भरतपुर का इतिहास | Bharatpur History in Hindi

भरतपुर का इतिहास : राजस्थान प्रवेश द्वार व पूर्वी द्वार भरतपुर शहर जाट महाराजा सूरजमल द्वारा सन् 1733 में बसाया गया। ईसा पूर्व 4-5वीं सदी में भरतपुर-धौलपुर का क्षेत्र सूरसेन जनपद का हिस्सा था। भरतपुर राजस्थान की पहली जाट रियासत थी, जिसकी स्थापना जाट सरदार चूड़ामन ने औरंगजेब की मृत्यु के पश्चातवर्ती काल में ‘थून’ में दुर्ग बनाकर की थी। इस जाट रियासत का वास्तविक संस्थापक बदन सिंह को माना जाता है। भरतपुर जिले के कतिपय स्थल ऐसे हैं जहाँ पुरापाषाण काल के उपकरण भी मिले हैं। (भरतपुर का इतिहास)

भरतपुर का इतिहास
भरतपुर का इतिहास
  •  इस जिले की सीमा उत्तर में मेवात जिला (हरियाणा), पूर्व में मथुरा (उत्तरप्रदेश), दक्षिण में धौलपुर व करौली तथा आगरा (उत्तरप्रदेश) तथा पश्चिम में दौसा व अलवर जिले से मिलती है।
  • यह राज्य का सातवाँ संभाग है तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में शामिल (2013 में) राज्य का अलवर के बाद दूसरा जिला है।
  •  रूपारेल, गम्भीर, ककुन्द व बाणगंगा यहाँ की मुख्य नदियाँ हैं।
  •  मोती झील व केवलादेव झील भरतपुर की मुख्य झीलें हैं। 
  • यहाँ बंध बरैठा व अजान बाँध प्रमुख बाँध हैं।
  • भरतपुर वनस्पति उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।

प्रमुख मेले व त्यौहार

मेलास्थानदिन
बसन्ती पशु मेलारूपवासमाघ कृष्णा 15 से सुदी 8 तक
गंगा दशहरा मेलाकामांज्येष्ठ शुक्ला 7 से 12 तक
बजरंग पशु मेलाउच्चैनआषाढ़ कृष्णा 2 से 8 तक
जवाहर प्रदर्शनी व बृज यात्रा मेलाडीगमार्गशीर्ष कृष्णा 12 से शु. 5 तक
जसवन्त पशु मेलाभरतपुरमार्ग शीर्ष शुक्ला 5 से 15 तक
 गरुड़ मेलाबंशी पहाड़ पुरकार्तिक शुक्ला 3
बृज महोत्सवभरतपुर/डीगफरवरी
भोजन बारी/भोजन की थाली परिक्रमाकामांभाद्रपद शुक्ला 5
भरतपुर का इतिहास

भरतपुर का इतिहास प्रमुख मंदिर 

गंगा मंदिर

यह मंदिर भरतपुर रियासत के शासक महाराजा बलवंत सिंह ने 1846 ई. में बनवाना प्रारंभ किया था। यह मंदिर बंसी पहाड़पुर के लाल पत्थरों से निर्मित है। इस बारहदरीनुमा गंगा मंदिर की दो मंजिला इमारत चौरासी खम्बों पर टिकी हुई है। मंदिर की इमारत का सामने का हिस्सा मुगल शैली पर तथा पीछे की तरफ का हिस्सा बौद्ध शैली में निर्मित प्रतीत होता है। इसके पश्चात् इस इमारत में 12 फरवरी, 1937 को महाराजा बलवंत सिंह के वंशज महाराज ब्रजेन्द्र सिंह ने गंगा की सुन्दर मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई।। इस मूर्ति का मुँह किले के चौबुर्जा द्वार की तरफ उत्तर दिशा में है जिससे महाराजा व महारानी गंगा जी के दर्शन अपने महलों से भी कर सकते थे। मंदिर में गंगा मैय के वाहन मगरमच्छ की विशाल मूर्ति भी विराजमान है। (भरतपुर का इतिहास)

जामा मस्जिद

कौमी एकता की दूसरी यादगार इमारत जामा मस्जिद है जिसका निर्माण कार्य महाराजा बलवंत सिंह ने प्रारम्भ किया। जामा मस्जिद का प्रवेश द्वार फतेहपुर सीकरी के बुलन्द दरवाजे के नक्शे पर बनवाया गया है। यह मस्जिद लाल पत्थर की बनी हुई है। (भरतपुर का इतिहास)

उषा मंदिर (बयाना)

भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी के नाम पर कन्नौज के महाराजा महीपाल की रानी चित्रलेखा ने सन् 956 में बयाना में उषा मंदिर का निर्माण करवाया था। बाद में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे तुड़वाकर उषा मस्जिद का रूप दे दिया।

लक्ष्मण मंदिर का

शहर के बीचों बीच स्थित लक्ष्मण मंदिर का निर्माण महाराजा बलदेव सिंह ने प्रारंभ किया था, जिसे महाराजा बलवंत सिंह जी ने पूर्ण करवाया| ढंढार वाले हनुमानजी रुदावल कस्बे में ककुन्द नदी के किनारे स्थित हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर। (भरतपुर का इतिहास)

पर्यटन वह दर्शनीय स्थल

लोहागढ़ दुर्ग

राजा सुरजमल जाट द्वारा निर्मित ऊँची प्राचीर युक्त भीमकाय दुर्ग जिसके चारों और पानी की 18.3 मीटर चौड़ी खाई है। इस आयताकार दुर्ग को 8 द्वारा मजबूती प्रदान की गई हर दुर्ग ओर पानी कसमें सुजान गंगा नहर द्वारा मुजी दरवाजा पो आता है। इस दुर्ग में प्रवेश के केवल दो दरवाजे में जवाहर बुर्ज सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस एवं 2. दिक्षण दिशा में चौबुर्जा दरवाजा ।

दुर्ग में कुल तीन दीर्घाएँ मौजूद हैं जिनमें से एक में पौराणिक र की ओर का अपश्चात दरवहाँ महाराजा बृजेन्द्र सिंह द्वारा एक लौह स्तम्भ जाट शासकों की वंशावली अंकित है। इसी दुर्ग में भरतपुर महल एवं किशोरी महल स्थित है। (भरतपुर का इतिहास)

जवाहर बुर्ज

 भरतपुर किले के उत्तर-पश्चिम पार्श्व में जवाहर बुर्ज वह ऐतिहासिक स्थल है जहाँ से जवाहर सिंह ने दिल्ली पर चढ़ाई के लिए कूच किया था। दिल्ली विजय (मुगलों पर) की याद को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए उन्होंने 1765 में किले में इसी स्थल पर एक विजय स्तम्भ बनवाया था।

केवलादेव बना पक्षी अभयारण्य

विश्व प्रसिद्ध पक्षी अभयारण्य जो ‘साइबेरियन सारस’ के लिए प्रसिद्ध है। 1982 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। यह यूनेस्को की विश्व प्राकृतिक धरोहर सूची में 1985 में शामिल किया गया। यह प्रसिद्ध ‘रामसर स्थल’ भी है।

भरतपुर संग्रहालय

यह लोहागढ़ दुर्ग में कचहरी कलां’ भवन में स्थित है जिसका उद्घाटन 11 नवम्बर, 1944 को किया गया।  ‘कचहरी कलां’ भवन महाराजा बलवंत सिंह के समय निर्मित किया गया।

धौलपुर महल

भरतपुर स्थित यह महल भरतपुर-धौलपुर के लाल पत्थर से निर्मित्त है।

बयाना

पुराणों में बयाना के निकट के पर्वतीय अंचल को शोणितगिरी तथा बयाना नगर को शोणितपुर कहा गया है। इसका प्राचीन नाम ‘श्रीपंथ’ तथा ‘भादानक’ था। बयाना की ख्याति इसके पास स्थित अनगिनत कब्रगाहों के कारण भी रही है। मुसलमान योद्धाओं सैकड़ों मजाने आज भी बीते युग की एक विकले के ऐतिहासिक बुद्धों का केन्द्र स्थल का है। इसमें ही बात है, नजर, इस्लाम शाह नेट, सदुल्ला खान सराय, अकबर की छतरी, जहाँगीरी दरवाजा एवं हा वाद का परिजन, लोदी के घोषित ऐतिहासिक स्मारक| (भरतपुर का इतिहास)

रूपवास

 मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा बनाए गए फतेहपुर सी एवं बावाड़ ईदगाह आदि राष्ट्रीय महत्व के की आखेट स्थली के रूप में काफी परिमार रहा है। यहाँ अकबर के मृगया महरल देहपुर सीकरी के समीप होने से कपास का से बरती भी स्थत है। रूपवास का वर्णन जोगीर ने रूपसिंह की जागीर के रूप में किया है, जिसे ब। यही निकर ही खानवा की प्रसिद्ध युद्ध रूपसिंह को चित्तौड़ के राणाओं का बंधाया था। जाता है। रूपसिंह ने यहाँ 17वीं सदी में लाल बलुओं अमलतास को दे दिल महल का एवं एक जलाशय का निर्माण करवाया था |(भरतपुर का इतिहास)

