बीकानेर का इतिहास | Bikaner History in Hindi

बीकानेर का इतिहास: बीकानेर का नाम आते ही मुँह में रसगुल्लों की मिठास एवं भुजिया-पापड़ का नमकीन स्वाद स्वत: ही आ जाता है। प्राचीन समय में बीकानेर रियासत जांगल प्रदेश के नाम से जानी जाती थी। कुछ लोग इसे राती घाटी भी कहते हैं। जोधपुर नरेश राव जोधा के पुत्र राब बीकाजी ने सन् 1465 में इस जांगल प्रदेश के अनेक छोटे-छोटे क्षेत्रों एवं कबीलों को करणी माता के आशीर्वाद से विजित कर इस क्षेत्र में राठौड़ राजवंश के शासन की शुरुआत की एवं बीकानेर रियासत की स्थापना की थी।

बीकानेर का इतिहास
बीकानेर का इतिहास

उन्होंने 1488 ई. में बीकानेर शहर को बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया। राव बीका का प्राचीन किला बीकानेर नगर की शहरपनाह के भीतर दक्षिण पश्चिम में एक ऊँची चट्टान पर विद्यमान है। इसके पास ही बाहर की तरफ राव बीका, नरा और लूणकरण की स्मारक छतरियाँ बनी हुई है। बीकानेर रियासत स्वतंत्रता से पूर्व राज्य की चार प्रमुख रियासतों में से एक रियासत थी। स्वतंत्रता के उपरांत 30 मार्च, 1949 को यह राजस्थान में विलीन हो गई।(बीकानेर का इतिहास)

बीकानेर उस्ताकला एवं मथैरण कला के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र जसनाथी सिद्धों का अग्नि नृत्य, बीकानेर की रम्मतें, यहाँ की पाटा संस्कृति (लकड़ी के बड़े-बड़े पाटों पर बैठकर की जाने वाली राजनीतिक एवं सामाजिक चर्चाएँ) आदि के लिए अपना विशेष स्थान रखता है। राजस्थान की पहली महत्त्वपूर्णनहर गंगनहर का निर्माण भी बीकानेर रियासत के शासक महाराजा गंगासिंह ने सन् 1927 में पूर्ण करवाया एवं हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर क्षेत्र की मरुभूमि को हरा-भरा बना दिया। वर्तमान में इंदिरा गाँधी नहर ने बीकानेर जिले के एक बड़े भाग को भी हरा-भरा बना दिया है। बीकानेर एशिया की सबसे बड़ी ऊन की मंडी है। बीकानेर को ‘ऊन का घर’ कहा जाता है।(बीकानेर का इतिहास)

  • उत्तर में बीकानेर जिला गंगानगर व हनुमानगढ़ से, पूर्व में चुरु जिले से, दक्षिण पूर्व में नागौर क्षिण में जोधपुर, दक्षिण पश्चिम में जैसलमेर जिले तथा पश्चिम में पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा पर स्थित है।
  •  पाकिस्तान के साथ सबसे कम अंतरराष्ट्रीय सीमा बीकानेर जिले की है। • बीकानेर का उत्तरी पश्चिमी भाग रेगिस्तानी तथा दक्षिणी-पूर्वी भाग अर्द्ध रेगिस्तानी है।
  • बीकानेर जिले में कोई नदी नहीं है।
  •  यहाँ की भुजिया, पापड़, नमकीन व रसगुल्ले प्रसिद्ध है। बीकानेरी भुजिया को अब भौगोलिक चिह्नीकरण में शामिल किया गया है।

