राजसमंद का इतिहास: राजसमंद स्वाधीनता पूर्व मेवाड़े राज्य का और बाद में उदयपुर जिले की अभिन्न अंग रहा है। भीम, देवगढ़, रेलमगरा तथा राजसमंद आदि को एकीकृत क हुए दिनांक 10 अप्रैल, 1991 को राजसमंद जिले का गठन किया गया। (राजसमंद का इतिहास)
![राजसमंद का इतिहास](https://pastpuzzler.in/wp-content/uploads/2023/09/जैसलमेर-का-इतिहास-2-1024x580.png)
राजसमंद का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार
मेला | स्थान | दिन |
प्रताप जयंती का मेला | हल्दी घाटी | ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया |
जन्माष्टमी मेला | नाथद्वारा | जन्माष्टमी |
देवझुलनी मेला | चारभुजा | जलझूलनी एकादशी |
आसेट पशु मेला | आमेट | आसोज कृष्णा 11 से शुक्ला एकम |
अन्नकूट मेला | नाथद्वारा व काँकरोली | गोवर्धन पूजा |
जोहिड़ा भैरूजी का मेला | कुवारिया ग्राम | अश्विनी शुक्ला एकम से पंचमी तक |
चेतक अश्व मेला | हल्दी घाटी | महाराणा प्रताप जयंती पर |
आमज माता का मेला | रीछेड़ गाँव | ज्येष्ठ सुदी नवमी |
राजसमंद का इतिहास प्रमुख मंदिर
श्री नाथजी मंदिर, श्री नाथद्वारा (राजसमंद)
राजसमंद जिले में सीहाड़ गाँव में स्थित ‘नाथद्वारा’ बल्लभ सम्प्रदाय (पुष्टिमार्गीय) वैष्णवों का प्रमुख तीर्थ है। यहाँ वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख उपास्य श्रीनाथजी का मंदिर है। श्रीनाथजी के नाम पर यह गाँव श्रीनाथद्वारा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 17वीं सदी में महाराणा राजसिंह के काल में निर्मित इस मंदिर में श्रीनाथ जी की काले मार्बल की प्रतिमा है, जो मथुरा से यहाँ लाई गई थी ताकि नष्ट होने से बचायी जा सके। यहाँ की पिछवाइयाँ प्रसिद्ध हैं। यह वल्लभ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ है। श्रीनाथजी को ‘सात ध्वजा का स्वामी’ कहा जाता है। (राजसमंद का इतिहास)
द्वारिकाधीश मंदिर कांकरोली
कांकरोली नगर नाथद्वारा से 16 किमी उत्तर में राजसमंद झील के पास ही स्थित है। यहाँ पुष्टिमार्गी वल्लभ सम्प्रदाय का सुप्रसिद्ध द्वारिकाधीश मंदिर स्थित है जिसमें भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है। सन् 1669 में औरंगजेब के आतंक से भयभीत वल्लभ सम्प्रदाय के पुजारियों द्वारा मथुरा से यह प्रतिमा लाई गई। 1672 ई. में मंदिर की स्थापना हुई। यह मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय की सात पीठों में से एक पीठ माना जाता है। (राजसमंद का इतिहास)
पिप्पलाद माता का मंदिर
उनवास (हल्दी घाटी, राजसमंद) में है। पिप्पलाद माता का मंदिर मेवाड़ के गुहिल सम्राट अल्लट के राज्यकाल में 10वीं शताब्दी में नर्मित हुए थे l
गड़बोर का चार भुजानाथ मंदिर (मेवाड़)
मेवाड़ के चार प्रमुख स्थलों में केसरिया जी, कैलाशपुरी और नाथद्वारा के साथ गड़बोर की गिनती की जाती है। यहाँ चारभुजा नाथजी की बड़ी पौराणिक चमत्कारी प्रतिमा है। यहाँ वर्ष में दो बार होली तथा देवझूलनी एकादशी पर मेले भरते हैं। इस मंदिर के पास गोमती नदी बहती है। इस मंदिर का निर्माण महाराणा मोकल द्वारा करवाया गया था।
उनवास गाँव
खमनौर पंचायत समिति में स्थित-उनवास गाँव की बड़लिया हिन्दवा जैसे लोकतीर्थ के रूप में ख्याति है। यह पहाड़ी क्षेत्र में सम्भवतः प्राचीनतम शक्तिपीठ रहा है क्योंकि आदिवासियों में इस मंदिर की बड़ी मान्यता है।
