दौसा का इतिहास: प्राचीन काल में देवांश/देनवसा अथवा द्यौसा आदि नामों से प्रसिद्ध दौसा क्षेत्र में कछवाहा राज्य के संस्थापक दुलहराय ने सन् 1137 ई. के लगभग यहाँ के बड़गूजरों को पराजित कर अपना शासन स्थापित किया तथा इसे ढूँढाड़ के कछवाहा वंश की प्रथम राजधानी बनाया। 10 अप्रैल, 1991 को जयपुर से पृथक कर दौसा जिले की स्थापना की गई। 15 अगस्त, 1992 को सवाई माधोपुर जिले की महुआ तहसील को भी दौसा जिले में सम्मिलित किया गया। दौसा जिला राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11 पर स्थित है। दौसा नगर देवगिरि पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ है। (दौसा का इतिहास)
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दौसा का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार
मेला | स्थान | दिन |
बीजासनी माता मेला | खुर्रा (लालसोट) | चैत्र पूर्णिमा |
पीपलाज माता मेला | पीपलाज | वैशाख सुदी अष्टमी |
मेहंदीपुर बालाजी मेला | मेंहदीपुर बालाजी | होली व दशहरा तथा हनुमान जयंती के अवसर पर। |
श्री रामपुरा का मेला | बसवा तहसील | जन्माष्टमी |
दौसा का इतिहास प्रमुख मेला
मेंहदीपुर बालाजी
वालाजी (हनुमानजी) का यह प्रसिद्ध मंदिर सिकन्दरा से महुवा के बीच पहाड़ी के पास स्थित है। दो पहाड़ियों के बीच की घाटी में स्थित ोने के कारण इसे ‘घाटा मेंहदीपुर’ भी कहते हैं। यहाँ स्थित मूर्ति किसी कलाकार द्वारा गढ़ कर नहीं लगाई गई है बल्कि यह पर्वत का एक अंग है। यहाँ हर वर्ष विशाल मेला भरता है। (दौसा का इतिहास)
हर्षत माता का मंदिर, आभानेरी (दौसा)
यह मंदिर 8वीं शताब्दी की प्रतिहार कला का अनुपम उदाहरण है। यह मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का है।
झांझीरामपुरा
झांझीरामपुरा की स्थापना ठाकुर रामसिंह ने की। यहाँ झाझेश्वर महादेव का मंदिर है। यहाँ एक ही जलहरी में 121 महादेव हैं। यहाँ निर्मित मुख से सर्दियों में गरम तथा गर्मियों में ठंडा पानी बहता है। श्रावण मास में यहाँ विशाल मेला भरता है। यहाँ काल बाबा का मंदिर भी स्थित है।
आंतरी के नाथ चतुर्भुज नाथ
नवास (लालसोट) के रिवाली गाँव में स्थित चतुर्भुजनाथ का मंदिर श्रद्धालुओं में आंतरी के नाम से जाना जाता है।
क्षेत्रफल | 3432 वर्ग किमी |
जनसंज्ञा | 85960 |
राजा | सुरजमल |
राज्य | राजस्थान |
दौसा का इतिहास पर्यटन व दर्शनीय स्थल
गेटोलाव
दौसा नगर के पास स्थित इस स्थान पर संत दादू के शिष्य सुंदरदास जी की छतरी (स्मारक) है।
भाण्डारेज की बावड़ियाँ
दौसा का भाण्डारेज गाँव प्राचीन कला व संस्कृति की मिसाल है। यहाँ भव्य बावड़ियाँ, कुण्ड, भूतेश्वर महादेव मंदिर, हनुमान मंदिर व गोपालगढ़ स्थित हैं।
आभानेरी
बांदीकुई के निकट आभानेरी एक प्राचीन नगर है जो निकुंभ क्षत्रियों की राजधानी रहा है। पुरातात्विक उत्खनन में इस नगर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहाँ के चन्द्र नामक निकुंभ राजा ने 8वीं शदी में हर्षत माता का मंदिर व चाँद बावड़ी बनवाई। यहाँ हवीं सदी के प्रतिहारों के महामारू शैली के मंदिर है।
