बारां का इतिहास: प्राचीनकाल में वारों भगवान विष्णु वराह अवतार के कारण ‘वराहनगरी के नाम से प्रसिद्ध रहा है। यह उया के सबसे पूर्व सोलको अपना का शासन था। स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान के गठन 30 मार्च 1944 बाद यह कोटा जिले में शामिल किया गया। 10 अप्रैल, 1991 को कोटा से पृथककर बाराँ जिले का गठन किया गया। बाराँ शहर के मध्य से पार्वती की सहायक बाणगंगा नदी बहती है। बाराँ जिले में सहरिया जनजाति भी सर्वाधिक है। स्वतंत्रता से पूर्व बाराँ जिले का छबड़ा क्षेत्र टोंक रियासत का एक भाग था।(बारां का इतिहास)
बारां का इतिहास प्रमुख मले व त्यौहार
मेला | स्थान | दिन |
सितबाड़ी का मैला ( धार्मिक व पशु मेला) | सीताबाड़ी केलवाडा (सहरिया जनजाति का कुंभ) | ज्येद्य अमावस्या (इस मेले में सहरियाओं का स्वयंवर होता |
डोल मेला | बारा (डोल तालाब ) | जलझूलनी एकादशी (भाद्रपद शुक्ला 11) इसमें देवविमानों सहित शोभायात्रा निकलती है। |
फूलडोल शोभा यात्रा उत्सव (श्रीजी का भव्य मेला) | किशनगंज (बारा) | होली (फाल्गुन पूर्णिमा) |
बीजासण माता का मेला | छबड़ा, गूगोर | मात्र सुदी 4,15 |
रामेश्वर महादेव मेला | शाहबाद | फाल्गुन सुदी चौथ |
धनुष लोला | अटरु | – |
ब्रह्माणी माता का मेला | सोरसन के पुराने दुग में। इसमें गधों का मेला भी लगता है। | माघ शुक्ला सप्तमी |
बारां का इतिहास प्रमुख मंदिर
भण्डदेवरा शिवमंदिर (रामगढ़, किशनगंज, बाराँ)
हाड़ौती का खजुराहों कहा जाने वाला यह मदिर 10 वीं शताब्दी में नागा जैली में निर्मित है। देव का अर्थ होता है-ददा कुन्दा देवालय। इसका निर्माण पेदबंशीय राजा मलयवर्मन द्वारा शत्रु पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में करावाया गया था तथा वि.सं. 1219 (1162 ई.) में इसी वंश के राजा विशावर्मन द्वारा एस देवालय का जीर्णोद्धार किया गया था। यह देवालय पंचायतन शैली का उत्कृष्ट नमूना है। यहाँ मिथुन मुद्रा में अनेक आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं इसलिए इसे राजस्थान का फिनी खजुराहों से कहा जाता है। (बारां का इतिहास)
गड़गच्च देवालय अटरू (बारा)
इस मंदिर का निर्माण काल 10वीं शताब्दी के आसपास का माना जाता है। अटरू का प्राचीन नाम अटलपुरी था। यहाँ के फूल देवरा मंदिर को मामा-भांजा का मंदिर कहते हैं।(बारां का इतिहास)
रामगढ़ माताजी मंदिर
बदर कोटा के दीवान झाला जालिम सिंह द्वारा पर्वत चोटी पर निमित्त इस मंदिर में जाने हेतु 750 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। भिण्डदेवरा में स्थित इस मंदिर में किशनाई माता एवं अन्नपूर्णा देवी के प्रसिद्ध मंदिर हैं। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ मेला भरता है। (बारां का इतिहास)
शाही जामा मस्जिद
शाहाबाद स्थित यह राजस्थान की बड़ी मस्जिदों में से एक है। यह औरंगजेब के समय में निर्मित है।
ब्रहमाणी माता मंदिर
यह मंदिर सोरसन के समीप है। इसे शैलाश्रय गुहा मंदिर भी कहते हैं। यहाँ ब्रह्माणी माता की पीठ पर श्रृंगार किया जाता है एवं भक्तगण भी माता की पीठ के ही दर्शन करते हैं। यहाँ झालावाड़ के संस्थापक झाला जालिमसिंह ने सीढ़िया बनवाई थी। इस मंदिर में 400 वर्षों से माता को अखण्ड ज्योति प्रज्वलित है।(बारां का इतिहास)
काकूनी मंदिर समूह
ये बाराँ जिले छीपाबड़ौद तहसील में मुकुन्दरा की पहाड़ियों में परवन नदी के किनारे स्थित है। ये शैव, वैष्णव एवं जैन मंदिर आठवीं सदी के बने हुए हैं। इन मंदिरों की अधिकांश मूर्तियाँ कोटा म्यूजियम में संरक्षित है।
बांसथुड़ी (बांसथूणी) य शिवालय
यह कोटा-शाहबाद सड़क मार्ग पर गोरा जी का सारण नाले पर निर्मित शिवालय है।