Table of Contents

बीकानेर का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार

मेलास्थान दिन
 कोलायत का मेला (मरुभूमि का अर्द्धकुंभ)कोलायतकार्तिक पूर्णिमा
जम्भेश्वर मेला मुकाम-तालवा (नोखा)वर्ष में दो बार- फाल्गुन व आश्विन अमावस्या
निर्जला ग्यारसलक्ष्मीनाथ मंदिर, बीकानेरज्येष्ठ सुदी 11
भैरूंजी का मेलाकोडमदेसरभादवा सुदी 13
भट्टापीर उर्सगजनेरभादवा सुदी 8-10
कपिल मुनि का मेलाश्री कोलायतकार्तिक पूर्णिमा
नागणेची जी माताबीकानेरनवरात्रा
करणी मंदिर का मेला देशनोकनवरात्रा(आश्विन एवं चैत्र माह)
चनणी चेरी मेला (सेवकों का मेला)देशनोकफाल्गुन सुदी सप्तमी
बीकानेर का इतिहास

बीकानेर का इतिहास प्रमुख मंदिर

करणी मंदिर

टेसनीष स्थित करणी माता का यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला एवं अधिक संख्या में चूहों के लिए प्रसिद्ध है। करणी माता बीकानेर के गठर राजवंश की कुलदेवी, चूहों को देवों व चारणों की कुलदेवी है। गहाँ काबा ( मंदिर सफेद चुरे) के दर्शन को सुभ माना जाता है। इस मंदिर को ओरण भूमि में नेहड़ी जी का मंदिर है, जिसमें प्रतिदिन खेजड़ो वृक्ष की पूजा भी की जाती है।

श्रीकोलायत जी

यह कचित मुनि को तपोभूमि है। यहाँ स्थिता कपिल सरोवर में स्नान का महत्त्व गंगा स्नान के बराबर है। जनश्रुति के अनुसार महर्षि कपिल ने यहाँ सांख्य दर्शन का प्रतिपादन किया था हराया अपनी माताओं देवहूति को सांख्य योग का तत्व ज्ञान देकर उन्हें मोक्ष पद प्रदान किया। कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ प्रसिद्ध मेला भरता है। कोलायत में गुरुनानक देव भी पथारे में

अत: कोलायत को मान्यता मिक्व समुदाय में भी बहुत है। उन्होने महाँ उपदेश दिया था। सिक्कों का यहाँ एक बड़ा गुरुद्वारा भी है। कोलायत के पास के गाँव में महर्षि च्यवन तथा दतात्रेय की भी तपोभूमि है। इन संतों को तपोभूमि को चाँदी और दियातरी गाँव के नाम से जाना जाता है। कोलायत के मेले में कोलायत झील में दीपदान की परम्परा है।

मुकाम-वालवा (नोखा, बीकानेर)

विश्नोई सम्प्रदाय का प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थान। यहाँ इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक जांभोजी का समाधि मंदिर है।

लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर

एस अन्य मंदिर का निर्माण राण लूणकरण ने करवाया। इस मंदिर में विष्णुजी व लक्ष्मीजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है।

 भांडाशाह का सुमतिनाथ जैन मंदिर (श्री वाला मंदिर)

बोकानेर में स्थित भांडाशाह या भांडासर (भाण्डरेश्वर) जैन मंदिर में पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ जी की प्रतिमा है। बीकानेर शहर को दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित यह भष्य मंदिर भांडाशाह नामक ओसवाल महाजन द्वारा सन् 1411 (वि.सं. 1468) में बनवाया। इस भव्य मंदिर का स्थापत्य और मनोहारी चित्रकारी देखते ही बनती है। ऐसा माना जाता है कि इसके निर्माण में पानी की जगह घी का प्रयोग किया गया था। अत: यह मंदिर श्री वाले मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर के गर्भगृह में जैन धर्म के पाँचवें तीर्थकर सुमतिनाथ को सफेद संगमरमर से बनी भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है। बीकानेर रियासत के सुप्रसिद्ध चित्रकार मुराद बख्श उस्ता ने इस मंदिर की दीवारों पर स्वर्णयुक्त मीनाकारी का करनामक कार्य किया। यह केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है। (बीकानेर का इतिहास)

