जोधपुर का इतिहास | Jodhpur History in Hindi

जोधपुर का इतिहास: सूर्यनगरी , थार मरुस्थल का प्रवेश द्वार, नीला शहर व मारवाड़ की राजधानी के नाम से प्रसिद्ध राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर ‘जोधपुर’ की स्थापना राव रणमल के पुत्र राठौड़ शासक राव जोधा द्वारा सन् 1459 में की गई। राव जोधा ने चिड़िया ट्रॅक पहाड़ी पर 1459 में ही मेहरानगढ़ (जोधपुर दुर्ग) बनाया तथा इसी के पास वर्तमान जोधपुर शहर बसाया एवं इसे अपनी राजधानी बनाया। 1874 में यहाँ नगर परिषद बनी। (जोधपुर का इतिहास)

जोधपुर का इतिहास
जोधपुर का इतिहास

Table of Contents

जोधपुर का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार

मेलास्थानदिन
वीरपुरी का मेलामंडोर श्रावण का अंतिम सोमवार
नागपंचमी का मेलामंडोरभादवा सुदी पंचम
बैजनाथ मेलामंडलनाथश्रावण के सोमवार
फलौदी मेलाफलौदीमाघ सुदी नवमी
खेजड़ली वृक्ष मेलाखेजड़लीभाद्रपद शुक्ला दशमी
कापरड़ा पशु मेलाकापरड़ापोष सुदी 8 से 13
बाबा रामदेवजी का मेलामसूरिया (जोधपुर)भादवा सुदी दूज
धींगागवर बेंतमार मेलाजोधपुरवैशाख कृष्णा 3
(विवाहित महिलाएँ धींगागवर का पूजन कर ब्रह्म मुहूर्त में उसे जल में विसर्जित करती हैं।)(जोधपुर का इतिहास)

जोधपुर का इतिहास प्रमुख मंदिर

अधरशिला रामसापीर मंदिर

 यह मंदिर बाबा रामदेव का मंदिर है जो जालोरिया का बास, जोधपुर में एक सीधी चट्टान पर स्थित है। यहाँ बाबा रामदेवजी के पगल्ये स्थापित हैं।

सम्बोधिधाम

जोधपुर में कायलाना झील के पास इसका निर्माण जैन धर्मावलम्बियों द्वारा करवाया गया है।

सच्चियां माता का मंदिर ओसियाँ

11वीं सदी में निर्मित ओसिया, (जोधपुर) में स्थित यह मंदिर हिन्दुओं और ओसवालों में समान रूप से पूजा जाता है। संचिया माता को ओसिवालों की कुल देवी माना जाता है। सच्चियामाता का मंदिर महिष मर्दिनी की सजीव प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। महिषमर्दिनी की इस प्रतिमा में देवी की संहारक शक्ति की प्रभावशाली अभिव्यक्ति हुई है। (जोधपुर का इतिहास)

महामंदिर, जोधपुर

नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल। इस मंदिर का निर्माण जोधपुर नरेश महाराजा मानसिंह ने करवाया था। इस मंदिर की प्रतिष्ठा 4 फरवरी, 1805 ई. को हुई। यह 84 खंभों पर निर्मित भव्य मंदिर है।

राज रणछोड़जी मंदिर

यह मंदिर सरदारसिंह जी की माजी जाडेजी जी राजकँवर द्वारा बनवाया गया। 12 जून, 1905 को महाराजा सरदार सिंह जी द्वारा उसकी प्रतिष्ठा की गई। यह मंदिर लाल पत्थर से बना हुआ है। इसमें रणछोड़जी की काले संगमरमर की प्रतिमा है।

महामण्डलेश्वर महादेव मंदिर

923 ई. में मण्डलनाथ द्वारा निर्मित कराया गया यह मंदिर जोधपुर की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव एवं पार्वती की आकर्षक सुन्दर चित्रकारी की हुई है। (जोधपुर का इतिहास)