वैर

वैर कस्बे स्थापना प्रतापसिंह (महाराजा सूरजमल के भाई) ने 1726 ई. में की थी। वैर बाग-बगीचों का कस्बा कहलाता है। फुलवाड़ी सहल। नौलखा बाग, प्रताप फुलवारी, वेर का किला, ऊँचल के 1726 है, में की थी और इसे भरतपुर जिले की लघुकाशी भी कहते हैं। (भरतपुर का इतिहास)

 कामां

काम्यक वन, कदम्ब वन और कामवन के नाम से पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कामां को प्राचीनकाल में ब्रहापुर के नाम से भी संबोधित किया जाता था। यहाँ पुष्टि मार्गीय वादभ संप्रदाय की दो पील स्थापित हैं- प्रथम गोकुल चन्द्रजी एवं द्वितीय मदन मोहन जी का प्रसिद्ध मंदिर है । चौरासी खम्भा’ के नाम से प्रसिद्ध एक आयताकार स्मारक है, जिसमें पूर्वाभिमुख पर अंकित एक अरबी फारसी लेख के अनुसार हिजरी सन् 600 (ईस्वी सन् 1222) में इसका निर्माण एक अमीर सेठ ने करवाया था। कामां का ‘चील महल’ भी प्रसिद्ध इमारत है। (भरतपुर का इतिहास)

प्राचीन टीला मलाह

केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य के पास भरतपुर में स्थित इस प्राचीन टीले के उत्खनन में ईसा पूर्व प्रथम सदी की चित्रित धूसर भाण्ड संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

बयाना दुर्ग

यादव राजवंश के महाराजा विजयपाल ने यह दुर्ग मानी (दमदमा) पहाड़ी पर 1040 ई. के लगभग बनवाया था। बयाना दुर्ग के भीतर लाल पत्थरों से बनी भीम लाट है। इसे विष्णुवर्द्धन ने बनवाया था। यहाँ इब्राहीम लोदी द्वारा बनवाई गई लोदी मीनार भी है। इस दुर्ग को बाणासुर का किला, बादशाह दुर्ग एवं विजयगढ़ भी कहते हैं। इसी दुर्ग में महाराजा सूरजमल का राज्याभिषेक हुआ था।

खानवा, भरतपुर

गंभीर नदी के शांत तट पर स्थित खानवा भरतपुर से लगभग 32 किमी पूर्व में रूपवास तहसील में है। यहाँ बाबर एवं मेवाड़ के महाराणा सांगा के मध्य 17 मार्च, 1527 को महासमर (खानवा का युद्ध) हुआ था जिसमें बाबर विजयी हुआ तथा भारत में मुगल साम्राज्य स्थाई हो गया। यहीं पर बलराम, रेवती तथा चक्रधर दो भुजावाले विष्णु की विशाल मूर्तियाँ भी विराजमान हैं। (भरतपुर का इतिहास)

सीकरी बाँध

भरतपुर के इस बाँध से रूपारेल नदी के बाढ़ के पानी से होने वाली तबाही से बचाव किया जाता है।

नगला जहाज

इस गाँव में ग्वालों के रक्षक व पालनहार लोकदेवता देव बाबा का मंदिर (थान) है।

नगला छैल

बयाना तहसील में स्थित इस पुरातात्विक स्थल पर गुप्तकालीन सिक्कों का राजस्थान में सबसे बड़ा भण्डार मिला है। इसके अलावा जिले के ‘मलाह’ स्थान पर भी ताम्रयुगीन अस्त्र-शस्त्रों का भण्डार प्राप्त हुआ है |

डीग

डीग भरतपुर की प्राचीन राजधानी रहा है। यह कस्वा भव्य जल महलों के लिए प्रसिद्ध है। डीग को जलमहलों की नगरी कहते महल बशी पहाड़पुर के बादामी रंग के बलुई पत्थर से सन् 1755-1763 के बीच महाराजा सूरजमल एवं उनके पुत्र जवाहरसिंह द्वारा बनाये गये हैं। अधिकांश है। डीग के भवनों के योजना विन्यास का केन्द्र इसका वर्गाकार उद्यान है, जिसके चार भुजाओं पर चार इमारतें खड़ी हैं तथा पूर्वी व पश्चिमी पृष्ठभूमि में क्रमशः रूपसागर तथा गोपाल सागर नामक विशाल सरोवर हैं। पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण में क्रमशः केशव भवन, गोपाल भवन, नंदभवन तथा किशन भवन की अवस्थिति है। (भरतपुर का इतिहास)