हेरम्ब गणपति

बीकानेर के जूनागढ़ दुर्ग में तैतीस करोड़ देवताओं का मंदिर स्थित है जिसमें दुर्लभ हेरम्ब गणपति की प्रतिमा है। इस मूर्ति की विलक्षण बात यह है कि गणपति सूपक पर सवार न होकार सिंह पर सवार है। तेत्तीस करोड़ देवताओं के मंदिर में स्थित मूर्तियाँ महाराजा अनूपसिंह ने दक्षिण में रहते समय मुसलमानों के हाथ से बचाकर वहाँ पहुंचाई थी। (बीकानेर का इतिहास)

नेमीनाथ का मंदिर

यह भांडासाह के भाई द्वारा बनवाया गया।

धुनिनात का मंदिर

यह मंदिर इसी नाम एक योगी ने सन् 1808 में बनवाया।

नागणेसी का मंदिर

इस मंदिर में अपनी मृत्यु से पूर्व ही महिषासुरमर्दिनी की 16 भुजावाली मूर्ति राष बोका ने जोधपुर से यहाँ लाकर स्थापित की थी।

 राजरत्न बिहारी का मंदिर

महाराजा रत्न सिंह ने 1846 ई. में अपने नाम से राज रतन बिहारी का मंदिर बनवाना आरंभ किया था l जिसके पूर्ण होने पर 4 मार्च, 1851 में महाराजा ने स्वयं इसकी प्रतिष्ठा की।

रसिक शिरोमणि का मंदिर

इस मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा और द्वितीया को संत स्मृति में ‘बाप जी का मेला लगता है। पूर्णासर गाँव में खेजड़ी के मुराने पेड़ के साथ स्थित हनुमानजी का प्राचीन मंदिर है। बीकानेर में यह जैन मंदिर स्थित है।(बीकानेर का इतिहास)

श्री चिंतामणि मंदिर

यह मंदिर महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया।

अंता देवी का मंदिर

मुकाम में स्थित यह मंदिर जैसलमेर की पीले पत्थर में स्थाकृति में बना हुआ है। इस मंदिर में दो भूमिगत मंदिर भी है।

सुसानी देवी का जैन मंदिर

इस मंदिर में कैर पर आरूड देवी की प्रतिमा है। यह मोरखाणा में स्थित है। यह मंदिर केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है।(बीकानेर का इतिहास)

चतुर्भुज का मंदिर

बीकानेर में यह मंदिर जोरावरसिंह की राजमाता सीसोदिनी ने बनवाया। जोरावर सिंह ने 1744 ई. में उसकी प्रतिष्ठा की।

पूर्णेश्वर महादेव मंदिर

बीकानेर के भीनासर कस्बे में संत पूषांनंद का मंदिर श्री पूर्णेश्वर महादेव मंदिर’ के नाम से विख्यात है।

पूणांसर बालाजी

पूर्णासर गाँव में खेजड़ी के पुराने पेड़ के साथ स्थित हनुमानजी का प्राचीन मंदिर है। (बीकानेर का इतिहास)

सांडेश्वर मंदिर

बीकानेर में यह जैन मंदिर स्थित है।

शिवबाड़ी

यहाँ महाराजा हँगरसिंह द्वारा बनवाया गया लालेश्वर का शिव मंदिर है जो उन्होंने अपने पिता महाराज लालसिंह की स्मृति में बनवाया। 1880 ई. में इसकी प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर का शिवलिंग ठीक मेवाड़ के प्रसिद्ध एकलिंगजी की मूर्ति के सदृश है। यहाँ प्रतिवर्ष आवण मास में मेला भरता है।(बीकानेर का इतिहास)