जोधपुर का इतिहास
जोधपुर का इतिहास

जोधपुर का इतिहास दर्शनीय स्थल

मेहरानगढ़ दुर्ग

तत्कालीन शासक राव जोधा द्वारा 1459 ई. में चिड़ियाहूँक पहाड़ी पर निर्मित भव्य दुर्ग। मेहरानगढ़ को ‘गढ़ चिंतामणि’ भी कहा जाता हैं। किले में राठोड़ों की कुल देवी ‘नागणेची मावि याक पर इतिहारों की देवी ‘ चामुण्डा माता का भव्य मंदिर’ है। इस दुर्ग के कुल 8 दरवाजे हैं। दुर्ग के दूसरे दरवाजे पर जयपुर की तथा गुर्जर कविराय आक्रमण (सन् 1807 ई. में) के समय तोप के गोलों के निशान आज भी मौजूद हैं। दुर्ग में मोती महल, फूल महल एवं शीश महल प्रमुख महल हैं। (जोधपुर का इतिहास)

श्रृंगार चौकी

दुर्ग परिसर में दौलत खाने के आंगन में राजा बख्तसिंह द्वारा श्वेत संगमरमर की बनवाई गई। श्रृंगार चौकी स्थित है। इस चौकी पर ही जोधपुर नरेशों का राज्याभिषेक होता था।

पुस्तक प्रकाश

मेहरानगढ़ दुर्ग परिसर में राजकीय पुस्तकालय ‘पुस्तक प्रकाश’ की स्थापना महाराजा मानसिंह द्वारा 2 जनवरी, 1805 को की गई। इसमें संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी व राजस्थानी भाषा की पुस्तकें, पांडुलिपियाँ व बहियाँ सुरक्षित है।

जसवंत थड़ा

शाही स्मारक महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय की याद में उसके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह द्वारा 1899 में सफेद संगमरमर से निर्मित भव्य इमारत । इसे ‘राजस्थान का ताजमहल’ कहा जाता है। यहाँ जोधपुर के शासकों की छतरियाँ भी हैं।

उम्मेद भव

महाराजा उम्मेद सिंह द्वारा अकाल राहत कार्यों के तहत् 1929-40 के मध्य बनवाया गया भव्य महल। यहाँ घड़ियों का एक संग्रहालय भी है। महाराजा उम्मेद सिंह जी ने 18 नवम्बर, 1929 को इस पैलेस की नींव रखी। यह भवन इंडो-डेको स्टाइल में निर्मित किया गया। इसके वास्तुविद् विद्याधर भट्टाचार्य व सर सैमुअल स्विंटन जैकब थे। इसके इंजीनियर हेनरी वांगन लॅचेस्टस्थे। इसका निर्माण 1943 में पूर्ण हुआ। यह भवन नगर के दक्षिण पूर्व में ‘छीतर पहाड़ी’ पर बना है। (जोधपुर का इतिहास)

अजीत भवन

जोधपुर में स्थित यह भव्य महल देश का पहला हैरीटेज होटल है।

मंडौर (मांडवपुर)

मारवाड़ नरेशों की पूर्व राजधानी। यहाँ जोधपुर के शासकों की छतरियाँ बनी हुई हैं। एकथम्बा महल, (इसमें एक चट्टान में से 16 मूर्तियां बनाई गई हैं। यह दालान सन् 1714 में महाराजा अजीतसिंह के समय बनवाया गया। यहाँ महाराजा अभयसिंह द्वारा भी पहाड़ काटकर देवताओं की मूर्तियाँ बनवाई गई। इन्हें तैंतीस करोड़ देवताओं की साल कहा जाता है।)

तना पीर की दरगाह, नागादड़ी सरोवर आदि प्रसिद्ध स्थल हैं। मंडौर में वीरपुरी व नागपंचमी के दो बड़े मेले लगते हैं। ‘पंचकुण्ड’ नामक स्थानं पर रावचूण्डा, राव रणमल, राव जोधा व राव गांगा की छतरियाँ एवं ब्राह्मण देवता की छतरी है। पंचकुण्ड के दक्षिण में मारवाड़ की रानियों की छतरियाँ स्थित है। राव मालदेव के समय से मारवाड़ के अधिपतियों की छतरियाँ पंचकुण्ड की बजाय मंडौर में बनने लगी थी।(जोधपुर का इतिहास)

