प्रतापगढ़ का इतिहास | Pratapgarh History in Hindi

प्रतापगढ़ का इतिहास: प्रतापगढ़ का क्षेत्र काँठल कहलाता है। प्रतापगढ़ के शासक सूर्यवंशी क्षत्रिय थे जो मेवाड़ के गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा से थे। इन्हें ‘महारावत’ कहा जाता था। मेवाड़ महाराणा कुंभा के भाई क्षेमकर्ण (क्षेमसिंह) ने किसी बात पर नाराज होकर चित्तौड़ का परित्याग कर 1437 ई. के लगभग सादड़ी पर अधिकार कर नये राज्य की नींव डाली। इन्हीं के उत्तराधिकारी महारावत सूरजमल ने 1508 ई. में देवलिया कस्बा बसाया एवं बड़ी सादड़ी में सूरसागर तालाब का निर्माण करवाया। (प्रतापगढ़ का इतिहास)

प्रतापगढ़ का इतिहास
प्रतापगढ़ का इतिहास

सूरजमल ने मेवाड़ के विरुद्ध गुजरात के खिलजी मुल्तानों का साथ दिया। महारावत सूरजमल के उत्तराधिकारी महारावत बाघसिंह ने 1534 ई. में मालवा (मांडू) के सुल्तान बहादुरशाह के चित्तौड़ आक्रमण के समय चित्तौड़गढ़ दुर्ग की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। इनकी छतरी चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रथम प्रवेश द्वार के पास मौजूद है। प्रतापगढ़ आदिवासी जनजाति बहुल जिला है। (प्रतापगढ़ का इतिहास)

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात यह एक स्वतंत्र जिला बनाया गया था परन्तु 1952 में जिलों के पुनर्गठन के बाद इसे चित्तौड़गढ़ जिले में शामिल कर दिया गया जो 2008 में पुनः स्वतंत्र जिला बना। प्रतापगढ़ कस्वा माउण्ट आबू के बाद राज्य का दूसरा सबसे ऊँचाई (समुद्रतल से औसत ऊँचाई 580 मी.) पर बसा हुआ कस्वा है।प्रतापगढ़ जिले का गठन 26 जनवरी, 2008 को राजस्थान के 33वें जिले के रूप में हुआ है। इस जिले में प्रतापगढ़,अरनोद, छोटीसादड़ी,पीपलखूँट एवं धरियावद उपखंड (5) तथा 5 तहसीलें-प्रतापगढ़, अरनोद, छोटीसादड़ी, धरियावद एवं पीपलखूँट शामिल की गई हैं। (प्रतापगढ़ का इतिहास)

क्षेत्रफल4117.36 वर्ग किमी.
जनसंज्ञा 867,848
लिंगा अनुपात 983
राजा महरावत प्रताप सिंह
स्थापना 1699
प्रतापगढ़ का इतिहास

प्रतापगढ़ का इतिहास

 प्रतापगढ़ मालवा, वागड़ और मेवाड़ की सीमा के मध्य स्थित है। इसके उत्तर में चित्तौड़गढ़, पश्चिम में उदयपुर और बाँसवाड़ा, दक्षिण में मध्यप्रदेश के रतलाम और जावरा जिलें तथा पूर्व में मध्यप्रदेश का मंदसौर जिला स्थित है। (प्रतापगढ़ का इतिहास)

प्रमुख नदिया

 नदियाँ: इस जिले में माही, जाखम, शिव, इरू, रेतम और करमोई आदि नदियाँ बहती हैं।

जाखम बाँध

जाखम बाँध : जाखम नदी पर प्रतापगढ़ जिले में जाखम बाँध परियोजना की गई है।

 जलवायु व मिट्टी

 जलवायु व मिट्टी : इसकी जलवायु मालवा के समान है और सामान्यतः आरोग्यप्रद है। पहाड़ी प्रदेश को छोड़कर यहाँ की अधिकांश भूमि उपजाऊ है। मिट्टी काली, भूरी और धामनी है। मगरा क्षेत्र की भूमि कंकरीली है।

 वन व वन्य जीव

 वन व वन्य जीव: प्रतापगढ़ में सागवान के वन प्रचुरता से पाए जाते हैं।

चंदन के वृक्ष इस जिले में सर्वत्र पाए जाते है। परन्तु दक्षिण भाग में बड़वासकलां व हतुण्या में ये अधिकता से है। यहाँ अफीम भी बहुतायत से पैदा होती है। प्रतापगढ़ में सीतामाता अभयारण्य है। सीता माता अभयारण्य में केवड़ा अधिकता से होता है जो सुगंधि के लिए प्रसिद्ध है।(प्रतापगढ़ का इतिहास)

सीता माता अभयारण्य में तीखी मगरी’ या ‘लखिया भाटा’ वह स्थल है जहाँ प्रागैतिहासिक काल के जानवरों के चित्र चट्टानों पर उकेरे हुए मिले हैं।

परिवहन

जिले में कोई रेलवे लाइन नहीं है। अब यहाँ से मंदसौर तक रेलवे लाइन का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था, परन्तु अभी रुका हुआ है।

पवन ऊर्जा परियोजना

पवन ऊर्जा परियोजना देवगद् (देवलिया) में राज्य की दूसरी पवन ऊर्जा परियोजना की स्थापना 6 मार्च, 2001 को की गई।

भाषा व लिपि

यहाँ की मुख्य भाषा मालवी है, जिसे रांगड़ी भी कहते हैं। कुछ लोग जागड़ी तथा भोली भाषा बोलते है जिनका गुजराती से बहुत कुछ संबंध है। (प्रतापगढ़ का इतिहास)

