवं दरवाजे हैं।
कन्हैयालाल बागला की हवेली
चुरू में सन् 1880 ई. में निर्मित्त कराई गई यह हवेली भव्य भित्ति चित्रण के लिए अपना सानी नहीं रखती। इसमें राजस्थानी प्रेमाख्यान ढोला मारू का नयनाभिराम चित्रण है।
आठ खंभ छतरी
यह चुरु में स्थित 8 स्तंभों पर टिकी छतरी है, जो सन् 1776 ई. के लगभग निर्मित्त की गई थी।
रतनगढ़ दुर्ग
बीकानेर के शासक सूरतसिंह द्वारा 18वीं सदी में अपने पुत्र रतनसिंह के नाम पर रतनगढ़ कस्बे में बनाया गया दुर्ग।
अन्य स्थान
धर्मस्तूप (चुरू), साहवा का गुरुद्वारा (यहाँ गुरु नानक देव एवं सन् 1706 में गुरु गोविंदसिंह पधारे थे। इसकी स्मृति में यह गुरुद्वारा बनाया गया है।), चुरू का किला, बीनादेसर का किला, उगोजी महाराज की खड़ाऊ, बीघाजी का स्मारक, तिबोर के भित्ति चित्र, यतीजी का उपासरा, सुजानगढ़ स्थित दानचंद चौपड़ा की हवेली आदी l
चुरू का इतिहास महत्त्वपूर्ण तथ्यः
- मालचंद जी बादाम वाले चूरू के प्रसिद्ध काष्ठ शिल्पी है।
- चुरू जिले के सुजानगढ़ को संगीतकारों का गढ़ कहा जाता है।
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निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने चुरू का इतिहास की विस्तार से व्याख्या की है, साथ ही चुरू के प्रमुख पर्यटन स्थल का भी वर्णन किया है। ।
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