गोपाल भवन के अनुपूरक के रूप में उत्तरी व दक्षिणी छोर पर क्रमशः ‘सावन तथा भादों भवन’ स्थित है। समूह की अन्य इमारतों में उद्यान के दक्षिणी पश्चिमी कोने पर स्थित तथा किशन भवन से लगा हुआ सूरज भवन तथा हरदेव भवन है। उत्तरी छोर पर स्थित सिंहपोल मुख्य प्रवेश द्वार है। इसके अतिरिक्त दो अन्य प्रवेश द्वार-नंगा द्वार व सूरज द्वार है जो क्रमशः दक्षिणी पश्चिमी व उत्तर पूर्वी कोने पर स्थित है।

जाट स्थापत्य शैली में निर्मित इन महलों पर राजपूत शैली एवं मुगल स्थापत्य शैली के कई तत्त्वों का मिश्रण है। गोपाल भवन एवं किशन भवन में एक संग्रहालय है, जिसमें रियासत कालीन प्रदशों के माध्यम से तत्कालीन जीवन शैली को जीवंत दर्शाने का प्रयास किया गया है। डीग का लक्ष्मण मंदिर भारतीय मंदिर स्थापत्य शैली का अद्भुत नमूना है।(भरतपुर का इतिहास)

महाराजा सूरजमल

महाराजा सूरजमल का पैनोरमा तथा महाराणा सांगा का स्मारक एवं पैनोरमा भी भरतपुर में स्थित है।

डीग के भवन

गोपाल भवन

अपनी विशालता, सटीक अवस्थिति व उत्कृष्ट वास्तुशिल्प के कारण गोपाल भवन डीग का सर्वोत्तम भवन है। गोपाल भवन के पीछे रानी बाग है। गोपाल भवन गोपाल सागर झील में स्थित है। यहाँ शाहजहाँ का संगमरमर का झूलेनुमा सिंहासन है। (भरतपुर का इतिहास)

सूरज भवन

धवल संगमरमर के इस सुंदर भवन का नामकरण निर्माता सूरजमल के नाम पर किया गया। इस भवन में संगमरमर की पट्टिकाओं पर मुगल शिल्पियों द्वारा पित्रा-ड्यूरा शैली में उत्खचित पौधे भवन की सुंदरता को बढ़ा देते हैं।

हरदेव भवन

सूरज भवन के ठीक पीछे स्थित आकर्षक उद्यानयुक्त भवन।

किशन भवन

यह परिसर के दक्षिण भाग में स्थित है। इस भवन के मेहराब अरबस्क शैली के अलंकरण से पूर्णतः सुसज्जित हैं

केशव भवन

बारादरी के नाम से ज्ञात इस भवन के एक ओर रूपसागर है।

नंद भवन

यह आयताकार भवन एक प्रेक्षागृह की भाँति है।

केन्द्रीय उद्यान

परिसर के ठीक केन्द्र में स्थित उद्यान चारबाग पद्धति पर बना है जो जोड़ का चिह्न बनाती चार नहरों व उनके कटान पर स्थित एक अष्टभुजीय ताल से परिपूर्ण हैं।

पुराना महल

रूपसागर के दक्षिण में एवं डीग भवन परिसर से बिल्कुल लगता हुआ यह पुराना महल बदनसिंह द्वारा निर्मित किया गया। यह भवन अपने स्थापत्य सौंदर्य के कारण महत्त्वपूर्ण है। (भरतपुर का इतिहास)

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  •  भरतपुर अंचल में प्रदर्शनकारी कलाओं में नौटंकी, भुटनी, हुरंगे, जिकड़ी और लांगुरिया की प्रधानता है। होली के बाद पंचमी से लेकर अष्टमी तक भरतपुर जिले के ग्रामीण अंचलों में हुरंगे का आयोजन किया जाता है। इसमें शिव व शक्ति की महिमा का गायन किया जाता है। जिकड़ी में ऐतिहासिक  आख्यानों तथा राजा महाराजाओं अथवा वीर पुरुषों की विरुदावली गाई जाती है | जिसके कथानक में वीररस की प्रधानता होती है। यह मेले व त्यौहारों अथवा दंगलों पर आयोजित होती है।
  • वंशी पहाड़पुर में उत्तम किस्म का लाल रंग का इमारती पत्थर मिलता है। 
  •  1804 के युद्ध में अंग्रेज सेना भरतपुर के किले को नहीं जीत सकी थी। (भरतपुर का इतिहास)

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निष्कर्ष:

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने भरतपुर का इतिहास के बारे मे वर्णन किया है,भरतपुर का इतिहास के साथ – साथ भरतपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भी वर्णन किया है।

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