कुन्तेश्वर महादेव मंदिर
यह भव्य शिव मंदिर फरारा गाँव में स्थित है। जनश्रुति के आधार पर इस मंदिर की सथापना महाभारत काल में पाण्डवों की माता कुन्ती ने की थी।
रोकड़िया हनुमान
चार भुजा मंदिर के पास ही हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर है जिसे रोकड़िया हनुमान का मंदिर कहते हैं।
परशुराम महादेव
खमनौर के पास इस स्थान से बनास नदी का उद्गम होता है। यहाँ भैरोजी का एक मठ भी है।
मचीन्द्र
राजसमंद जिले में अरावली पर्वत श्रृंखला में मचीन्द्र नामक स्थान पर भील योद्धा सरदार पूँजा की प्रतिमा स्थापित है। इसे मत्स्येन्द्रनाथ की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है।
भगवान स्वरूप नारायण मंदिर
यह कुम्भलगढ़ तहसील में सेवात्री ग्राम में गोमती नदी के समीप स्थित है।
राजसमंद का इतिहास पर्यटन एवं दर्शनीय स्थल
कुम्भलगढ़
मेवाड़ व मारवाड़ की सीमा पर सादड़ी गाँव के समीप अरावली पर्वतमाला की जनरगा पहाड़ी पर महाराणा कुंभा द्वारा सन् 1448 ई.-1458 ई. में निर्मित दुर्ग, जिसका प्रमुख शिल्पी मंडन था। दुर्ग के भीतर कुंभा का निवास स्थान कटारगढ़’ है। हल्दीघाटी के युद्ध में पराजय के बाद प्रताप ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। कुंभलगढ़ दुर्ग महाराणा प्रताप का जन्म स्थल है।
अबुल फजल में इसके बारे में लिखा है कि यह किला कुंभा की मेधा का प्रतीक है। इस दुर्ग को ‘मेवाड़ की आँख’ भी कहा जाता। 1 जाता है। कविराजा श्यामलदास ने ‘वीर विनोद’ में इसे चित्तौड़ दुर्ग के बाद राजस्थान का सबसे महत्त्वपूर्ण दुर्ग माना है। यूनेस्को ने 21 जून, 2013 को इसे विश्व विरासत सूची में शामिल किया है। कुंभलगढ़ दुर्ग को ‘मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी’ कहा जाता है। कुंभलगढ़ में कुँवर पृथ्वी राज की छतरी है।(राजसमंद का इतिहास)
हल्दीघाटी
इस स्थान पर 21 जून, 1576 को प्रताप व अकबर की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें अकबर की विजय हुई। इस युद्ध स्थल की रक्ततलाई के नाम से भी जाना जाता है। इस युद्ध को कर्नल जेम्स टॉड ने ‘मेवाड़ का थर्मोपोली’ कहा है।
हल्दीघाटी के निकट बादशाही बाग के मैदानों में चैत्री गुलाब की वृहद पैमाने पर खेती की जाती है। यहाँ का गुलाबजल, शर्बत व गुलकन्द सुविख्यात है। रक्ततलाई में ग्वालियर के तंवर नरेश की छतरियाँ, हकीम खाँ सूरी की मजार तथा झाला मन्ना की छतरी है।(राजसमंद का इतिहास)
राजसमंद झील
महाराणा राजसिंह द्वारा सन् 1662 में निर्मित झील। इस झील का उत्तरी भाग नव चौकी पाल के नाम से विख्यात है। इस पाल पर 25 शिलालेखों पर मेवाड़ का इतिहास (राजप्रशस्ती) संस्कृत भाषा में अंकित है। यह विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति है। नव चौकी पाल में ग्रहों के के अंक का अद्भुत प्रयोग हुआ अनुरुप १ के है,
इसकी लम्बाई 999 फीट, चौड़ाई 99 फीट व प्रत्येक सीढ़ी 9 इंच ऊंची व चौड़ी है। यह नव चौकी राजस्थान के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।(राजसमंद का इतिहास)
चेतक समाधि
हल्दीघाटी से लगभग 2 किमी पश्चिम में बलीचा में चेतक समाधि है, जहाँ चेतक का चबूतरा बना हुआ है।
दिवेर