औसियाँ

8 से 11वीं शती के ब्राह्मण व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध। सूर्य मंदिर, हरिहर मंदिर, संचिया माता का मंदिर आदि प्रमुख हैं। जैन ग्रंथों में औसियाँ का प्राचीन नाम उपकेश पट्टन मिलता है। ओसियाँ के जैन मंदिर, मंदिर स्थापत्य की “महामारू शैली” के हैं। यहाँ भगवान महावीर का मुख्य जैन मंदिर है। इसके अलावा अन्य कलात्मक मंदिर भी हैं l

जिनमें शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, अर्धनारीश्वर, हरिहर, नवग्रह, दिक्पाल, श्रीकृष्ण, पिप्पलाद माता तथा सचियामाता आदि उल्लेखनीय है। राजस्थान में ‘पंचायतन’ मंदिरों की शैली के सर्वप्रथम उदाहरण ओसियाँ के हरिहर मंदिर हैं। ओसियाँ प्रतिहारकालीन स्थापत्य कला का प्रमुख केन्द्र है। यहाँ के सूर्य मंदिर को ‘राजस्थान का ब्लैक पैगोड़ा’ व ‘राजस्थान का कोणार्क’ भी कहते हैं।(जोधपुर का इतिहास)

खींचन गाँव

फलौदी के पास स्थित यह गाँव आप्रवासी कुरजाँ (डेमोसिल क्रेन) पक्षियों के लिये प्रसिद्ध है। (जोधपुर का इतिहास)

बीजोलाई के महल, जोधपुर

जोधपुर नगर के निकट कायलाना की पहाड़ियों के बीच बने हुए हैं, जो राजा तख्तसिंह द्वारा बनवाए गए थे।

बालसमंद लैक पैलेस

बालसमंद झील के किनारे पर बनाये गये भव्य महल।

राखी हवेली

जोधपुर मे स्थित है l

राजस्थान उच्च न्यायालय

इसके भवन का निर्माण 1935 ई. में जोधपुर नरेश उम्मेदसिंह द्वारा इंग्लैण्ड के राजा जॉर्ज पंचम के शासन काल की रजत जयन्ती को स्मृति में करवाया गया था। (जोधपुर का इतिहास)

 एक थम्बा महल

मंडोर, जोधपुर में महाराजा अजीतसिंह के शासनकाल में वि.स. 1775 में लाल व बलुआ पत्थर निर्मित तीन मंजिला, जिसे ‘प्रहरी मीनार’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

खेजड़ली, जोधपुर

जोधपुर से 28 किमी दक्षिण में स्थित खेजड़ली गाँव (गुढ़ा विश्नोई ग्राम) अपने वृक्ष प्रेम के लिए पूरे विश्व में विख्यात है। यहाँ संवत 1787 (सन् 1730) में जोधपुर नरेश अभयसिंह के समय अमृता देवी व साथियों ने वृक्षों को काटने से रोकने के लिए अपने प्राणोत्सर्ग किए। इस गाँव में शहीद स्मारक बना हुआ है, जहाँ भादवा सुदी दशमी को प्रतिवर्ष शहीद मेला भरता है।(जोधपुर का इतिहास)

अरणा-झरणा

यह प्राकृतिक जलप्रपात जोधपुर में है।

अजीत सिंह

जोधपुर के मण्डोर उद्यान में बना महाराजा अजीत सिंह का देवल स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है, जिसका निर्माण महाराजा अभयसिंह ने प्रारम्भ करवाया गया था। (जोधपुर का इतिहास)

