सिरोही का इतिहास | Sirohi history in Hindi

सिरोही का इतिहास: कर्नल टॉड के अनुसार सिरोही नगर का मूलनाम शिवपुरी था। सिरोही राजस्थान के दक्षिण पश्चिमी हिस्से स्थित भू-भाग इसका प्राचीन नाम अर्बुददेश (अर्बुदांचल ) अर्थात् आबू का मुल्क था। सिरोही शब्द की उत्पत्ति ‘सिरणवा’ से मानी जाती है। ‘सिरणवा’ नामक पर्वत श्रेणी के नीचे इस शहर के बसने के कारण इसका नाम सिरोही पड़ा। प्राचीनकाल में सिरोही क्षेत्र ‘देवनागरी’ के नाम से भी जाना जाता था।

माउण्ट आबू में ब्रिटिश शासन काल में 1857 ई. में ब्रिटिश शासन के दौरान ‘एजेन्ट टू गवर्नर जनरल’ (AGG) का कार्यालय स्थापित किया गया था। सिरोही जिले का सबसे ऊँचा पर्वत ‘आबू पर्वत’ (Mount Abu) है। इसका सबसे ऊँचा शिखर ‘गुरुशिखर’ है। हिमालय और नीलगिरी पर्वतमाला के बीच के प्रदेश में इतनी ऊँचाई का दूसरा कोई पहाड़ी शिखर नहीं है। आबू के पश्चिम में नांदवणा नाम की पहाड़ियाँ हैं, जो नींबज की पहाड़ियाँ भी कहलाती हैं। (सिरोही का इतिहास)

सिरोही का इतिहास | Sirohi history in Hindi me
सिरोही का इतिहास | Sirohi history in Hindi

देवड़ा चौहान राजा रणमल के पुत्र महाराव शिवभाण (लोकप्रिय नाम शोभा) ने ‘सिरणवा’ नामक पहाड़ी के नीचे 1405 में एक शहर बसोया और उक्त पहाड़ी के ऊपर एक किला बनवाया। यह शहर महाराव शिवभाण के नाम से शिवपुरी कहलाया। यह अब खंडहर हो चुका है। इसे पुरानी सिरोही कहते हैं। महाराव शिवभाण के बाद उनके पुत्र सहस्त्रमल (सैंसमल) ने 1425 ई. में वैशाख सुदी दूज को वर्तमान सिरोही नगर बसाया। इन्होंने चंद्रावती के स्थान पर सिरोही को नई राजधानी बनाया। (सिरोही का इतिहास)

विवरण सिरोही का इतिहास
संस्थापक शहस्त्रमल
स्थापना वर्ष 1425 ई.
राजवंश चौहान (देवड़ा शाखा)
प्राचीन नाम देवनागरी और अर्बुददेश
मूल नाम शिवपुरी
क्षेत्रफल 5136 वर्ग किमी.
सिरोही का इतिहास
  • प्रसिद्ध साहित्यकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा का जन्म सिरोही जिले के रोहिड़ा नामक गाँव में हुआ था।
  • आबू क्षेत्र में गरासियों द्वारा होली के अवसर पर जवारा नृत्य किया जाता है। इसके अलावा यहाँ का मोरिया, मांदल व वालर नृत्य भी प्रसिद्ध है।
  • सिरोही रियासत अंग्रेजों से संधि करने वाली अंतिम रियासत थी। इसने 1823 ई. में अंग्रेजों से संधि की थी। गुरु गोविंद गिरि ने सिरोही में सम्पसभा की स्थापना की थी। 1949 में तत्कालीन सिरोही रियासत का राजस्थान में विलय किया गया। राज्यों के पुनर्गठन के समय 1956 में आबूरोड तहसील बम्बई राज्य से सिरोही जिले में स्थानांतरित की गई। तब से यह जोधपुर संभाग का एक जिला है। सिरोही की तलवारें प्रसिद्ध हैं।
  • राजस्थान के गाँधी’ के नाम से विख्यात श्री गोकुल भाई भट्ट की जन्म स्थली हाथल, सिरोही जिले में ही है।
  • सिरोही के महाराव अखैराज ‘उडणा अखैराज’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। (सिरोही का इतिहास)

