भीलवाड़ा का इतिहास | Bhilwara History in Hindi

भीलवाड़ा का इतिहास: राजस्थान का मैनचेस्टर, राज्य की टैक्सटाइल सिटी, अभ्रक नगरी पाषाणकालीन सभ्यताओं के पुरास्थलों यथा बागोर, ओशियाना, हुरड़ा आदि की थाती को समेटे हुए भीलवाड़ा जिला राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। जिले के नान्दशा स्थान में प्राप्त’ यूप स्तंभ’ वैदिक आर्यों द्वारा संपन्न किये जाने वाले धार्मिक कार्यों का साक्षी है तो बागोर मध्यपाषाणकालीन लघु पाषाण उपकरणों की अमूल्य निधि को अपने में समेटे हुए है।

ये सभी स्थल भीलवाड़ा क्षेत्र की प्राचीनता का अहसास कराते हैं। मध्यकाल में यह क्षेत्र मेवाड़ रियासत के अधीन था, जो बाद में शाहपुरा की स्वतंत्र रियासत के रूप में गठित हुआ। इस काल में यहाँ अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ। शाहपुरा में रामानन्दी संप्रदाय की ही शाखा रामस्नेही संप्रदाय की प्रधान पीठ है तथा आसींद में खारी नदी के तट पर लगभग 11 सौ वर्ष पुराना देव नारायण मंदिर (सवाई भोज मंदिर) है। (भीलवाड़ा का इतिहास)

भीलवाड़ा का इतिहास
भीलवाड़ा का इतिहास

भीलवाड़ा जिले के माण्डलगढ़ में मेवाड़ महाराणा संग्रामसिंह (राणा सांगा) की समाधि है। मराठों के विरुद्ध राजपूताने के शासकों को संगठित करने हेतु हुरड़ा स्थान पर उनका सम्मेलन हुआ था। हुरड़ा भीलवाड़ा जिले में ही है। ब्रिटिश शासन के दौरान देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी भीलवाड़ा के स्वतंत्रता सेनानियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। इस जिले के शाहपुरा के श्री केसरी सिंह बारहठ एवं उनके समस्त परिवारजनों ने देश को स्वतंत्र कराने हेतुअपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। राज्य के पहले सफल व संगठित किसान आंदोलन

‘बिजौलिया किसान आंदोलन’ की शुरुआत भी इसी जिले के बिजौलिया ग्राम से हुई थी। देश के स्वतंत्र होने के बाद राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया में मेवाड़ एवं शाहपुरा रियासत के संयुक्त राजस्थान में विलय के बाद सन् 1949 में एक स्वतंत्र जिले के रूप में गठित भीलवाड़ा जिले को राज्य की ‘टैक्सटाइल सिटी’, ‘राजस्थान का मैनचेस्टर’ व ‘अभ्रक नगरी’ भी कहा जाता है। पड़ (फड़) चित्रण के लिए शाहपुरा (भीलवाड़ा) विश्वस्तर पर विख्यात है।

यहाँ के कुछ चितेरे चाँदी की कलात्मक वस्तुओं पर मनोहारी चित्रकारी करने में सिद्धहस्त हैं। भीलवाड़ा में रेलवे की मैमू कोच फैक्ट्री का शिलान्यास अभी हाल ही में हो गया है। (भीलवाड़ा का इतिहास)

स्थापना वर्ष अज्ञात
क्षेत्रफल 10455 वर्ग किलोमीटर
संस्थापक भील राजा श्री भलराज
उपनामवस्त्र नगरी, राजस्थान का मैंचेस्टर
तहसील 16
जनसंख्या2408523
प्रमुख नदीबनास, बेदाच, कोठारी, खारी, मानसी
भीलवाड़ा का इतिहास
  • भीलवाड़ा जिले के पश्चिम में राजसमंद, दक्षिण में चित्तौड़गढ़, पूर्व में बूंदी, उत्तर में अजमेर व उत्तर-पूर्व में टोंक जिला स्थित हैं। 
  •  बनास, बेड़च, कोठारी, मानसी, खारी व मेनाल यहाँ की मुख्य नदियाँ हैं।
  •  मेजा बाँध यहाँ का मुख्य बाँध है। 
  •  मेनाल जलप्रपात भीलवाड़ा में ही स्थित है।