 लालगढ़ पैलेस

महाराजा गंगासिंह द्वारा अपने पिता लालसिंह की स्मृति में लाल पत्थर से निर्मित करवाया गया। इसमें अनूप संस्कृत साइबेरी एवं ‘सादुल संग्रहालय’ हैं। अनूप संग्रहालय में जर्मन चित्रकार एएच मूलर द्वारा चिक्ति बीकानेर चित्रकला के अनेक चित्र हैं। लालगढ़ पैलेस का उद्‌घाटन 24 नवम्बर, 1915 को भारत के वायसराय लॉर्ड हार्दिग्ज द्वारा किया गया। 1937 के बाद राजपरिवार इसी महल में रहने लगा। इसकी डिजाइन सर स्विंटन जैकब ने बनाई। यह पैलेस दुलमेरा की खानों से लाए गए लाल पत्त्थर से बनाया गया है। यहाँ 1974 में लालगढ़ पैलेस होटल भी प्रारम्भ किया गया है। (बीकानेर का इतिहास)

सर सादुल म्यूजियम

यह म्यूजियम लालगढ़ पैलेस के सादुल निवास में स्थित है। यह म्यूजियम 1976 में अस्तित्व में आया जब इसे महाराजा डॉ. ने अपने पिता महाराजा सादुल सिंह जी को समर्पित किया। (बीकानेर का इतिहास)

जूनागढ़ फोर्ट (चिंतामणि दुर्ग)

यह किला प्राचीन दुर्ग ‘बीका की टेकरी’ के स्थान पर राजा रामसिंह द्वारा बनवाया गया। इसमें चन्द्र महल, फूल महल एवं करण महल दर्शनीय है। इस दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार को कपोल कहते हैं। जूनागढ़ दुर्ग को उसकी भव्यता के कारण जमीन का जेवर’ कहा जाता है। (बीकानेर का इतिहास)

देवीकुंड सागर

यहाँ बीकानेर राज परिवार की छतरियों (समाधियों या स्मारक) है। यहाँ राष कल्याणसिंह से लेकर महाराजा हँगरसिंह तक की छतरियाँ बनी हुई हैं। राथसिंह की छत्तरी उल्लेखनीय है, क्योंकि उसमें उसके साथ जल गरने वाले संग्राम सिंह नामक एक व्यक्ति का उल्लेख है। इस स्थान पर सती होने वाली ऑतम महिला का नाम दीपकुँवरी था, जो महाराणा सूरतसिंह के दूसरे पुत्र मोतीसिंह की स्त्री थी और अपने पति को मृत्यु पर सन् 1825 में सती हुई थी। (बीकानेर का इतिहास)

उसकी स्मृति में आज भी प्रति वर्ष भादों के महीने में यहाँ मेला लगता है। यहाँ महाराजा सूरतसिंह की छतरी का निर्माण महाराजा रत्नसिंह ने कराया। इसकी प्रतिष्ठा 26 फरवरी, 1836 को की गई। माहाराजा ईंगरसिंह ने यहाँ महाराजा छत्रसिंह के नाम पर गिरघर का मंदिर, दलेलसिंह के नाम पर बद्रीनारायण, शक्तिसिंह के नाम पर गोपाल, अपनी माता जुहार कुँवरी के नाम पर गणेश, बिमाता प्रतापकुमरों के नाम पर सूर्य और अपने ज्येष्ठ भत्ता गुलाबसिंह की स्मृति में गुलाबेश्वर का मंदिर बनवाया।(बीकानेर का इतिहास)

गंगागोल्डन जुबली म्यूजियम

बली भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगों ने 5 नवम्बर, 1937 को इसका उद्‌द्घाटन किया। इसे बीकानेर संग्रहालय भी कहते हैं। इसमें सिंधुघाटी सभ्यता से लेकर गुरुफाल एवं महाराजा गंगासिंहजी तक की कई पुरातात्विक वस्तुएँ संग्रहित है।