सरदार क्लॉक टावर

यह घंटापर राजस्थान के दूसरे बड़े नगर जोधपुर में सदर बाजार में गिरदीकोट पुरानी अनाज मण्डी प्रांगण में स्थित है। लाल और पीले रंग के पत्थर से निर्मित इस 100 फीट ऊँचे घंटाघर की नींव तत्कालीन नरेश सरदार सिंह ने 11 मार्च, 1910 को रखी थी। इसका निर्माण इंग्लैण्ड के वास्तुविद कर्नल सर स्विन्टन जेकब और प्रभारी अभियंता श्री सी. के. ओब्रियन की देखरेख में सम्पन्न हुआ।(जोधपुर का इतिहास)

महिला बाग झालरा

जोधपुर शहर में गुलाब सागर के पास यह झालरा सन् 1776 में महाराजा विजयसिंह की पासवान गुलाबराय द्वारा जनहितार्थ में बनवाया गया था। यहाँ महिलाओं का ‘लौटियों का मेला’ आयोजित होता था।

उम्मेद उद्यान, जोधपुर

मंडोर के बाद उम्मेद उद्यान नगर का दूसरा बड़ा उद्यान है। यह ‘पब्लिक पार्क’ के नाम से प्रसिद्ध है। महाराजा उम्मेद सिंह ने इसका निर्माण कराया था। इसे विलिंगडन गार्डन भी कहा जाता है। इसमें बने चिड़िया घर का उ‌द्घाटन 17 मार्च, 1936 को भारत के वायसरॉय गवर्नर जनरल लॉर्ड विलिंगडन ने किया था। (जोधपुर का इतिहास)

तुंवरजी का झालरा

इसका निर्माण महाराणा अभयसिंह की रानी बड़ी तुंवरजी ने करवाया।

तापी बावड़ी

जोधपुर में भीमजी का मोहल्ला व हटड़ियों के चौक के मध्य स्थित बावड़ी।

गुलाब सागर

सरदार मार्केट के पास गुलाब सागर का निर्माण जोधपुर महाराजा विजयसिंह ने अपनी पासवान गुलाबराय की स्मृति में करवाया।

मेहरानगढ़ फोर्ट म्यूजियम

महाराजा गजसिंह ने मेहरानगढ़ दुर्ग में यह म्यूजियम 1972 में बनाया।

 खेजड़ला दुर्ग

जोधपुर से 85 किमी दूर खेजड़ला गाँव में स्थित 17वीं सदी में राजा हर्षवर्द्धन द्वारा बनवाया गया यह दुर्ग वर्तमान में एक होटल के रूप में संचालित है। इसमें सैण्डस्टोन का बारीक कटाई-गुड़ाई का अद्भुत कार्य किया गया है यह आकर्षक झरोखों से युक्त है l (जोधपुर का इतिहास)

सरदार समंद लैक पैलेस

इसे सरदार समंद झील के किनारे 1933 में महाराजा उमेद सिंह जी ने बनवाया था l

 तलहटी के महल

सवाई राजा सूरसिंह ने मेहरानगढ़ की तलहटी में अपनी रानी सौभाग्य देवी के निवास हेतु’ तलहटी के महलों’ का निर्माण करवाया था। बाद में इस महल में जोधपुर राजपरिवार की विधवा रानियों रहने लगी थी। राजा मानसिंह तथा जसवंतसिंह प्रथम के परिवार व राजकीय कोष (खजाना) भी इसी महल में रखे गए थे।

राजा मनियार ने इस महल का उपयोग जालोर से आए नाथ संन्यासियों को रखने के लिए भी किया था। सन् 1912 में जसवंत सिंह ने यहाँ प्रथम राजकीय औषधालय’ जसवंत डिस्पेंसरी’ की स्थापना की। उसी वर्ष यहाँ अंग्रेज अफसर ह्यूसन के नाम पर एक बालिका विद्यालय खोला गया। (जोधपुर का इतिहास)

गुढ़ा विश्नोईया

जोधपुर जिले में स्थित इस गाँव में स्थित झील में हर वर्ष प्रवासी पक्षी जैसे डेमोसिल केन आदि हजारों की संख्या में आते हैं एवं पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