Table of Contents

सिरोही का इतिहास प्रमुख मेले व त्यौहार

मेलास्थानदिन
 सारणेश्वर जीसिरोहीभाद्रपद शुक्ला 11 एवं 12
गौतम ऋषि का मेलाचांदीला/चौटीला13-15 अप्रैल
गोर मेलासियावा (आबूरोड़)वैशाख सुदी 4
नक्की झील मेलामाउण्ट आबूवैशाख सुदी पूर्णिमा
मातरामाता मेलासिरोही चैत्र अमावस्या
मास्कण्डेश्वर मेलाअंजारी गाँवभाद्रपद शुक्ला 11 एवं वैशाख पूर्णिमा
सिरोही का इतिहास

प्रमुख मंदिर

दिलवाड़ा के जैन मंदिर

ये 11वीं से 13वीं सदी के सोलंकी कला के अद्भुत उदाहरण हैं। डाक विभाग ने 14 अक्टूबर, 2009 को दिलवाड़ा जैन मंदिर पर डाक टिकट जारी किया है। ये मंदिर नागर शैली व मारू गुर्जर स्थापत्य शैली में बने हैं। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार ‘देलवाड़ा के जैन मंदिर ताजमहल के बाद देश की सबसे सुंदर इमारत है। आबू पर्वत पर दिलवाड़ा में मंदिर परिसर में पाँच श्वेताम्बर मंदिर हैं इनके अलावा दिलवाड़ा में एक दिगम्बर जैन मंदिर भी है। ये निम्न हैं – (सिरोही का इतिहास)

1. विमलवसहि का जैन मंदिर : दिलवाड़ा परिसर का यह भव्यतम मंदिर है जिसका निर्माण गुजरात के सोलंकी महाराजा भीमदेव के मंत्री एवं सेनापति विमल शाह ने महान शिल्पकार कीर्तिधर के निर्देशन में 1031 ई. में करवाया था। 14 वर्षों में इस मंदिर को मूर्तरूप दिया गया। यह मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) का है। यह देलवाड़ा का प्राथमिक मंदिर है। उस समय आबू पर परमार राजा धंधुक राज्य करता था। इस मंदिर में हस्तीशाला का निर्माण विमलशाह के वंशज पृथ्वीपाल ने 1147-49 ई. के मध्य कराया था।

2. लूणवसहि मंदिरः इसका निर्माण सोलंकी (बघेल) राजा वीर धवल के महामंत्री वस्तुपाल व तेजपाल द्वारा 1230-31 ई. में करवाया गया था। इस मंदिर का मुख्य शिल्पी शोभन देव था। इस मंदिर में 22 वें जैन तीर्थकर ‘भगवान नेमिनाथ’ की करुणा बिखेरती श्यामवर्णी प्रतिमा की प्रतिष्ठा है। देवालय में देरानी जेठानी के गोखड़े निर्मित हैं। ये दोनों गोखड़े वास्तुपाल ने अपनी दूसरी स्त्री सुहड़ादेवी के श्रेय के निमित्त बनवाए थे। लूणवसहि मंदिर वस्तुपाल व तेजपाल ने अपने स्वर्गीय भाई लुबा की याद में बनवाया था। इसे लोग वस्तुपाल-तेजपाल का मंदिर कहते हैं। (सिरोही का इतिहास)

3. खारातारा बसहि पार्श्वनाथ जैन मंदिर : यह मंदिर 15वीं सदी में मंडलीक सांघवी ने 1458-59 ई. में बनवाया था। यह तीन मंजिला है। भगवान पार्श्वनाथ की चौमुखा प्रतिमा के कारण इसे चौमुखा पार्श्वनाथ मंदिर व सिलावटों का मंदिर भी कहते हैं। इसमें सामने की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा ‘चिंतामणि पार्श्वनाथ’ की, दूसरी ‘मंगलकारी पार्श्वनाथ’ की, तीसरी ‘मनोरथ कल्पद्रुम पार्श्वनाथ’ की है। चतुर्थ प्रतिमा अस्पष्ट (अपठनीय) है। मंदिर की दूसरी मंजिल पर भगवान पार्श्वनाथ, सुमतिनाथ, आदिनाथ एवं पार्श्वनाथ की चौमुखी प्रतिमा विराजमान है। (सिरोही का इतिहास)

4. हस्तीशाला के पास महावीर स्वामी का एक लघु मंदिर है जिसकी दीवारों व गुम्बद में प्राचीन चित्रकारी विद्यमान है।

5. पित्तलहर या भीमाशाह का मंदिर: दिलवाड़ा का यह मंदिर भीमाशाह ने बनवाया था। जैन तीर्थकर आदिनाथ की 108 मन की पीतल प्रतिमा (पंच धातु की प्रतिमा) के कारण इस मंदिर को पित्तलहर भी कहते हैं। यह मूर्ति 1469 ई. में गूर्जर श्रीमाल जाति के मंत्री मंडन के पुत्र मंत्री सुंदर व गूंदा ने वहाँ पर स्थापित की थी।