गंगा निवास पब्लिक पार्क

जूनागढ़ किले की कर्णपाल के सामने सूरसागर के निकट यह उद्यान स्थित है। इसका उद्‌घाटन लॉर्ड हार्डिग्स द्वारा नवम्बर, 1915 में किया गया। इसके प्रधान प्रवेश द्वार का नाम ‘क्वीन एस्प्रेस मेरी गेट’ है। पार्क के एक किनारे पर महाराजा डूंगरसिंह की संगमरमर की मूर्ति लगी है। इस प्रतिमा का उ‌द्घाटन महाराजा गंगासिंह द्वारा 5 अक्टूबर, 1916 को किया गया। इसी उद्यान के एक तरफ महाराजा गंगासिंह के शिक्षक मि. इनर्टन के नाम पर इजर्टन टैंक बना है। (बीकानेर का इतिहास)

पास में ही महाराजा गंगासिंह की अस्वारूद काँसे को मूर्ति भी लगी है। डूंगरसिंह की प्रतिमा के सामने का द्वार ‘डनलप स्मिथ द्वार’ तथा सर्किट हाउस की तरफ का द्वार ‘लॉर्ड मिंटी द्वार’ कहलाता है। यहाँ 1932 ई. में गंगा थियेटर का निर्माण भी कराया गया। इस उद्यान में जंतुआलय भी है जिसके बीच में 66 फुट ऊँचा कीर्ति स्तम्भ बीकानेर की स्थापना से लेकर 1972 तक शहीद हुए बोरों की स्मृति में बनाया गया। इस तद्यान में सर चाल्स बेले एवं लेडी मेमोरियल क्लक बेले की स्मृति में बनवाया गया पार्क भी है। (बीकानेर का इतिहास)

कर्जन बाग व विक्टोरिया मेमोरियल क्लब

महाराजा गंगासिंह ने महारानी विक्टोरिया की स्मृति में विक्टोरिया मेमोरियल क्लब बनवाया। कर्जन बाग व विक्टोरिया का उद्‌घाटन 24 नवम्बर, 1902 को लॉर्ड कर्जन ने किया।

गजनेर झील

महाराजा गंगासिंह ने यह झोल अकाल राहत कार्यों के तहत खुदवाई। यहाँ पर स्थित गजमेर के महलों में डूंगर निवास, लाल निवास, शक्ति निवास, गुलाब निवास और सरदार निवास नामक सुंदर महल हैं। गजनेर कस्बा महाराजा गजसिंह के समय आबाद हुआ था। (बीकानेर का इतिहास)

अन्य स्थल

कल्याण सागर, हरसोलाव, अनोपसागर कुआँ, सूरसागर, लाली बाई की बगीची, मुरली मनोहर वाटिका, गाँधी पार्क, नेहरू उद्यान आदि।

बीकानेर की प्रमुख हवेलियाँ

रामपुरिया परिवार की हवेलियाँ

ये हवेलियाँ रामपुरिया मोहल्लों की एक गली में क्रमबद्ध रूप से खड़ी है। इस गली को ‘हवेलियों को गली’ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। ये सभी हवेलियाँ एक ही परिवार रामपुरिया परिवार की है और अपने विशाल आंगन और स्थापत्य कला के कारण विश्वविख्यात है। प्रमुख हवेलियाँ हैं-(बीकानेर का इतिहास)

  1. सेठ भंवरलाल जी रामपुरिया की हवेली वर्तमान में यह हवेली’ होटल भँवर नियास’ के नाम से विख्यात है। 
  2.  हीरालाल रामपुरिया की हवेली।
  3. माणकचंद रामपुरिषा की हवेली।

 डागा परिवार हवेलियाँ

ये हवेलियाँ बोकानेर में डागों के चौक में है। इसमें लक्ष्मीनारायण डागा की हवेली (गोल्डन किंग की हवेली), रायबहादुर विश्वेसर दास हागा की हवेली, सुखदेव दास, रिखबदास डागा को हवेली, सूस्तनारायण डागा की हवेली, चुन्नीलाल की हवेलो, सेठ कस्तूर चंद डागा की हवेली व गिरधारीलाल कला की हवेली मुख्य है।(बीकानेर का इतिहास)