Table of Contents

भीलवाड़ा का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार

नामस्थानतिथि
फूलडोल का मेला (रामस्नेही सम्प्रदाय)
रामनिवास धास (रामद्वारा)
चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से पंचमी तक।
सौरत (त्रिवेणी) का मेलात्रिवेणी संगम, सौरत, (मेनाल, मांडलगढ़)शिवरात्रि
 धनोप माता का मेला धनोप गांव (खारी व मान्सी नदी के बीच स्थित)चैत्र शुक्ला 1 से 10
सवाई भोज का मेलासवाई भोज, आसीन्दभाद्रपद शुक्ला 6
तिलस्वाँ महादेव मेला तिलस्वाँ (मांडलगढ़)शिवरात्रि
प्रमुख मेले व त्यौहार

भीलवाड़ा का इतिहास प्रमुख मंदिर

शाहपुरा का रामद्वारा

शाहपुरा (भीलवार) में रामस्नेही मप्प्रदाय का प्रधान पद । रामस्नेही इनको मुख प्रधान मक) राख्ने भान के देहावसान के बाद जिस स्थान पर उनकी अंत्येष्टि सम्प्रदाय के संस्थापक स्वामी श्री राथान पर की गई उसी स्थान पर यह विशाल रामारा निर्मित किया गया। को।

स्यापि समरत के ऊपर एक बारहदरी है। इस बारहदरी में कोई मूर्ति, चित्र माउस पर यह विशाल रामद्वारा निर्मित किया गया। इस समर्थको को की पर चौतीस बार र-र-र और राम-राम-राम लिखा हुआ है। रामद्वारा परिसर में ही दक्षिण की तरक पंक्तियार छतरियों निर्मित हैं। उत्तर की तरफ शाहपुरा के दिवंगत राजाओं की छतरियाँ भी हैं। प्रतिवर्ष चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से पंचमी तक (मार्च-अप्रैल) शाहपुरा में फूलडोल का उत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।। (भीलवाड़ा का इतिहास)

सवाई भोज मंदिर (गोठां दड़ावतां)

यह आसीद (भीलवादी) ने रोटी के सात अप्रैल में कल पुराना देवनारायण मंदिर है। यह मंदिर गुर्जर जाति के लोगों के लिए विशेष अद्धा का केन्द्र है। यह मदिर चौबीस बगड़ावत भाइयों में से एक सवाई भोज को समर्पित है। राजस्थान में देवनारायणजी के चार प्रमुख मंदिर है-गोंठों दड़ाक्तों (आसीन्द), देवधाम जोचपुरिया (निवाई, टोंक), देवमाली (अजमेर) एवं देव डूंगरी (चितौड़गढ़)।

 हरणी महादेव का मंदिर

भीलवाड़ा से 6 किमी दूर स्थित । यहाँ एक झुकी हुई चट्टान के नीचे शिवजी का मंदिर बना हुआ है। प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर यहाँ विशाल मेला लगता है। (भीलवाड़ा का इतिहास)

तिलस्वाँ मंदिर

माँडलगढ़ के निकट तिलस्वाँ महादेव मंदिर है।

 धनोप माता का मंदिर

भीलवाड़ा के धनोप गाँव में स्थित मंदिर। धनोप माता राजा धुंध की कुलदेवी थी। यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र सुदी एकम से चैत्र सुदी दशमी तक मेला आयोजित होता है |