क्षेत्रफल | 6992 वर्ग किमी. |
जनसंज्ञा | 26.04 लाख |
उपविभाग (तहसील )की संज्ञा | 17 |
स्थापना | 1552 ई |
सस्थापक | परमार सासक ‘बाहाड़ राव ‘ |
बारां का इतिहास पर्यटन व दर्शनीय स्थल
सीताबाड़ी
केलवाड़ा गाँव के निकट स्थित सीतावादी धार्मिक व पर्यटक स्थल पर सीता व लक्ष्मण का प्राचीन मंदिर तथा वाल्मिकी मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम द्वारा त्याग दिये जाने पर सीतामाता यहीं (सीताबाड़ी में आकर रही थी एवं लव-कुश को जन्म दिया था। यहाँ प्रसिद्ध लक्ष्मण कुण्ड, वाल्मिको आश्रम, सीताकुण्ड, सूरज कुण्ड, लवकुश कुण्ड, रावण तलाई एवं सीताकुटी आदि स्थित हैं। यह सहरिया जनजाति का कुंभ माना जाता है क्योंकि ये यहाँ मृतकों के अस्थिकलश भी प्रवाहित करते हैं। यहाँ हर वर्ष सर्व वृत माह में आदिवासी सहरिया जनजाति का प्रसिद्ध मेला भरता है।(बारां का इतिहास)
बाबाजी बाग (मागराल)
मांगरोल टेरीकोट खादी, छाई कड़ी को रामलीला आदि के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ याचाजी बाग का निर्माण शहीद पृथ्वी सिंह हाड़ा की समृत करवाया गया है |
दुगेरी व रेलावन
इन स्थानों पर एक ताम्रयुगीन सभ्यता, जो आहड़कालीन थी, के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
शाहबाद दुर्ग
विक्रम संवत 1577-78 (सन् 1521 में) में घाँधेल चौहान राजा मुक्तामन (मुकुटमणिदेव) द्वारा मुकुन्दरा पर्वतश्रेणी की भामती पहाड़ी पर निर्मित दुर्ग। इसमें सावन भादों महल स्थित है। यह हाड़ौती क्षेत्र का सबसे मजबूत व सुरक्षित दुर्ग है। इस दुर्ग को दो तरफ से कुण्डाकोह की घाटी घेरे हुए है। दुर्ग में 19 बुर्जे हैं।
नाहरगढ़
किशनगंज तहसील में दिल्ली के लाल किले की शैली में निर्मित दुर्ग जिसमें नेकनाम बाबा की दरगाह स्थित है।
माँखरी यूप (बड़वा)
बड्वा ग्राम में थामतोरण स्थान पर महासेनापति राजा बल के चार राजकुमारों द्वारा त्रिरात्र यज्ञ करके सन् 238 में स्थापित चार यूप (स्तूप)।
बड़गाँव की बावड़ी
जयपुर-जबलपुर राजमार्ग पर बड़गाँव (अंता, बाराँ) में स्थित इस बावड़ी का निर्माण कोटा रियासत के तत्कालीन शासक शत्रुसाल की पटरानी जादौण ने करवाया था।
थानेदार नाथूसिंह की छतरी, शाहबाद
बह की थानेदार नाथूसिंह ने 20 सितम्बर, 1932 को डाकुओं से मुकाबला किया। उनकी स्मृति में कोटा महाराव उम्मेदसिंह ने इस छतरी का द निर्माण करवाया।
औस्तीजी की बावड़ी
शाहबाद कस्वे के पास दो बावड़ियाँ दर्शनीय हैं-औस्तीजी के बावड़ी तथा तपसी की बावड़ी।
मामूनी चोटी
बाराँ जिले में स्थित सबसे ऊँची चोटी (समुद्रतल से 546 मीटर) ।
शेरगढ़ दुर्ग
अटरू तहसील में परवन नदी के तट पर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित इस दुर्ग पर अफगान बादशाह शेरशाह सूरी ने अधिकार कर लिया तब से इसका यह नाम पड़ा। यह देश के प्राचीनतम दुर्गों में से एक है। दुर्ग में विद्यमान इमारतों से ज्ञात होता है कि यह दुर्ग 790 ई. में सामन्त देवदत्त द्वारा शासित था।
कपिलधारा
बाराँ शहर से 50 किमी. दूरी पर स्थित प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस रमणीय पर्यटक स्थल पर ‘गोमुख जल प्रपात’ है।
अन्य स्थल
कृष्ण विलास (विलासगढ़), शेरगढ़ (कोशवर्द्धन) दुर्ग (अटरू तहसील में परवन नदी के किनारे), कपिलधारा तीर्थ (किशनगंज तहसील), काकोली पुरास्थल।
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निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने बारां का इतिहास की विस्तार से व्याख्या की है, साथ ही बारां का इतिहास के प्रमुख पर्यटन व दर्शनीय स्थल का भी वर्णन किया है।