मोहता परिवार की हथेलियोंकरणीसिंह जी

 इसमें रामगोपाल मोहता को हवेली, सुंदरलाल जी बानियाँ की हवेली, जगन्नाथ जी भागीरथ जी मोहता की हवेली, लक्ष्मीचंद कौयालात मोहता की रुपेलियाँ मुख्य है।

सेठ चांदमल ढड्डा को हवेली

यह हवेली बीकानेर में ढड्डों के चीफ में स्थित है। इस चौक की दूसरी हवेली प्रतापसिंह बद्धा की हवेली है |

रिखजी बागड़ी की हवेली

यह तीन मंजिली हवेली है।

पूनमचंद जी कोठारी की हवेली

री यह कोठारी मोहल्ला में स्थित है। यह हवेली तितलीनुमा है। इस हवेली में सारा पत्थर दुलमेरा का है। इसके निर्माता भूधर जी चलवा थे।(बीकानेर का इतिहास)

श्री भैरोंदान जी कोठारी की हवेली

यह हवेली संगमरमर पर कारीगरी का एक बेहतरीन नमूना है। यह हवेली शाहजहाँ कालीन मुगल इमारतों की याद को ताजा कर देती है।

श्री चुन्नीलाल जी कोठारी की हवेली

यह हवेली सोनियों के चौक में स्थित है।

बिन्नाणी चौक की हवेलियाँ

1. प्रयागदास जीवनलाल विन्नाणी की हवेली। 2. गोपीकिशन बिन्नाणी की हवेली। 3. बलदेव बाबू बिन्नाणी की हवेली।

लखोटिया चौक की हवेलियाँ

1. सेठ मुरलीधर मोहता की हवेली। 2. हनुमानदास मोहता की हवेली। 3. शिवदास जी माणक लाल जी बिन्नाणी कों हवेली।

मोहता चौक की हवेलियाँ

1. मोहता बखतावर सिंह की मकराने के रांस वाली पिरोल की हवेली। 2. सूरजनारायण मोहता की हवेली।

आसाणियों के चौक की हवेलियाँ

आसाणियों के चौक में जयपुर के राजमंदिर वाले गोलछा परिवार की हवेलियाँ थी। यहीं पर सेठ राम गोपाल गोवर्धन दास मेहता की हवेली है।