 भगवान कूंथूनाथ

यह मंदिर लूणवसही मंदिर के बाहर दायीं ओर स्थित है। सन् 1449 में महाराणा कुंभा ने इसको बनवाया था। यह मंदिर दिगम्बर जैन मंदिर है जबकि देलवाड़ा के अन्य जैन मंदिर श्वेताम्बर सम्प्रदाय के है।

ऋषिकेश महादेव

आबू रेलवे स्टेशन से कुछ दूरी पर उमरणी गाँव में भगवान ऋषिकेश (विष्णु) का 7 हजार वर्ष पुराना मंदिर है। इस मंदिर का प्रथम उल्लेख वैदिककालीन ग्रंथ स्कन्द पुराण में मिलता है। इसे राजा अमरीश ने बनवाया था व 14 वर्ष तक यहाँ खड़े रहकर तपस्या की थी। इसके बाद यहाँ अमरावती संस्कृति का उद्भव हुआ। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला एकादशी को मेला भरता है।

गौतम ऋषि महादेव

यह मंदिर चौटीला ग्राम के पास सूकड़ी नदी के किनारे स्थित है। भूरिया बाबा मीणा समाज के आराध्य देव है। मीणा लोग भूरिया बाबा का मंदिर के नाम की सेवा लाम के पास सकती नदी के किनारे विकार्य नहीं करते। मंदिर के पास पवित्र गंगा कुण्ड स्थित हैं जहाँ मीणा समा क्लोनाम की शपथ लेकर कभी झूठ नहीं बोलते व हालत कउनकी आत्मा को मुक्ति मिल सके। यहाँ भरने वाले वार्षिक मेले की व्यवस्था समाज के पंच लोग करते हैं तथा पुलिस का प्रवेश वर्जित है। (सिरोही का इतिहास)

भद्रकाली माता मंदिर

ऋषिकेश मंदिर के रास्ते में यह प्राचीन मोदर स्थित है।

सारणेवश्वर महादेव

यह सिरोही में सिल्क  के सामने  जिस का 15वीं शताब्दी का सारणेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। यह तेल राजकुल के कुलदेवता का मंदिर है।

‘रसिया बालम’ या कुँवारी कन्या का मंदिर

विश्व प्रसिद्ध देलवाड़ा जैन मंदिर के पीछे पर्वत की तलहटी में यह मंदिर स्थित है। इस मंदिर में दो पाषाण मूर्तियाँ स्थापित हैं। एकम युवक की है जो हाथ में विप का रकेतील ए है। इसके सामने नजदीक ही दूसरी मूर्ति युवती की है। ये युवक-युवती अपने प्रेम संबंधे। ‘रसिया’ और ‘बालम’ नाम से जाने जाते हैं। (सिरोही का इतिहास)

बाजना गणेश

यह मंदिर सिरोही में एक झरने के पास स्थिताते है धरने की आवाज के कारण इसे ‘बाजना गणेश’ कहा जाता है।

नन्दीवर्धन

इस गाँव में भगवान महावीर के बड़े भाई नन्दीवर्धन द्वारा महावीर के जीवनकाल में बनवाया गया मंदिर स्थित है। इस मंदिर की प्रतिमा बारे में कहा जाता है कि यह हर प्रहर भाव भंगिमा बदलती है। महावीर स्वामी के जीवन काल में ही यहाँ पर उनके मंदिर का निर्माण है। से इसे जीवन्त स्वामी का तीर्थ भी कहते हैं।

अजारी (मारकण्डेश्वर)

सिरोही में अजारी गाँव में मारकण्डेश्वर शिवालय स्थित है। ऋषि मार्कण्डेय ने यहाँ तपस्या की थी। उनके नाम पर यह शिवालय मार्कण्डेश्वर कहलाता है। प्रतिवर्ष भाद्रपद सुदी एकादशी को एवं वैशाखी पूर्णिमा को यहाँ मेले भरते हैं जिनमें गरासिया व अन्य जातिया आदिवासी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। पास में स्थित ‘गया कुण्ड’ स्थित है। यहाँ लोग अपने मृत परिवारजनों की अस्थियाँ विसर्जित करते।  (सिरोही का इतिहास)