चाँदवावड़ी (आभानेरी बावड़ी)
बाँदीकुई रेलवे स्टेशन (दौसा) से 8 किमी दूर साबी नदी के निकट चाँदबावड़ी के नाम से विख्यात आभानेरी बावड़ी का निर्माण हवीं शती में प्रतिहार राजा निकुंभ चाँद ने करवाया।
मांगरेज की बड़ी बावड़ी, दौसा
यह पाँच मंजिलो विशाल बावड़ी है। इसका निर्माण यहाँ के शासक दीपसिंह कुम्भाणी और दौलतसिंह कुम्भाणी ने करवाया। यह बावड़ी एक गुप्त सुरंग द्वारा भांडारेज के गढ़ से जुड़ी है।
आलूदा का बुबानिया कुण्ड
दौसा के आलूदा गाँव में ऐतिहासिक बावड़ी में बने कुंड बुबानिया (बहली) के आकार में निर्मित है।
दौसा किला (गिरिदुर्ग)
देवगिरि पहाड़ी पर सूप की आकृति का किला। दौसा आरंभिक कछवाहों की राजधानी था।
प्रेतेश्वर भोमियाजी
दौसा दुर्ग के मोरी द्वार के बाहर सूर्य मंदिर के पाश्व में प्रेतेश्वर भोमियाजी का मंदिर है, जो वस्तुत: आमेर के शासक पूरणमल के विद्रोहो पुत्र सूजा (सूरजमल) का स्मारक है, जिसकी लाला नरुका ने यहाँ धोखे से हत्या कर दी थी। इन्हें आस-पास के क्षेत्र में प्रेतेश्वर भौमियाजी के नाम से पूजा जाता है।
सांगा का चबूतरा
साँगा कछवाहा (सांगानेर के संस्थापक) की मृत्यु बसवा गाँव में हुई थी, जहाँ धूप तलाई में आज भी उनका चबूतरा मौजूद है।
अन्य स्थल:
हींगवा में नाथ सम्प्रदाय का ऐतिहासिक मंदिर, नई का नाथ तीर्थ, दौसा का किला, गुदा का किला, गीजगढ़ का किला, हजरत शेखशाह जमाल बाबा की दरगाह (भांडारेज), 6 खंभों की बनजारों की छतरियाँ (लालसोट), बोजासनी माता का मंदिर तथा पत्चर उद्योग आदि।
दौसा का इतिहास महत्त्वपूर्ण तथ्य
- दौसा दादू पंथी सुंदरदास व जगजीवन जैसे संतों की जन्मस्थली रहा है।
- दौसा में सिकंदरा में पत्थरों की नक्काशी, बसवा में मिट्टी के बर्तन, बालाहेड़ी (महुआ) के पीतल के बर्तन व लवाण गाँव की कलात्मक दरियाँ प्रसिद्ध है।
- बाणंगगा, मोरेल व सनवान दौसा जिले की मुख्य नदियाँ है।
- कालखो सागर जिले का सबसे बड़ा बाँध है। इसमें बाणगंगा नदी का पानी आता है। दौसा जिले के अन्य बाँधों में माधोसागर बाँध व सेंथल सागर प्रमुख है।
- दौसा जिले का बांदीकुई जंक्शन राजस्थान का ऐतिहासिक रेल्वे स्टेशन है।उत्तर-पश्चिम रेल्वे के जयपुर मंडल के अधीन आने वाले इस स्टेशन से 20 अप्रैल, 1874 को आगरा फोर्ट से बांदीकुई के बीच राजस्थान में प्रथम रेलगाड़ी चलाई गई थी।
- दौसा जिले का आलूदा गाँव अपनी खादी के लिए जाना जाता है। यहाँ खाद के बने तिरंगे अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। यहाँ का आलूदा गाँव में हुआ तिरंगा प्रथम स्वतंत्रता दिवस पर फहराया गया था।
- लालसोट का हेला ख्याल प्रसिद्ध है। (दौसा का इतिहास)
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निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने दौसा का इतिहास के बारे मे वर्णन किया है,दौसा का इतिहास के साथ – साथ दौसा का इतिहास के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भी वर्णन किया है।
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