बीकानेर का इतिहास
बीकानेर का इतिहास

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • बीकानेर में चार विश्वविद्यालय स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, राजस्थान पशु चिकित्सा व विज्ञान विश्वविद्यालय एवं बीकानेर तकनीको विश्वविद्यालय स्थित हैं।(बीकानेर का इतिहास)
  • कोड़मदेसर : यह गाँव राव बीका के प्राचीन निवास के लिए जाना जाता है। यहाँ कोडमदेसर तालाब है। यहाँ तालाब के किनारे महल के खंडहर व भैर जी की प्रतिमा स्थापित है। यह कोडमदेसर के भैरवजी के धाम के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला बारस को मेला भरता है। इस प्रतिमा को बीका मण्डोर से लेकर आए थे। राव रणमल के पुत्र राव जोधा ने इस तालाव का 1459 में निर्माण कराया था और अपनी माता कोड़मदे के निमित्त यहाँ कीर्ति स्तम्भ स्थापित करवाया था।(बीकानेर का इतिहास)
  • बीकानेर में जोड़बीड़ में राष्ट्रीय ऊँट अनुसंधान केन्द्र स्थित है। 
  • लूणकरणसर : यह ‘राजस्थान का राजकोट’ कहा जाता है।
  • सूरसागर झील, गजनेर झील व लूणकरणसर झील बीकानेर में है।
  • बीकानेर में गजनेर में पक्षी अभयारण्य भी है।
  • खजूर की खेती को बढ़ावा देने के लिए बीकानेर में खजूर अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई। 
  • पुरा अभिलेखों को संग्रहित करने के उद्देश्य से बीकानेर में ‘राजस्थान राज्रा अभिलेखागार संस्थान’ की स्थापना की गई। 
  • बीकानेर के भुजिया पापड़ व रसगुल्लों के साथ साथ पंढारी लड्डू भी प्रसिद्ध हैं।
  •  खारा, बीकानेर में सिरेमिक कॉम्प्लेक्स स्थापित किया गया है। 
  •  बीकानेर में राजस्थानी भाषा, साहित्य व संस्कृति अकादमी स्थापित की गई है।
  •  कग्णी संग्रहालय बीकानेर में स्थित है।
  •  बीकानेर जन्तुआलय : सन् 1922 में स्थापित यह जन्तुआलय राज्य का तीसरा प्राचीन जन्तु आलय है।
  •  डोडा थोरा : यहाँ लघु पाषणकालीन पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए है।
  •  रोजड़ी : यहाँ राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरैशन का सीड मल्टीप्लीकेशन फार्म स्थित है। 
  •  नाल : यहाँ सामरिक महत्त्व का भूमिगत हवाई अड्डा है।
  • कतरियासर : जसनाथ जी का समाधि स्थल। 
  • बिग्गा गाँव : यहाँ गौ रक्षक देवता वीर बिग्गा जी का मंदिर है।
  • राजस्थान में बीकानेर न्यूनतम जनजाति वाला जिला है।
  • बीकानेर की जूनागढ़ प्रशस्ति प्रसिद्ध है। 
  •  बीकानेर में अलखगिरि मतानुयायी लक्ष्छीराम का बनवाया हुआ,’अलखसागर’ नाम का प्रसिद्ध कुआँ है। यह आठ तीवण का कुआँ है।
  •  बीकानेर नगर की शहरपनाह में पाँच दरवाजे-कोट, जस्सूसर, नत्थूसर, . सीतला और गोगा है।
  •  कैसोजी ने ‘मुकाम महातम’ नाम की साखी लिखी। 
  • विश्नोई सम्प्रदाय में धूप मन्त्रों में ‘विवरस’ पाठ की बड़ी प्रसिद्ध है।(बीकानेर का इतिहास)

अन्य महत्वपूर्ण इतिहास

सिरोही का इतिहासClick here
दौसा का इतिहासClick here
बारां का इतिहासClick here
हनुमानगढ़ का इतिहासClick here
बाड़मेर का इतिहासClick here
उदयपुर का इतिहासClick here
जोधपुर का इतिहासClick here
भीलवाड़ा का इतिहासClick here
भरतपुर का इतिहासClick here
चित्तौड़गढ़ का इतिहासClick here
धौलपुर का इतिहासClick here
सीकर का इतिहासClick here
झुंझुनू का इतिहास: Click here
चुरू का इतिहासClick here
डूंगरपुर का इतिहासClick here
पालि का इतिहास Click here
जैसलमेर का इतिहास Click here
सवाई माधोपुर का इतिहासClick here
नागौर का इतिहास Click here
झालावाड़ का इतिहास Click here
जालौर का इतिहासClick here
प्रतापगढ़ का इतिहासClick here
जयपुर का इतिहासClick here
बांसवाड़ा का इतिहासClick here
अलवर का इतिहासClick here
अजमेर का इतिहासClick here
श्रीगंगानगर का इतिहासClick here
करौली का इतिहासClick here
कोटा का इतिहासClick here
बीकानेर का इतिहास

निष्कर्ष:

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने बीकानेर का इतिहास की विस्तार से व्याख्या की है, साथ ही बीकानेर का इतिहास के प्रमुख पर्यटन व दर्शनीय स्थल का भी वर्णन किया है।

Leave a Comment