 बाईसा महारानी का मंदिर व गंगाबाई की छतरी

यह प्रसिद्ध देवालय गंगापुर (भीलवाड़ा) में स्थित है। यह मंदिर ग्वालियर के महाराजा महादजी सिंधिया की पत्नी महारानी गंगाबाई की स्मृति में निर्मित किया गया। महारानी गंगाबाई उदयपुर के महाराणा व उनके उमराव देवगढ़ राव के मध्य सुलह करवाने उदयपुर गई थी। वापस लौटते समय यहाँ उनका देहान्त हो गया था। इस मंदिर में गंगाबाई की मूर्ति स्थापित है। यहाँ उनको छतरी भी है।

मंदाकिनी मंदिर

भीलवाड़ा जिले में बिजोलिया में स्थित ‘मंदाकिनी मंदिर’ विलक्षण है। यहाँ तीन मंदिर महाकालेश्वर, हजारेश्वर व उण्डेश्वर मंदिर व एक जलकुंड मरड़केनी  जलकुंड है |

गाडोली महादेव

भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर में गाहोली महादेव अकेले ऐसे महादेव है पूर्ण रूप से परिधानों में सजाए जाते हैं। देश का शायद यह पहला शिव मंदिर है जहाँ फाल्गुन के अलावा भाद्रपद की चतुर्दशी को भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है।

देवतलाई के देवनारायण

भीलवाड़ा जिले की कोटड़ी तहसील के देवतलाई गाँव का देवनारायण मंदिर सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है। एक ही परिसर में ईसाई, बौद्ध, मुस्लिम, जैन सहित अन्य धमों के करीब 70 मंदिर है।

बागोर गुरुद्वारा

भीलवाड़ा के बागोर ग्राम में नवनिर्मित गुरुद्वारा श्रीकलगीधर बागोर साहिब जन-जन की आस्था का केन्द्र है। सिक्खों के 10वें गुरु गोविंदसिंह मार्च, 1707 में अपनी दक्षिण यात्रा के समय बागोर के प्राचीन गढ़ पर 17 दिन तक रुके थे। उसी की याद में बागोर में गुरुद्वारे का निर्माण करवाया गया।

भीलवाड़ा का इतिहास पर्यटन व दर्शनीय स्थल

माण्डल

इस कस्बे में प्रसिद्ध प्राचीन स्तम्भ मिंदारा, जननाथ करावास की लास खंभों की छतरी एवं कोठारी नदी पर बना मेजा बाँध प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। यहाँ होली के तेरह दिन पश्चात् रंग पर नाहर नृत्य होता है।

बिजोलिया

 स्वतंत्रता पूर्व के देश के पहले संगठित किसान उमा रेग तेरस पर बाहर त्या का आयोजन में प्राचीन मंदाकिनी मंदिर एवं बावड़ियाँ हैं।

शाहपुरा

रामस्नेही सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ ‘राम द्वारा’ यहीं स्थित है। यही प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरीसिंह बारहठ एवं प्रतापसिंह बारहठ की हवेली एक स्मारक के रूप में संरक्षित है। परकोटे के द्वार पर केसरी सिंह बारहठ उनके अनुज जोरावर सिंह एवं उनके पुत्र प्रतापसिंह की मूर्तियाँ लगी हैं। यह कस्बा पड़ चित्रण के लिए भी प्रसिद्ध है। राज्य की प्रथम लोकतांत्रिक सरकार का गठन शाहपुरा रियासत में ही किया गया था। 23 दिसम्बर को प्रतिवर्ष यहाँ शहीद मेला लगता है। यहाँ होली के दूसरे दिन फूलडोल मेला आयोजित होता है। (भीलवाड़ा का इतिहास)

 मेनाल

चित्तौड़गढ़ बूँदी मार्ग पर मांडलगढ़ कस्बे के निकट स्थित यह स्थान नीलकण्ठेश्वर महादेव (महानाल देव) के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक बारहमासी झरना भी बहता है तथा मेनाल नदी पर मेनाल जल प्रपात स्थित है। यहाँ से कुछ दूर बीगोद के निकट तीन नदियों बनास, बेड़च व मेनाल का त्रिवेणी संगम है।