मीरपुर के जैन मंदिर

सिरणवा की पहाड़ियों में मीरपुर के कलात्मक जैन मंदिर बने हुए है। (सिरोही का इतिहास)

सिरोही का इतिहास | Sirohi history in Hindi me
सिरोही का इतिहास | Sirohi history in Hindi me

सिरोही का इतिहास माउण्ट आबू (राजस्थान का शिमला)

  • माउण्ट आबू नगरपालिका राज्य की सबसे पुरानी नगरपालिका है। राजस्थान में माउण्ट आबू नगरपालिका की स्थापना 1864 ई. में ब्रिटिश हुकूमत के समय हुई थी। ब्रिटिश शासन में माउण्ट आबू में राजपुताना गवर्नर जनरल के एजेन्ट (AGG) का मुख्यालय था। माउण्ट आबू को राजस्थान का शिमला व ‘बर्खीयांस्क’ भी कहते हैं। यह राज्य में सर्वाधिक ऊँचाई पर बसा नगर है। इस पर्वत पर अनेक हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिर बने होने के कारण कर्नल टॉड ने इसे ‘हिन्दू ओलम्पस’ (देव पर्वत) कहा है। यहाँ राज्य का पहला इको फ्रेजाइल जोन स्थापित किया गया है। (सिरोही का इतिहास)
  •  आबू पर्वत अरावली पर्वत माला का भाग है इसकी सबसे ऊँची चोटी गुरुशिखर ( 1722 मीटर) है। माउण्ट आबू प्रदेश का एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल है।
  • नक्की झील : आबू पर्वत पर स्थित इस झील के बारे में लोकोक्ति है कि देवताओं ने अपने नाखूनों से इस झील को खोदा था, इसी कारण इस झील का नाम नक्की झील पड़ा। इस झील के किनारे के पास के पर्वतों पर हाथी गुफा, चम्पा गुफा व रामझरोखा आदि प्रसिद्ध गुफाएँ है। यहाँ टॉड रॉक (मेंढ़ाकाकार चट्टान) व नन रॉक (घूँघट निकाले स्त्री की आकृति की चट्टान) भी है।
  •  गुरु शिखर : यह अरावली पर्वत श्रृंखला का सर्वोच्च शिखर है। इस पर्वत पर भगवान विष्णु के अवतार भगवान दत्तात्रेय एवं भगवाद शिव के मंदिर भी स्थित है। पास की दूसरी चोटी पर भगवान दत्तात्रेय की माता का मंदिर स्थित है। यहीं 14वीं शताब्दी के धर्म सुधारक स्वामी रामानंद के चरण युगल भी स्थापित है। गुरु शिखर को कर्नल टॉड ने संतों का शिखर कहा है।
  •  सनसेट पॉइंट : नक्की झील के उत्तर-पश्चिम में पहाड़ों के बीच इस स्थान से सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है।
  •  हनीमून पॉइंट : सनसेट पॉइंट के पास ही प्राकृतिक रूप से दो चट्टानें पास-पास खड़ी हैं जो नवविवाहितों के लिए कौतूहल उत्पन्न करती है। इसी स्थल को लवर्स रॉक या हनीमून प्वाइंट कहा जाता है।
  •  देवांगन : आबू पर्वत पर स्थित यह भगवान नृसिंह का मंदिर है जो देवांगन + कहलाता है। यहाँ भगवान विष्णु की कमलासनासीन बुद्धावतार मुद्रा की प्रतिमा है।
  •  करोड़ी ध्वज : यह सूर्य मंदिर है जिसमें तीन ओर सात अश्वों के रथ पर आरुढ़ भगवान भुवनभास्कर का विग्रह है।
  •  अनादरा पॉइंट : यह नक्की झील के पश्चिम की ओर पर्वतीय ऊँचाई पर स्थित है। अनादरा पॉइंट के पास ही पर्वत पर पालनपुर पॉइंट भी बना हुआ है।
  • अचलगढ़ : अचलगढ़ दुर्ग का निर्माण परमार शासकों ने करवाया था। इसका पुनः निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। परमारों ने यहाँ अचलेश्वर महादेव मंदिर का भी निर्माण करवाया था। यह मंदिर 108 शिवलिंगों है किन्तु मुख्य स्थल पर शिवलिंग के स्थान पर एक लघु गहवर बना हुआ है जो काशी विश्वनाथ का अंगूठा बताया जाता है। पीतल का विशाल नंदी भी मंदिर के मुख्य ग्रह में स्थापित है। नंदी के पास ही कवि दुरसा आढ़ा की मूर्ति है। दुरसा आढ़ा अकबर का दरवारी कवि था। मंदिर में राजा कन्हडदेव की पाषाण प्रतिमा तथा एक तोरण भी मौजूद है। मंदिर के पास ही मंदाकिनी कुण्ड भी है। (सिरोही का इतिहास)
  • अर्बुदा देवी (अघर देवी): माउण्ट आबू में अर्बुदा देवी का मंदिर भी स्थित है। अर्बुदा देवी को आबू की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है। • दूध बावड़ी : अर्बुदा देवी के मंदिर की तलहटी में दूध बावड़ी नामक ऐतिहासिक स्थल भी है। (सिरोही का इतिहास)
  • माउण्ट आबू के अन्य स्थल (1) ट्रेवर्स टैंक, (2) चन्द्रावती नगरी (आबू के परमारों की पूर्व राजधानी) कहा जाता है कि आबू पर्वत पर ऋषि वशिष्ठ ने यज्ञ किया व अग्निकुंड से चार राजपूत योद्धा (अग्निकुल) (क) चौहान, (ख) परमार, (ग) प्रतिहार एवं (घ) सोलंकी उत्पन्न हुए। (३) प्रजापति ईश्वरीय विश्वविद्यालय भी माउन्ट आबू (सिरोही) में स्थित है।
Credit : City Express