चोखेलाव महल

मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में स्थित चोखेलाव बाग में निर्मित्त भव्य महल, जिनमें नयनाभिराम चित्रकारी की गई है।

पंचकुण्ड की छतरियाँः

मंडोर (जोधपुर) स्थित प्राचीन कला वैभव की अमूल्य धरोहर। यहाँ जोधपुर शासक राव चूंडा, राव रणमल, राव जोधा एवं राव गांगा की छतरियाँ हैं। पंचकुण्ड के दक्षिण में ही मारवाड़ की रानियों की छतरियाँ हैं।

मंडोर की छतरियाँ

जोधपुर महाराजा राव मालदेव एवं उनके बाद के शासकों की छतरियाँ पंचकुण्ड के स्थान पर मंडोर में बनाई गई थी। (जोधपुर का इतिहास)

अन्य स्थल

कायलाना झील (सर प्रताप द्वारा निर्मित) । इसके समीप उम्मेद सागर बाँध है, जिसे उम्मेद सिंह ने 1933 में बनवाया था। सरदारसमन्द झील, बालसमंद झील (1159 ई. में प्रतिहार शासक बालक राव द्वारा निर्मित्त), सरदार म्यूजियम, फलोदी फोर्ट आदि। देवकुण्ड, नैणसी बावड़ी, श्रीनाथजी का झालरा, हाथी बावड़ी आदि

जोधपुर की अन्य प्रमुख बावड़ियाँ है। रानीसर-पदमसर (मेहरानगढ़ में फतेह पोल के पास स्थित झील), फतहसागर, तखतसागर आदि जोधपुर के अन्य जलाशय है। मामा-भानजा की छतरी भी जोधपुर में स्थित है। (जोधपुर का इतिहास)