बारहदेवरा

जहाजपुर कस्बे में स्थित इस तीर्थस्थल में 12 लघुदेवालय बने हुए हैं जो 12वीं शताब्दी की स्थापत्य कला के परिचायक हैं।

लव गार्डन

भीलवाड़ा के इस पार्क का निर्माण वर्ष 1987 में प्रारंभ हुआ और तीन वर्ष बाद 15 अगस्त, 1990 को यह आम जनता के लिए खोल दिया गया।

 धौड़ का यशोदा देवकी पट्ट चमना बावडी

यह शिवालय रूठी रानी का महल कहलाता है।

चमना बावड़ी

शाहपुर (भीलवाड़ा) में स्थित भव्य और विशाल तिमंजिली बावड़ी जिसका निर्माण वि.सं. 1800 में महाराजा उम्मेदसिंह प्रथम ने चमना नामक गणिका की इच्छा पर करवाया था।

बागोर

कोठारी नदी के तट पर स्थित बागोर एक मध्यपाषाण युगीन महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है। बस्ती से एक किमी पूर्व में स्थित यह स्थल पाषाणकालीन अवशेषों के कारण विश्वविख्यात है। बागोर अभ्रक बहुल क्षेत्र के मध्य स्थित है और इसके आसपास अभ्रक की महत्त्वपूर्ण खदानें है। (भीलवाड़ा का इतिहास )

सीतारामजी की बावड़ी

भीलवाड़ा में स्थित इस बावड़ी में एक गुफा बनी हुई है जिसमें बैठकर रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रवर्तक स्वामी रामचरणजी ने 36 हजार पदों की रचना की तथा रामस्नेही सम्प्रदाय की स्थापना की।

बत्तीस खंभों वाली छतरी, मांडल

यह छतरी ‘आमेर के जगन्नाथ कछवाहा’ की स्मृति में शाहजहाँ द्वारा निर्मित है। जगन्नाथ कछवाहा का मांडल में मेवाड़ सेना के विरुद्ध हुए युद्ध में निधन हो गया था।

अन्य स्थल

 माण्डलगढ़ का दुर्ग, अमरगढ़ की छतरियाँ, बनेड़ा एवं बदनोर के महल, मगरोप एवं हमीरगढ़ (बाकरोल) का दुर्ग, छावन माता का मंदिर, मांडलगढ़ में ऊंडेश्वर महादेव का मंदिर, नांदशा के यूप स्तम्भ, बनेड़ा की चोखी बावड़ी व बाईराज की बावड़ी आदि। (भीलवाड़ा का इतिहास)

भीलवाड़ा का इतिहास महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • भीलवाड़ा नगर में शाहपुरा रियासत की टकसाल थी जिसके सिक्के भिलाड़ी कहलाते थे।
  • बिजौलिया का पुराना नाम विन्ध्यावली है।
  • भोडल की छपाई : भीलवाड़ा के छीपे अभ्रक से भी छपाई का कार्य करते हैं जो भोडल की छपाई कहलाती है। इसके बूटे दूर से ही चमकते हैं। आंगी गैर नृत्य : भीलवाड़ा के गैर नर्तक पाँवों में लम्बा जामा (आंगी)पहनते हैं इस कारण यहाँ का गैर नृत्य आंगी गैर कहलाता है।
  • भीलवाड़ा का ‘माच का ख्याल’ प्रसिद्ध है। भीलवाड़ा के बगसूलाल खमेसरा को ‘माच ख्याल का जनक’ माना जाता है।
  • भीलवाड़ा जिले के मांडल में ‘नारों का स्वांग’ बहुत प्रसिद्ध है।
  • भीलवाड़ा के जानकीलाल बहुरूपिया कला के अंतरराष्ट्रीय कलाकार रहे है। (भीलवाड़ा का इतिहास )

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निष्कर्ष:

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने भीलवाड़ा का इतिहास के बारे मे वर्णन किया है,भीलवाड़ा का इतिहास के साथ – साथ भीलवाड़ा के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भी वर्णन किया है।

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