मेवाड़ के उत्तरी छोर पर कुम्भलगढ़ एवं मदारिया की पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य दिवेर का नाका स्थित है। महाराणा प्रताप ने छापामार युद्ध पद्धति से मुगलों के सैनिक अभियानों को निष्फल करने के साथ-साथ शक्ति संयोजन कर 1582 में दिवेर पहुँच कर मुगल सेना पर सुनियोजित आक्रमण किया और विजयदशमी के दिन ऐतिहासिक विजय प्राप्त की। इसके बाद अकबर ने मेवाड़ पर सैनिक अभियान बन्द कर दिया। कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर को ‘मेवाड़ का मेराथन’ की उपमा दी थी।(राजसमंद का इतिहास)
गिलूण्ड
बनास नदी के तट पर स्थित इस स्थल पर ताम्रयुगीन सभ्यता व बाद के अवशेषण मिले हैं।
रूकमगढ़ की छापर
यह एक ऐतिहासिक स्थल है जहाँ 14 अगस्त, 1857 को तांत्या टोपे एवं अंग्रेजों की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ था।
मचीन्द
मदीन्द को महाराणा अमरसिंह के जन्मस्थल के रूप में जाना जाता है।
लक्ष्मण झूला
यह झुला भगवान स्वरूपनारायण मंदिर से 2 किमी. पहले गोमती नदी पर बना हुआ है।
राजसमंद का इतिहास महत्त्वपूर्ण तथ्य
- खमनौर में हल्दीघाटी, बादशाही बाग व रक्त तलाई संरक्षित स्थान है। मुगल सेना हल्दीघाटी के युद्ध से पूर्व सर्वप्रथम बादशाही बाग में ही ठहरी थी।
- यहाँ चूवां-चंदन व स्प्रे पेंटिंग की साड़ियाँ, मोलेला की टेराकोटा की मूर्तियाँ, नाथद्वारा के तारकशी के जेवर, खमनौर का चैती गुलाब व कुंभलगढ़ के सीताफल प्रसिद्ध है।
- मोलेला गाँव : यहाँ टेराकोटा के खिलौने बनाए जाते हैं। इस कला को विकसित करने में गगन बिहारी दाधीच का विशेष योगदान रहा है। मोहनलाल कुम्हार मोलेला के अच्छे कलाकार हैं। यहाँ मृदंग की आकृति का मिट्टी का लोकवाद्य बनाया जाता है जिसे मांदल कहा जाता है। यहाँ कुम्हारों की कुल देवी के रूप में आसपुरा माता को पूजा जाता है।
- गोरमघाट व कामलीघाट : राजसमंद जिले में यह अरावली के महत्त्वपूर्ण दरें है जो मेवाड़ को मारवाड़ से जोड़ते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण इतिहास
सिरोही का इतिहास | Click here |
जोधपुर का इतिहास | Click here |
दौसा का इतिहास | Click here |
हनुमानगढ़ का इतिहास | Click here |
बाड़मेर का इतिहास | Click here |
उदयपुर का इतिहास | Click here |
भीलवाड़ा का इतिहास | Click here |
भरतपुर का इतिहास | Click here |
चित्तौड़गढ़ का इतिहास | Click here |
धौलपुर का इतिहास | Click here |
सीकर का इतिहास | Click here |
झुंझुनू का इतिहास: | Click here |
चुरू का इतिहास | Click here |
डूंगरपुर का इतिहास | Click here |
पालि का इतिहास | Click here |
जैसलमेर का इतिहास | Click here |
सवाई माधोपुर का इतिहास | Click here |
नागौर का इतिहास | Click here |
झालावाड़ का इतिहास | Click here |
जालौर का इतिहास | Click here |
प्रतापगढ़ का इतिहास | Click here |
जयपुर का इतिहास | Click here |
बांसवाड़ा का इतिहास | Click here |
अलवर का इतिहास | Click here |
अजमेर का इतिहास | Click here |
श्रीगंगानगर का इतिहास | Click here |
करौली का इतिहास | Click here |
कोटा का इतिहास | Click here |
निष्कर्ष:
आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने राजसमंद का इतिहास की विस्तार से व्याख्या की है, साथ ही राजसमंद का इतिहास के प्रमुख पर्यटन व दर्शनीय स्थल का भी वर्णन किया है। (राजसमंद का इतिहास)