जोधपुर का इतिहास महत्त्वपूर्ण तथ्य

  •  राव जोधा की एक रानी हाड़ी जसमादेवी ने किले के पास ‘रानी सागर’ तालाब बनवाया और दूसरी रानी सोनगरी चाँद कुंवरी ने ‘चाँद बावड़ी’ बनवाई जो चौहान बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध है।
  •  राव गांगा की सीसोदणी रानी उत्तमदे राणा सांगा की पुत्री थी। जोधपुर का पद्मसर तालाब इन्होंने ही बनवाया था।
  •  जोधपुर शहर की ‘गांगेलाव तालाब’ और ‘गांगा की बावड़ी’ राव गांगा ने ही बनवाई थी।
  •  राव गांगाजी की रानी नानकदेवी ने जोधपुर में अचलेश्वर महादेव का मदिर बनवाया।
  •  राव मालदेव की रानी झाली स्वरूपदेवी ने ‘स्वरूप सागर’ नामक तालाब बनवाया था। यह ‘बहुजी’ के तालाब के नाम से प्रसिद्ध है। 
  • महाराजा जसवंत सिंह प्रथम की कच्छवाही रानी अतिरंगदे ने ‘जानसागर’ बनवाया, जो ‘सेखावत जी का तालाब’ भी कहलाता है।
  • महाराजा जसवंत सिंह प्रथम की हाड़ी रानी जसवन्तदे ने 1663 ई. में ‘राई का बाग’, उसका कोट तथा ‘कल्याण सागर’ नाम का तालाब बनवाया था, जिसे ‘रातानाड़ा’ भी कहते हैं।
  •  महाराज जसवंतसिंह प्रथम ने औरंगाबाद के बाहर अपने नाम पर ‘जसवंतपुरा’ आबाद किया और उसके पास जसवंतपुरा नामक तालाब बनवाया। (जोधपुर का इतिहास)
  •  पुस्तक प्रकाश संग्रहालय की स्थापना : यह जोधपुर दुर्ग में प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों व बहियों का संग्रहालय है जिसकी स्थापना 2 जनवरी, 1805 को मेहरानगढ़ दुर्ग में हुई। इस संग्रहालय का फाउंडेशन डे 2 जनवरी को मनाया जाता है।
  •  जोधपुर राज्य में उस समय नाथों के दो मंदिर थे-महामंदिर व उदयमंदिर।
  • जोधपुर शहर में गंगश्यामजी का विशाल मंदिर महाराजा विजयसिंह ने बनवाया था।
  • महाराजा मानसिंह ने आयस देवनाथ की समाधि, भटियानी जी का महल, दुर्ग का जयपोल, भैरूँपोल, महामंदिर व उदयमंदिर बनवाए। (जोधपुर का इतिहास)
  •  महाराजा तखत सिंह की माता चावड़ीजी ने फतैबिहारी जी का मंदिर बनवाया।
  • 12 जून, 1905 को महाराजा सरदार सिंह जी द्वारा माजी जाडेजी जी राजकैवर के बनाए गए राजरणछोड़जी मंदिर की प्रतिष्ठा की गई। यह लाल पत्थर से बना हुआ है। इसमें रणछोड़जी की काले संगमरमर की प्रतिमा है।
  •  सिरोही महाराव जगमाल की पुत्री प‌द्मावती बाई (माणिकदे) ने जोधपुर में पदमलसर तालाब बनवाया।
  •  फलौदी (जोधपुर) राज्य का सबसे शुष्क स्थल है। 
  • जोधपुर की बंधेज की साड़ियाँ, जस्ते के बादले, मोजड़ियाँ व साफे विख्यात है।
  • यहाँ का मारवाड़ महोत्सव, धींगागवर बेतमार मेला, मंडोर व वीरपुरी मेला तथा डांडिया नृत्य प्रसिद्ध है। (जोधपुर का इतिहास)
  • रामासड़ी : यह वन पर्यावरण के लिए समर्पित लोगों का तीर्थ है। संवत् 1661 में ज्येष्ठ कृष्णा द्वितीय को रामासड़ी गाँव की दो स्त्रियों-करमां व गोरां ने खेजड़ी वृक्ष काटने के विरोध में अपने सिर काट डाले। इसी तरह तिवासणी गाँव में खींवणी देवी, नैतु देवी नैण व
  • श्री मोटाराम जी खोखर ने वृक्षों की रक्षार्थ आत्मबलिदान किया है। जोधपुर के ही खेजड़ली गाँव में 12 सितम्बर, 1730 को अमृतादेवी व उनकी दो पुत्रियों सहित 363 स्त्री- पुरुषों ने वृक्षों की रक्षार्थ प्राणोत्सर्ग किया। इस अनूठे बलिदान की स्मृति में प्रतिवर्ष भाद्र शुक्ला दसवीं को विश्व वृक्ष मेले का आयोजन किया जाता है। खेजड़ी के संबंध में कन्हैयालाल सेठिया की कविता ‘मींझर’ बहुत प्रसिद्ध है।(जोधपुर का इतिहास)
  •  मण्डोर में ईसबगोल शोध संस्थान स्थापित किया गया है। 
  •  मचिया सफारी पार्क कायलाना झील पर स्थित यह पार्क कृष्ण मृग व अन्य वन्य जीवों की शरणस्थली है। यहाँ 20 जनवरी, 2016 को माचिया बायोलॉजिकल पार्क का लोकार्पण किया गया।
  • आई माता : बिलाड़ा में आई माता का मंदिर है जहाँ केसर टपकती रहती है। यह रामदेव की शिष्या व सिरवी जाति की कुलदेवी है। आई माता के मंदिर में कोई मूर्ति नहीं होती है। इसके थान को बडेर कहा जाता है। सिरवी लोग आई माता के मंदिर को दरगाह कहते हैं।(जोधपुर का इतिहास)
  • धावाडोली अभयारण्य : यह कृष्णमृग अभयारण्य हैं।

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जोधपुर का इतिहास

निष्कर्ष:

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने जोधपुर का इतिहास की विस्तार से व्याख्या की है, साथ ही जोधपुर का इतिहास के प्रमुख पर्यटन व दर्शनीय स्थल का भी वर्णन किया है।

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