प्रतापगढ़ का इतिहास के राजाओ की भूमिका

महारावत विक्रमसिंह

महारावत विक्रमसिंह ने सादड़ी के स्थान पर देवलिया को अपनी राजधानी बनाया।

महारावत तेजसिंह

देवलिया के महारावत तेजसिंह (1563-1593) ने देवलिया में तेजसागर (तेजोला व तालाब) बनवाया।

महारावत प्रतापसिंह

महारावत प्रतापसिंह ने सन् 1699 ई. के लगभग डोडेरिया खेड़ा के स्थान पर प्रतापगढ़ कस्वा बसाया। प्रतापसिंह ने देवलिया में प्रतापबाव नामक बावड़ी और बाग बनवाया। महारावत प्रतापसिंह की माता मनभावती ने देवलिया के मानसरोवर नामक सुरम्य जलाशय बनवाया। (प्रतापगढ़ का इतिहास)

महारावत गोपाल सिंह

महारावत गोपाल सिंह ने देवलिया में गोपाल महल का निर्माण करवाया।

महारावत हरिसिंह

महारावत हरिसिंह ने देवलिया में महल और उनकी माता चंपाकुंवरी ने देवलिया में गोवर्धन नाथ का मंदिर, बावड़ी और वाटिका बनवाई थी। इस मंदिर की 27 अप्रैल, 1648 को प्रतिष्ठा की गई। (प्रतापगढ़ का इतिहास)

महारावत सालिम सिंह

महारावत सालिम सिंह (1756-1774) ने बादशाह शाह आलम-II के नाम से चाँदी के सिक्के बनाने के लिए प्रतापगढ़ में टकसाल खोली। ये सिक्के सालिमशाही सिक्के कहलाते थे।

महारावत सामंतसिंह

महारावत सामंतसिंह ने देवलिया में रघुनाथद्वारा नामक मंदिर बनवाया। उनको पुत्री चिननकुँवरी ने चंद्रशेखर शिव मंदिर बनवाया। महारावत सामंत सिंह की रानी दौलत कुँवरी ने देवलिया में युगल किशोर का विष्णु मंदिर बनवाया।

महारावत दलपत सिंह

महारावत दलपत सिंह ने देवलिया में सोनेलाव तालाब बनवाया तथा दलपत निवास महल बनवाया। महारावत दलपतसिंह को प्रतापगढ़ एवं डूंगरपुर दोनों राज्यों का शासक नियुक्त किया गया था।

महारावत उदयसिंह

महारावत उदयसिंह ने प्रतापगढ़ दुर्ग में उदय विलास महल तथा रामचंद्रजी का मंदिर बनवाया।  उन्होंने 1867 ई. में देवलिया के स्थान पर प्रतापगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।

महारावत रघुनाथ सिंह

महारावत रघुनाथ सिंह की महारानी केसर कुँवरी ने देवलिया के राजमहलों में रसिक बिहारी का मंदिर बनवाया। अंग्रेजी शिक्षा हेतु प्रतापगढ़ में उन्होंने पिन्हें नोबल्स स्कूल स्थापित किया।

प्रमुख मेले

गौतमेश्वर महादेव का मेला

अरणोद (प्रतापगढ़) में यह गौतम ऋषि का स्थान ‘गौतमेश्वर धाम’ माना जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष वैसाख पूर्णिमा से दो दिन तक विशाल मेला लगता है। यह ‘आदिवासियों का हरिद्वार’ माना जाता है। यहाँ पापमोचिनी ‘मंदाकिनी गंगाकुण्ड’ में श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं एवं मंगलेश्वर महादेव व गौतमेश्वर महादेव मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।

सीतामाता का मेला

तीर्थस्थल सीतामाता में यह मेला प्रतिवर्ष ज्यष्ठ अमावस्या को भरता है। यहाँ लवकुश कुण्ड व वाल्मिकी आश्रम भी है।

भँवरमाता का मेला

यह मेला छोटीसादड़ी में प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन नवरात्रों में भरता है।

दीपनाथ महादेव का मेला

दीपनाथ महादेव का मंदिर महारावत सामंतसिंह के कुँवर दीपसिंह ने बनवाया था। कार्तिक पूर्णिमा को प्रतिवर्ष यहाँ विशाल मेला लगता है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • प्रतापगढ़ अपनी प्राकृतिक दृश्यावली, थेवा कला तथा तरल हींग के लिए पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है। महिला महाविद्यालय होने कारण इसे राधानगरी भी कहा जाता है। 
  • जोनागढ़ : प्रतापगढ़ के दक्षिण पश्चिम में स्थित किला।
  •  देवगढ़ के किले में महल की छत पर सूर्यघड़ी स्थापित की गई थी, जो सूर्य की धूप के आधार पर सही समय बताती है।
  •  काकाजी साहिब की दरगाह : प्रतापगढ़ में स्थित इस दरगाह को ‘कांठल का ताजमहल’ कहा जाता है।
  • प्रतापगढ़ में सैयद मूसा शहीद दरगाह, अल्ला रक्खी बाई की मस्जिद, पीर बाग, कुमेदान शाह बाबा की दरगाह वे मदारचिल्लाह है। 
  • छोटी सादड़ी को ‘प्रतापगढ़ में स्वर्ण नगरी’ के नाम से जाना जाता है। 
  • अरनोद को ‘कांठल का हरिद्वार’ कहते हैं।

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निष्कर्ष:

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने प्रतापगढ़ का इतिहास की विस्तार से व्याख्या की है, साथ ही प्रतापगढ़ का इतिहास के प्रमुख मेलो का भी वर्णन किया है।

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