सिरोही का इतिहास सिरोही के अन्य दर्शनीय स्थल

अंबाजी तीर्थ स्थल

यहाँ अंबाजी का मंदिर, सरस्वती नदी और कोटेश्वर महादेव आदि दर्शनीय स्थल है।

बामनवाड़ मंदिर

 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित यह मंदिर उनके बड़े भाई नंदिवर्धन द्वारा बनाया गया माना जाता है। यहाँ भगवान महावीर ने चातुर्मास किया था।

भैरु तारक धाम

सिरोही में नन्दगिरी की घाटी (अनादरा के पास) में स्थित यह मंदिर भगवान पार्श्वनाथ के गणचिह्न सर्प के सहस्र फणों को समर्पित है।

महाराव मानसिंह

महाराव मानसिंह की 1571 ई. में मृत्यु हुई। इनका दाह संस्कार अचलेश्वर मंदिर के सामने हुआ। यहाँ पर इनकी माता धारबाई ने मानेश्वर का मंदिर बनवाया। इनकी माता धारबाई ने सिरोही के पास धारावती नामक बावड़ी बनवाई।

 महाराव बैरिसाल की छतरी

 सिरोही में सारणेश्वर मंदिर के नजदीक स्थित दूधिया तालाब के किनारे महाराव वैरिसाल की अत्यंत भव्य छतरी स्थित है। इस तालाब के किनारे सिरोही के राजाओं तथा राजपरिवार के सदस्यों की छतरियाँ बनी हुई है।

कोलरगढ़

 यह चंद्रावती के परमार शासकों का प्राचीन दुर्ग है, जो अंबाजी मंदिर से 2 किमी. दूरी पर स्थित है।

लाखेराव झील

इस तालाब का निर्माण महाराव लाखा ने करवाया था। इसे गुलाब सागर भी कहते हैं।

रतन बाव

सारणेश्वर द्वार के बाहर स्थित रतन बाव को महाराव अखैराज द्वितीय की पटरानी रतन कँवर ने बनवाया था।

चम्पाबाव

चम्पाबाव महाराव सुरतान की रानी चम्पांकवर ने बनवाई थी।

धारावती बाव

 महाराव दूदा की रानी धारा बाई ने बनवाई थी।

लाहिणी बावड़ी

बसंतगढ़ में स्थित लाहिणी बावड़ी का निर्माण परमारों की रानी लाहिणी ने करवाया था।

चम्पा गुफा

नक्की झील के पास स्थित गुफा। स्वामी विवेकानन्द 14 अप्रैल,1891 को यहाँ आये थे व कुछ दिन रहे थे।

सिरोही जिले में प्रवाहित स्थानीय नदियाँ

कपालगंगा, कृष्णावती, कामेरी । 

अन्य स्थल

सरजाबाव, कनकाबाव, मृगा बावड़ी आदि सिरोही के तालाब व बावड़ियाँ है।

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सिरोही का इतिहास

निष्कर्ष:

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमारी टीम ने सिरोही का इतिहास के बारे मे वर्णन किया है, सिरोही का इतिहास के साथ – साथ सिरोही के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भी वर्णन किया है। (सिरोही का इतिहास)

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